भूख के खिलाफ जंग लड़ रही है 'रॉबिनहुड आर्मी', 70 शहरों में और 12 देशों में काम करती है संस्था
'रॉबिनहुड आर्मी' आज 70 शहरों में और 12 देशों में कार्यरत है। इस संगठन का मूल उद्देश्य खाद्य पदार्थ की बर्बादी और भूख की समस्या पर काम करना है।
नई दिल्ली [जेएनएन]। भूख न जाने बासी भात..। एक भोजपुरी कहावत है जो भूख की विवशता को दर्शाती है। इस दुनिया में रोजाना न जाने कितने ही लोगों की मौत भूख के कारण हो जाती है। इसके बावजूद यह सिलसिला रुकने का नाम नहीं ले रहा। इसी भूख की व्याकुलता से आहत होकर दिल्ली विश्वविद्यालय के कुछ छात्रों ने मिलकर 'रॉबिनहुड आर्मी' की स्थापना कर उन भूखे बच्चों सहित लोगों तक खाना पहुंचाया, जो आर्थिक अभाव के कारण दो वक्त का खाना भी नहीं जुटा पाते हैं।
70 शहरों में और 12 देशों में कार्यरत
आज उन्हीं युवा विद्यार्थियों की वजह से लाखों जरूरतमंद लोगों को एक वक्त का खाना मिल पा रहा है। 'रॉबिनहुड आर्मी' छात्रों द्वारा चलाई जा रही संस्था है। जिसकी स्थापना 2014 में दिल्ली विश्वविद्यालय के नील घोष, आनंद सिन्हा व उनके साथियों द्वारा की गई थी। 'रॉबिनहुड आर्मी' आज 70 शहरों में और 12 देशों में कार्यरत है। इस संगठन का मूल उद्देश्य खाद्य पदार्थ की बर्बादी और भूख की समस्या पर काम करना है। संस्था की एक टीम उत्तरी बाहरी दिल्ली के कई क्षेत्रों में बेसहारा लोगों तक खाना पहुंचाने का काम करती है। इसके साथ ही यह संस्था गरीब बच्चों को शिक्षा व कौशल प्रशिक्षण भी देती है।
रेस्टोरेंट, होटल आदि जगहों का बचा खाना पहुंचाते हैं लोगों तक
संस्था के दिल्ली टीम के सदस्य राहुल छाबरा का कहना है कि उनकी संस्था लोगों तक खाना पहुंचाने के लिए रेस्टोरेंट, होटल, बड़े आयोजकों से संपर्क करती है और वहां से कॉल आने पर इनकी टीम उन जगहों पर जाकर कंटेनर में बचा खाना भरकर विभिन्न इलाकों के झुग्गियों व पुनर्वास कॉलोनियों में जाकर खाना बांटते हैं।
सोशल मीडिया है सबसे बड़ी ताकत
राहुल कहते हैं कि हमारी संस्था सोशल मीडिया के माध्यम से युवाओं व हर वर्ग के लोगों को इस अभियान से जोड़ते हैं। उनका कहना है कि संगठन किसी भी रूप में किसी की आर्थिक सहायता नहीं चाहता, बस युवाओं का साथ और समय चाहता है और इसी भाव से युवा जुड़ते और काम करते हैं।
ऐसे पड़ा संस्था का नाम 'रॉबिनहुड आर्मी'
संस्था के सदस्यों के अनुसार रॉबिनहुड एक कॉमिक्स का लोकप्रिय नायक था। उनकी उदारता और मदद करने का तरीका सबसे अलग था। वह समाज के उन लोगों के बारे में सोचते थे, जिन्हें समाज अनदेखा करता था। आज हम भी उन्हीं रॉबिनहुड की राह पर चलना चाहते हैं। इसलिए संस्था का नाम उन्हीं के नाम पर रखा गया।