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दक्षिण एशिया में विकराल रूप ले रहा है वायु प्रदूषण, पढ़िये- बढ़ती समस्या पर विशेषज्ञों की राय

वायु प्रदूषण के कारण दक्षिण एशिया और उप सहारा अफ्रीका के क्षेत्रों में मरने वाले नवजात बच्चों की संख्या सबसे ज्यादा है। भारत में वायु प्रदूषण के कारण एक लाख से ज्यादा बच्चों की मौत उनके जन्म के तीन महीने के अंदर ही हो जाती है।

By Jp YadavEdited By: Published: Sat, 31 Jul 2021 08:19 AM (IST)Updated: Sat, 31 Jul 2021 08:19 AM (IST)
दक्षिण एशिया में विकराल रूप ले रहा है वायु प्रदूषण, पढ़िये- बढ़ती समस्या पर विशेषज्ञों की राय

नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। दक्षिण एशिया खासतौर से विकासशील देशों के लिए वायु प्रदूषण बहुत बड़ी चुनौती बन गया है। बहु क्षेत्रीय प्रदूषणकारी स्रोतों की व्यापक श्रंखला और उससे जुड़े मसलों की व्यापकता को देखते हुए क्षेत्रीय स्तर पर ही समुचित समाधान निकालने की जरूरत है। हालांकि यह एक बहुत बड़ा काम है, वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने की योजनाओं में प्रदूषण उत्सर्जन के मौजूदा स्तरों का अनुमान लगाना ही काफी नहीं होगा बल्कि भविष्य में बढ़ी आबादी और अर्थव्यवस्था में होने वाले विकास की तात्‍कालिक स्थितियों को भी ध्यान में रखना होगा।

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दक्षिण एशिया में वायु प्रदूषण की इस समस्या से निपटने के अवसरों पर बातचीत के लिए इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट (आईसीआईएमओडी) और क्लाइमेट ट्रेंड्स ने एक वेबिनार का आयोजन किया। इसमें विशेषज्ञों ने न केवल दक्षिण एशिया में विकराल रूप लेती वायु प्रदूषण की समस्‍या और उसके स्‍वास्‍थ्‍य सम्‍बन्‍धी पहलू की भयावहता को सामने रखा बल्कि उन कारणों को भी जाहिर किया, जिनके चलते ये हालात पैदा हुए।

आईएएसएस पोट्सडैम जर्मनी के रिसर्च ग्रुप लीडर डॉक्टर महेस्वर रूपाखेटी ने कहा कि दुनिया के अनेक हिस्सों में साफ हवा में सांस लेना एक लग्जरी की तरह है। ऐसा इसलिए है क्योंकि हम 100 फीसद प्रदूषित हवा में सांस ले रहे हैं। मौजूदा हालात ऐसे हैं कि वायु प्रदूषण से जुड़ी चीजों को बहुत संकीर्ण तरीके से परिभाषित किया जा रहा है और हम इस मुद्दे पर सामान्य समझ को नजरअंदाज कर रहे हैं। इन रेखांकित प्रक्रियाओं को समझना जरूरी है कि हम इस हालत में किस वजह से पहुंचे या किन-किन कारकों ने असर डाला। हम दक्षिण एशिया में ऊर्जा रूपांतरण के बारे में बात करते हैं। यह किस प्रकार से वायु प्रदूषण से तथा स्वास्थ्य प्रभावों से जुड़ा है। जलवायु और कृषि नीति का क्या मामला है और वे किससे किस तरह से जुड़े हुए हैं। इस तरह के रेखांकित तथ्य आमतौर पर विमर्श से गायब रहते हैं।

उन्‍होंने कहा कि वायु प्रदूषण पर हमारे विचार बहुत संकीर्ण रूप से परिभाषित रहते हैं। हमें एक व्यापक दृष्टिकोण अपनाना होगा। पहले हमें प्रक्रियाओं को लेकर एक साझा समझ बनानी होगी। उसके बाद ही हम अधिक प्रभावी प्रतिरक्षण और रूपांतरण योजनाएं बना सकेंगे। दक्षिण एशिया के देशों में एक दूसरे के साथ आकर परस्पर बातचीत करके ट्रांसडिसीप्लिनरी, इंटर डिसीप्लिनरी और मल्टीडिसीप्लिनरी तरीके से काम करने की संस्कृति काफी हद तक नदारद है। साइंटिफिक एविडेंस बेस को बनाना भी बहुत महत्वपूर्ण है। दक्षिण एशियाई देशों को एक साथ आकर साझा साइंटिफिक बेस का निर्माण करना होगा जिसे हर कोई समझ सके। इसी‍ की बुनियाद पर समाधानों की इमारत खड़ी हो सकती है।

आइसीआईएमओडी के महानिदेशक डॉक्टर प्रेमा ज्ञाम्शो ने कहा कि हेल्थ इफेक्ट्स इंंस्टीटयूट के अध्यक्ष डॉक्टर डेनियल ग्रीनबाम ने कहा कि पूरे दक्षिण एशिया में लोग वायु प्रदूषण के उच्च स्तरों से जूझ रहे हैं। इससे स्वास्थ्य के साथ-साथ अर्थव्यवस्था पर भी उल्लेखनीय प्रभाव पड़ रहे हैं। उपलब्ध सबूतों से वायु प्रदूषण और स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों के बीच संबंध साबित होते हैं। वह चाहे अल्पकालिक हों या दीर्घकालिक। ऐसे में दक्षिण एशिया की हवा को साफ करने के लिए एक सतत और दीर्घकालिक कार्य योजना बनाने की जरूरत है। खासकर क्षेत्र विशिष्ट नीतिगत कदम उठाना बहुत महत्वपूर्ण होगा।

20 फीसद नवजात बच्चों की मौत का सीधा संबंध वायु प्रदूषण से
उन्होंने कहा कि वायु प्रदूषण के कारण दक्षिण एशिया और उप सहारा अफ्रीका के क्षेत्रों में मरने वाले नवजात बच्चों की संख्या सबसे ज्यादा है। भारत में वायु प्रदूषण के कारण एक लाख से ज्यादा बच्चों की मौत उनके जन्म के तीन महीने के अंदर ही हो जाती है। वर्ष 2019 में पूरी दुनिया में वायु प्रदूषण के कारण करीब पांच लाख बच्चों की मौत जन्म से एक महीने के अंदर ही हो गई। दुनिया में 20 फीसद नवजात बच्चों की मौत का सीधा संबंध वायु प्रदूषण से होता है। असामयिक मृत्यु और विकलांगता के लिए वायु प्रदूषण का चौथा सबसे बड़ा कारण माना जाता है। वर्ष 2019 में पूरी दुनिया में हुई कुल मौतों के 12 फीसद हिस्से के लिए वायु प्रदूषण को जिम्मेदार माना गया।

घर में खाना बनाने के दौरान भी आते हैं प्रदूषण की चपेट में

डॉक्टर डेनियल ने एक प्रस्तुतिकरण देते हुए कहा कि दक्षिण एशिया में ग्राउंड लेवल पीएम 2.5 का स्तर काफी ऊंचा बना हुआ है। पिछले 10 वर्षों के दौरान भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में पीएम 2.5 के स्‍तर में बढ़ोत्‍तरी दर्ज की गई है। दक्षिण एशिया के देशों में रहने वाली 61 फीसद आबादी घर में खाना बनाने के दौरान उत्पन्न होने वाले वायु प्रदूषण की चपेट में है। हालांकि घरेलू वायु प्रदूषण के संपर्क में आने का सिलसिला तेजी से कम हो रहा है क्योंकि ज्यादा से ज्यादा लोग स्वच्छ विकल्पों की तरफ बढ़ रहे हैं।

आईआईटी कानपुर के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर डॉक्टर एसएन त्रिपाठी ने कहा कि भारत और नेपाल के सिंधु गंगा के संपूर्ण मैदानों के बीच एक अप्रत्याशित समानता है। जहां तक वायु प्रदूषण का सवाल है तो काठमांडू में पीएम 2.5 का स्तर दिल्ली के मुकाबले बढ़ा हुआ दिखाई दिया। वहीं, ढाका में यह अब भी काफी कम रहा। अगर मैं ढाका और कानपुर की बात करूं तो घरों में खाना बनाए जाने से निकलने वाला प्रदूषण वायु प्रदूषण के लिए बड़ा जिम्मेदार है। रसोई गैस का इस्तेमाल होने से घरेलू उत्सर्जन में बहुत कमी आई है। उन्‍होंने तुलना करते हुए कहा कि कानपुर और ढाका के बीच एक और महत्वपूर्ण समानता मैंने देखी है वह यह कि ढाका में पीएम 2.5 का स्तर कानपुर के मुकाबले कम है लेकिन धात्विक संकेंद्रण जैसे कि लेड की मात्रा की बात करें तो ढाका की हवा में इसकी मात्रा काफी ज्यादा है।

प्रोफेसर एसएन त्रिपाठी ने कहा कि नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम वैसे तो केंद्र सरकार ने तैयार किया है लेकिन यह काफी हद तक शहरों पर केंद्रित है और इसे मिशन की तरह चलाया जा रहा है। इसमें 113 नॉन अटेनमेंट सिटीज को चयनित किया गया है जो नेशनल एयर क्वालिटी स्टैंडर्ड्स को नहीं अपनाते हैं, लेकिन अब हम नेशनल नॉलेज नेटवर्क लेकर आ रहे हैं जो देश के उच्‍च प्रौद्योगिकीय संस्‍थानों को साथ लेकर आ रहा है ताकि नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम को जमीन पर उतारने में मदद मिल सके। अब हम एयर शेड के बारे में सोच रहे हैं। पहले हम प्रांतीय स्तर के प्रबंधन को तैयार करेंगे। उसके बाद हम उससे आगे बढ़ेंगे, इससे देशों और लोगों को इस दिशा में विचार विमर्श के लिए एक अच्छा मंच मिलेगा।


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