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भारत में पांच करोड़ लोग ग्रसित हैं इस घातक बीमारी से, आत्महत्या है सबसे बड़ा खतरा

मनोचिकित्सकों के अनुसार सामूहिक आत्महत्या अचानक से लिया गया निर्णय नहीं हो सकता है। ऐसे हादसे योजना के तहत किए जाते हैं। बड़ों की योजना में छोटों को भी हामी भरनी पड़ जाती है।

By Amit SinghEdited By: Published: Sun, 21 Oct 2018 04:05 PM (IST)Updated: Sun, 21 Oct 2018 04:05 PM (IST)
भारत में पांच करोड़ लोग ग्रसित हैं इस घातक बीमारी से, आत्महत्या है सबसे बड़ा खतरा
भारत में पांच करोड़ लोग ग्रसित हैं इस घातक बीमारी से, आत्महत्या है सबसे बड़ा खतरा

नोएडा, गंगा कुमारी। दिल्ली के बुराड़ी में 11 लोगों की सामूहिक आत्महत्या की घटना को अभी लोग भूल भी नहीं सके थे कि अब राष्ट्रीय राजधानी से सटे फरीदाबाद में चार भाई-बहनों ने फांसी के फंदे से झूलकर जान दे दी। सामूहिक आत्महत्या की ये कोई पहली घटना नहीं है।

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इसी साल पानीपत के एक कारोबारी ने बेटे, बेटी व पत्नी के साथ जान देने की कोशिश की थी। किस्मत अच्छी थी कि पत्नी बच गई, लेकिन बाकी तीन को जान गंवानी पड़ी। दूसरा मामला भी पानीपत का ही है। यहां नगर निगम में सुपरवाइजर के पद पर तैनात व्यक्ति ने पत्नी के अवैध संबंधों से परेशान होकर अपने सात साल के बच्चे के साथ नहर में छलांग लगा दी थी।

इन सारे मामलों से एक सवाल उठता है कि क्या इन सबका आखिरी विकल्प आत्महत्या ही है? विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में लगभग पांच करोड़ लोग अवसाद से पीड़ित हैं। इनमें से ही अनेक लोग आत्महत्या जैसा रास्ता चुन लेते हैं।

सोच-समझकर उठाते हैं इस तरह का कदम

मनोचिकित्सकों की मानें तो सामूहिक आत्महत्या अचानक से लिया गया निर्णय नहीं हो सकता है। ऐसे हादसे सोची समझी योजना के तहत किए जाते हैं। बड़ों की योजना में छोटों को भी हामी भरनी पड़ जाती है। इसे कांट्रैक्चुअल सुसाइड कह सकते हैं। यानी नकारात्मक सोच के कारण आत्महत्या करना। ऐसी घटना का एक कारण यह भी है कि व्यक्ति समाज या अपने रिश्तेदारों से कोई बात शेयर नहीं कर पाता है और दूसरी होने वाली घटनाओं से प्रेरित हो जाता है। ऐसी स्थिति का पैदा होना निश्चित रूप पर हमारा सामाजिक ताना—बाना और व्यवस्था पूरी तरह जिम्मेवार है।


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