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रिसर्च में आया सामने कोयला संयंत्र से दिल्ली-एनसीआर के लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ रहा बुरा असर, उठाना होगा ये कदम

अध्ययन करने वाले गैर सरकारी संगठन सी- 40 सिटीज ने चेतावनी दी है कि कोयला संयंत्रों से होने वाला प्रदूषण दिल्ली और उसके आसपास के निवासियों के स्वास्थ्य के लिए खतरा बन गया है। प्रदूषण का सबसे ज्यादा बुरा असर अनुभव कर रहे है।

By Vinay Kumar TiwariEdited By: Published: Wed, 29 Sep 2021 02:22 PM (IST)Updated: Wed, 29 Sep 2021 02:22 PM (IST)
कोयले से होने वाले प्रदूषण का सबसे ज्यादा बुरा असर अनुभव कर रहे है।

नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। एक नए शोध अध्ययन से पता चला है कि कोयला संयंत्रों को बंद करने से दिल्ली में लोगों की जान बचेगी और निर्वाह खर्च में भी कटौती होगी। अध्ययन करने वाले गैर सरकारी संगठन सी- 40 सिटीज ने चेतावनी दी है कि कोयला संयंत्रों से होने वाला प्रदूषण दिल्ली और उसके आसपास के निवासियों के स्वास्थ्य के लिए खतरा बन गया है। अन्य महानगरों की तुलना में दिल्ली के नागरिक स्वास्थ और आर्थिक स्थिति पर कोयले से होने वाले प्रदूषण का सबसे ज्यादा बुरा असर अनुभव कर रहे है।

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अध्ययन के मुताबिक भारत में कोयले से उत्पन्न होने वाली बिजली का 12 फीसद उत्पादन दिल्ली के 500 किमी के दायरे में होता है। इन बिजली संयंत्रों से निकलने वाला वायु प्रदूषण लंबी दूरी तय करता है और उसके संकेन्द्रण का स्तर सभी लोगों पर बुरा असर डालता है, विशेष रूप से कमजोर स्वास्थ वाले नागरिकों जैसे युवा, बुजुर्ग और गर्भवती महिलाओं पर। दिल्ली का वायु प्रदूषण स्तर (पीएम 2.5 वार्षिक संकेन्द्रण) विश्व स्वास्थ संगठन के दिशा निर्देश से नौ गुना से ज्यादा और राष्ट्रीय औसत से दो गुना से ज्यादा है। अध्ययन के मुताबिक 2020 और 2030 के बीच, अगले एक दशक में कोयला संयंत्र विस्तार की वर्तमान योजना से 5,280 असामयिक मौतें, 8,360 समय पूर्व जन्म और अस्थमा पीडि़त लोगों को अस्पताल में 10,310 आपातकालीन स्थिति में जाना पड़ सकता है। इससे अस्पतालों में भीड़ बढ़ेगी। रोग दर में वृद्धि के साथ-साथ बच्चो में अस्थमा के 1,360 अतिरिक्त मामले होंगे।

कोयला संयंत्र विस्तार की वर्तमान योजना से कुल 3,770 जीवन-वर्ष की विकलांगता पैदा होगी। अगर कोयला आधारित बिजली संयंत्र के विस्तार की प्रस्तावित योजना लागू हुई तो दिल्ली में होने वाले वायु प्रदूषण के असर से वहां के लोग 54.8 लाख छुट्टी लेने को मजबूर होंगे। सी-40 के अनुसंधान प्रमुख डा. राहेल हक्सले के अनुसार, राज्य व केंद्र सरकारों को वायु गुणवत्ता और जलवायु नीति की नींव के रूप में, क्लीन एनर्जी में निवेश करने के साथ-साथ वर्तमान में कार्यरत कोयला संयंत्र को समयपूर्व बंद करने और नए संयंत्रो का निर्माण ना करने के बारे में सोचना होगा।

दोगुनी हो सकती है वायु प्रदूषण से होने वाली वार्षिक असामयिक मौतों की संख्या

कोयले से बिजली उत्पादन की क्षमता को 20 फीसद तक कम करने की बजाय प्रस्तावित राष्ट्रीय योजना से उल्टा उसमें 28 फीसद का विस्तार होगा, जिससे दिल्ली वासियों के स्वास्थ्य और जीवन के लिए खतरा बढे़गा। साथ ही इससे भारत के जलवायु और वायु गुणवत्ता के लक्ष्यों की भी अनदेखी होगी। इस प्रस्तावित राष्ट्रीय योजना से दिल्ली शहर में कोयला बिजली संयंत्रों से निकलने वाले वायु प्रदूषण से होने वाली वार्षिक असामयिक मौतों की संख्या भी लगभग दो गुना हो सकती हैं।


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