Delhi: गिट्टी-डामर की जगह प्लास्टिक वेस्ट से बनेंगी सड़कें, ऐसा करने वाला नीदरलैंड के बाद दूसरा देश बना भारत
देश भर में अब प्लास्टिक वेस्ट का इस्तेमाल सड़क निर्माण में किया जाएगा। जानकारी के अनुसार पहले इस तकनीकी का इस्तेमाल ग्रामीण इलाकों की सड़कों को तैयार करने के लिए किया जाएगा अगर यह सफल रहता है तो फिर हाई-वे के निर्माण में भी यूजर किया जाएगा।
जागरण संवाददाता, रमेश मिश्र। जल्द ही देश में प्लास्टिक से निकलने वाले वेस्ट से सड़कों का निर्माण किया जाएगा। इसका प्रयोग पहले ग्रामीण सड़कों पर किया जाएगा। अगर यह प्रयोग सफल रहा तो इसका विस्तार एक्सप्रेस-वे तक किया जाएगा।
वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआइआर) की दो प्रयोगशाला केंद्रीय सड़क अनुसंधान संस्थान (सीआरआरआइ) और राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला (एनपीएल) के वैज्ञानिकों द्वारा संयुक्त रूप से इस कार्य को अंजाम दिया जा रहा है।
यह विचार और तकनीक सीआरआरआइ का है, जबकि सड़क बनाने के लिए पैनल (एक खास किस्म की प्लास्टिक ईंट) एनपीएल में तैयार किया जाएगा। सीआरआरआइ इसका पहला प्रयोग दिल्ली में करने की योजना बना रहा है। अगर यह प्रयोग सफल हुई तो नीदरलैंड के बाद भारत दुनिया का दूसरा मुल्क होगा, जहां प्लास्टिक वेस्ट से सड़कों का निर्माण होगा।
पीपी व रेड मार्ट के वेस्ट से बनेगा पैनल
सीआरआरआइ के वैज्ञानिकों ने भारत की सड़कों की जरूरतों के मुताबिक एक ऐसी तकनीक और प्रोडक्ट का विकास किया है, जिसे दो खास किस्म के वेस्ट से तैयार किया जाएगा। इसमें 70 फीसद प्लास्टिक वेस्ट पोली प्रोपाइली यानी पीपी के साथ अल्युमिनियम उद्योग से निकलने वाले वेस्ट रेड मार्ट का प्रयोग किया जाएगा। वैज्ञानिकों का कहना है कि रेड मार्ट का निस्तारण अल्युमिनियम उद्योगों के लिए बड़ी चुनौती है।
सड़कों के निर्माण में इसके प्रयोग से इस समस्या का बड़ा हल निकल जाएगा। इसकी खास बात यह है कि प्लास्टिक वेस्ट में सर्वाधिक मात्रा पीपी की होती है। इसलिए सड़क निर्माण में इसकी कमी नहीं होगी। इसके निर्माण में हैवी मशीनों की जरूरत नहीं होगी। एग्रीग्रेट की सड़कों की तुलना में इनके रखरखाव की कॉस्ट भी आधी होगी। हालांकि, सड़क निर्माण की लागत में ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा। पीपी माडल से बनी सड़कें हर मौसम को झेलने में सक्षम है, जबकि डामर की सड़कें गर्मी में पिघलने और बरसात में बह जाती हैं।
ग्रामीणों सड़कों पर पहले प्रयोग करने की तैयारी
वैज्ञानिकों का कहना है कि पहले चरण में इसका प्रयोग ग्रामीण सड़कों पर किया जाएगा। यह प्रयोग सफल होने पर इसका विस्तार किया जा सकता है। इसको लेकर दोनों प्रयोगशाला के वैज्ञानिकों में उत्साह है। पैनल बनाने के लिए सीआरआरआइ के साथ मुबंई की एक कंपनी दा शक्ति प्लास्टिक से टाइअप की प्रक्रिया चल रही है। उनका कहना है कि नीदरलैंड में इस पर बड़ा काम हो चुका है। एक्सप्रेस-वे को छोड़कर सभी सहायक और प्रमुख मार्गों को प्लास्टिक वेस्ट से बनाया जा रहा है। इतना ही नहीं नीदरलैंड इस निर्माण में प्यूरीफायर का इस तरह इस्तेमाल किया जा रहा है, जिसका पानी पीने योग्य होता है।
इस प्रोजेक्ट वैज्ञानिक गगन दीप का कहना है कि भविष्य में सड़कों के निर्माण में प्रयोग आने वाले एग्रीग्रेट और डामर की उपलब्धता एक बड़ी चुनौती है। ऐसे में पीपी माडल से बनी सड़के इसका बेहतर विकल्प है। दूसरे, इससे बनी सड़कें अमूमन गढ्ढा मुक्त होंगी। अगर कहीं गड़बड़ी आई तो खराब पैनल को तत्काल बदला जा सकता है। तीसरे, मरम्मत कार्य में सड़कों को ब्लाक करने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
आज के दौर में महानगरों पर यातायात का दबाव बढ़ रहा है, जिसमें सड़कों की मरम्मत एक चुनौती भरा कार्य है। चौथे, इसका एक बड़ा लाभ यह है कि इस प्रोडक्ट को चार बार रिसाइकिल कर सकते हैं, यानी इसका चार बार प्रयोग कर सकते हैं। पांचवें, सड़क निर्माण में एग्रीग्रेट के कई लेयर तैयार किए जाते हैं, उसमें बड़ी मात्रा में गिट्टी की जरूरत पड़ती है। अब केवल बेस तैयार करने में ही इसकी जरूरत पड़ेगी।
लेयर का झंझट होगा खत्म
पीपी माडल की सड़कों में लेयर का झंझट समाप्त हो जाएगा। ऐसा करके हम खनन कार्य को सीमित करके पहाड़ों को बचा सकते हैं। प्लास्टिक रोड एक वैश्विक पर्यावरणीय समस्या का समाधान भी प्रदान करता है। प्लास्टिक कचरे का बढ़ते पहाड़ को समाप्त करने में सहायक होगा।