106 साल के बुजुर्ग ठीक होकर लौटे घर, पढ़िए- कोरोना का खौफ दूर करने वाली यह स्टोरी
106 साल के बुजुर्ग ने लोगों यह हौसला दिया कि अगर इस बीमारी मैं लड़ सकता हूं तो दूसरे लोग क्यों नहीं बस इसे अपने ऊपर हावी नहीं होने देना है।
नई दिल्ली [निहाल सिंह]। यकीन मानिए मौत से ज्यादा बड़ा खौफ मौत के अहसास का होता है। ऐसे में आप अगर डर पर विजय हासिल कर लें तो मौत भी पास फटकने से डरती है। कोरोना वायरस संक्रमण की चपेट में आए दिल्ली के 106 वर्षीय बुजुर्ग ने न केवल इस बीमारी को मात दी, बल्कि लोगों को भी यह हौसला दिया कि अगर इस बीमारी से मैं लड़ सकता हूं तो दूसरे लोग क्यों नहीं। बस इसे अपने ऊपर हावी नहीं होने देना है।
106 वर्षीय बुजुर्ग ने 17 दिन में दी कोरोना को मात
दुनियाभर में खासतौर पर बुजुर्गों के लिए खौफ के पर्याय बने कोरोना वायरस के संक्रमण को दिल्ली के 106 वर्षीय बुजुर्ग मुख्तार अहमद ने केवल 17 दिन में मात दी है, जबकि उनसे पहले उनके बेटे को संक्रमण हुआ था जो अब भी अस्पताल में भर्ती हैं।
बेटे से पहले हराया कोरोना को
मध्य दिल्ली के नवाबगंज के रहने वाले मुख्तार अहमद 14 अप्रैल से पूर्वी दिल्ली के राजीव गांधी सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल में भर्ती थे। उनकी जांच रिपोर्ट में जब इस बात की पुष्टि हो गई कि उनका संक्रमण खत्म हो गया है तो एक मई को उन्हें अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया। फिलहाल वह घर पर रहकर अपनी दिनचर्या के साथ सामान्य जीवन जी रहे हैं।
ऊंचा सुनने वाले बुजुर्ग ने दिखाया गजब का जज्बा
उम्रदराज होने की वजह से मुख्तार अहमद ऊंचा सुनते हैं, लेकिन उन्होंने अपने पोतों को कोरोना से लड़ने की पूरी कहानी बताई है। उनके पोते मोहम्मद आसिफ बताते हैं कि जब वह भर्ती हुए तो उनके चेहरे पर जरा सा भी डर नहीं था। उन्होंने परिवार को बताया है कि बार-बार उनके स्वास्थ्य की जांच की जाती थी।
मुस्कुराकर देते हैं हर बात का जवाब
वह कहते हैं कि डॉक्टरों की बताई हर बात को मानते थे और वही करते जो उनसे करने के लिए कहा जाता। घर आने के बाद वह अलग कमरे में हैं, लेकिन वह पूरी तरह स्वस्थ्य हैं और मुस्कुरा कर बात करते हैं। यही मुस्कुराहट उनके हौसले का प्रतीक बन गई है।
खुद पर कर एतबार, हौसला न हार
मुख्तार कहते हैं- जीत-हार हौसलों से तय होती है। आप जीत के उतने ही करीब होते हैं, जितना ज्यादा हौसला होता है। दो विश्व युद्ध और पाकिस्तान और चीन के साथ हुए तीन-तीन युद्धों के दौर को याद कर कहते हैं कि जिंदगी से डरना नहीं सीखा, इसीलिए मौत करीब ही नहीं आती। देखिए न मैं मौत के मुंह में जाकर भी निकल आया।
पोते ने बताई दादा की जिंदादिली की दास्तां
मुख्तार अहमद के पोते आसिफ ने बताया कि सबसे पहले उनके पिता को कोरोना वायरस का संक्रमण हुआ था। आठ अप्रैल को जांच रिपोर्ट उनके संक्रमित होने की पुष्टि हुई। इसके बाद से वह राम मनोहर लोहिया अस्पताल में भर्ती हैं। उनकी माता और भाई को भी संक्रमण हो गया था वह तो ठीक हो गए अब उनके दादा ठीक हो गए तो परिवार के सभी सदस्य खुश हैं और पिता के ठीक होने की प्रार्थना कर रहे हैं। पोते आसिफ के मुताबिक, उनके दादा मुख्तार अहमद बेहद जिंदादिल इंसान हैं। जब वह संक्रमण की चपेट में आए तो डर लगा, लेकिन हमें पता नहीं क्यों भरोसा था वह कोरोना को मात देकर घर आएंगे। आसिफ के मुताबिक, उनका विश्वास और दादा की हिम्मत काम आई और उन्होंने कोरोना को धोबी पछाड़ दे ही दिया।