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रिसर्च में आया सामने गुड व अदरक का मिश्रण COPD मरीज के इलाज में कितना है कारगर

अस्पताल के कायाचिकित्सा विभाग के स्नातकोत्तर विभाग के विद्यार्थी की एक रिसर्च में सामने आया है कि 36 दिन तक गुड व अदरक के मिश्रण की तय मात्रा का नियमित रूप से सेवन करने पर सीओपीडी के प्रभाव को कम किया जा सकता है।

By Vinay Kumar TiwariEdited By: Published: Thu, 05 Aug 2021 03:11 PM (IST)Updated: Thu, 05 Aug 2021 03:11 PM (IST)
चौ. ब्रह्म प्रकाश आयुर्वेदिक संस्थान में हुई रिसर्च के दौरान इजात हुई इलाज पद्धति।

नई दिल्ली, [मनीषा गर्ग]। सीओपीडी (क्रानिक आब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज) के खतरे से जूझ रहे मरीजों के लिए खेरा डाबर स्थित चौ. ब्रह्म प्रकाश आयुर्वेदिक संस्थान सस्ती व आसानी से उपलब्ध इलाज पद्धति का इजात किया है। अस्पताल के कायाचिकित्सा विभाग के स्नातकोत्तर विभाग के विद्यार्थी की एक रिसर्च में सामने आया है कि 36 दिन तक गुड व अदरक के मिश्रण की तय मात्रा का नियमित रूप से सेवन करने पर सीओपीडी के प्रभाव को कम किया जा सकता है। असल में सीओपीडी काे जड़ से खत्म करने के लिए अभी तक कोई इलाज पद्धति विकसित नहीं हुई है।

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ऐसे में दवाओं के माध्यम से उसके दुष्प्रभावों को कम करने का प्रयास किया जाता है। बढ़ते प्रदूषण स्तर के कारण बीते कुछ सालों में पुरुषों के साथ महिलाओं में भी सीओपीडी का खतरा बढ़ा है और मरीजों की संख्या भी साल दर साल तेजी से बढ़ रही है। डब्ल्यूएचओ (विश्व स्वास्थ्य संगठन) के मुताबिक सीओपीडी विश्व में मृत्यु का चौथा बड़ा कारण है। विशेषकर गरीब व माध्यम वर्गीय देशों में सीओपीडी का खतरा सबसे अधिक देखा गया है। उस पर से कोरोना महामारी ने सीओपीडी का खतरा और अधिक बढ़ा दिया है।

एलोपेथी में सीओपीडी की इलाज प्रक्रिया न सिर्फ काफी महंगी है बल्कि उसके कुछ नाकारात्मक प्रभाव भी है, जैसे वजन का बढ़ना, प्रतिरोधक क्षमता का कमजोर होना, हड्डियों का कमजोर होना, दिल की धड़कन तेज होना, मुंह का सूखना आदि। इसके अलावा कोरोना महामारी के बीच समय-समय पर अस्पताल जाकर चिकित्सीय परामर्श लेना भी किसी चुनाैती से कम नहीं है। आर्थिक खर्च व समय की बर्बादी के साथ मरीज के संक्रमण की चपेट में आने का खतरा भी हर समय बना रहता है। ऐसे में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए सीओपीडी का इलाज किसी भार से कम नहीं है। हर सरकारी अस्पताल में श्वास रोग विशेषज्ञ नहीं है, जिसके कारण अधिकांश मरीज निजी अस्पतालों पर आश्रित है।

काया चिकित्सा विभाग के सह-आचार्य डा. योगेश पांडे ने बताया कि ओपीडी में आए 40 से 60 उम्र के 30 मरीजाें पर ये रिसर्च की गई है। जिन्हें दो बराबर समूह में बांटा गया। ग्रुप-एक के 15 मरीजाें का आयुर्वेद में आमतौर पर प्रयोग चिकित्सा पद्धति के अनुरूप इलाज किया गया। जिसमें मरीजों को छह ग्राम वासावलेह सुबह-शाम गर्म पानी के साथ खाली पेट दिया गया। जबकि ग्रुप-बी में मरीजों को गर्म दूध के साथ गुड व अदरक की समान मात्रा दी गई। ग्रुप-ए के मुकाबले ग्रुप-बी के परिणाम ज्यादा बेहतर दर्ज किए गए।

गुड व अदरक की हो बराबर मात्रा

रिसर्च से जुड़ी छात्रा डा. दृश्या दिनेश ने बताया कि ग्रुप-बी के 15 सीओपीडी मरीजों ने पहले दिन छह ग्राम गुड व छह ग्राम अदरक के मिश्रण का खाना खाने से पहले 100 मिलीलीटर गर्म दूध के साथ सेवन किया। प्रत्येक दिन छह-छह ग्राम गुड व अदरक और 50 मिलीलीटर दूध की मात्रा में अगले 12 दिन के बाद नियमित रूप से इजाफा किया गया। 12वें दिन मरीज ने 72 ग्राम अदरक व 72 ग्राम गुड और 650 मिलीलीटर दूध की मात्रा का सेवन किया।

13वें दिन से अगले 12 दिन तक इस मात्रा को बनाए रखा। 25वें दिन से मात्रा को घटाना शुरू किया। यानि छह ग्राम गुड व छह ग्राम अदरक और 50 मिलीलीटर दूध की मात्रा को अगले 12 दिन तक नियमित रूप से कम किया गया। 36वें दिन मरीज के डोज की मात्रा पहले दिन के बराबर पर पहुंच गई।

सामने आए सकारात्मक परिणाम

इलाज शुरू होने से पूर्व और बाद में सभी मरीजों की एसजीआरक्यू (सेंट जार्ज रेस्पिरेटरी प्रश्नावली) पर स्वास्थ्य का आंकलन किया गया। यह श्वास रोग के लक्षणों के आंकलन के लिए विश्वभर में मान्यता प्राप्त प्रश्नावली है। एसजीआरक्यू के माध्यम से किए गए आंकलन के मुताबिक ग्रुप-ए के मरीजाें में 10.4 फीसद और ग्रुप-बी के मरीजों में 12.46 फीसद सुधार देखा गया। वहीं 16 मापदंडों पर आधारित प्रकृतिस्थापन, आयुर्वेद में अच्छे स्वास्थ्य का आंकलन करने की एक पद्धति है जिसके अनुसार ग्रुप-ए के मरीजों में 13.13 फीसद और वहीं ग्रुप-बी में 19.83 फीसद बेहतर सुधार देखा गया है। इलाज के बाद ग्रुप-ए के मरीजों की पाचन शक्ति में 12 फीसद और ग्रुप-बी के मरीजों में 27.3 फीसद सुधार दर्ज किया गया। ठीक इसी प्रकार ग्रुप-ए के मरीजों की आवाज में 3.45 फीसद और ग्रुप-बी के मरीजों में 9.38 फीसद सुधार देखने को मिला।

क्या है सीओपीडी रोग

सीओपीडी अस्थमा से कहीं ज्यादा गंभीर बीमारी है। अस्थमा व सीओपीडी इन दोनों के ही लक्षण समान हैं। जैसे खांसी, कफ और सांस लेने में दिक्कत आदि। पर ये दोनों ही रोग एक दूसरे से काफी अलग हैं। सीओपीडी रोग में मरीज को सांस लेने में काफी दिक्कत आती है। जिसके कारण आक्सीजन उनके शरीर में पूरी तरह नहीं पहुंच पाती है। सीओपीडी रोग में मरीज को सांस लेने में परेशानी होना, गहरी सांस लेना, सांस लेने के लिए सीने की मांसपेशियों और गर्दन का प्रयोग करना, कफ, खांसी, जुकाम, सीने में जकड़न, वज़न कम होना, दिल से जुड़ी समस्याएं, फेफड़ों का कैंसर आदि लक्षण प्रमुख है।

सीओपीडी रोग का एक सबसे बड़ा कारण है प्रदूषण। गाड़ियों से निकलने वाला धुंआ और उनसे निकलने वाली जहरीली गैस हमारे फेफड़ों के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक है। गांव व कस्बों में लकड़ी और उपलों से चूल्हा जलाकर खाना पकाया जाता है, ये धुंआ भी उतना ही हानिकारक होता है। इसके अलावा धूल-मिट्टी, धूमपान सीओपीडी के खतरे को बढ़ा देता है।


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