आंदोलन की अंगड़ाई से उपजी एक पार्टी ने कैसे रच दिया इतिहास, पढ़िए- यह रोचक स्टोरी
2012 में जंतर-मंतर पर केजरीवाल द्वारा शुरू की गई भूख हड़ताल के बाद ऐसे हालात बने कि केजरीवाल को आम आदमी पार्टी (AAP) के नाम से राजनीतिक दल बनाना पड़ा।
नई दिल्ली [वीके शुक्ला]। बात 2011 के अगस्त की है। उस दिन बारिश हो रही थी। एक हाथ में छतरी, बगैर प्रेस की हुई शर्ट पहने और पैंट को नीचे से मोड़े हुए पैर में चप्पल पहने एक व्यक्ति पसीने में तरबतर सधे कदमों के साथ आगे बढ़ रहा था। उसकी दाढ़ी भी बढ़ी हुई थी। दुबला-पतला यह व्यक्ति जब रामलीला मैदान में बने मंच की ओर बढ़ा तो उत्साही भीड़ में नारे लगने लगे, अरविंद केजरीवाल जिन्दाबाद।
उन दिनों अन्ना हजारे जनलोकपाल के लिए रामलीला मैदान में भूख हड़ताल पर बैठे हुए थे। कई दिन गुजर चुके थे, अन्ना हालत बिगड़ रही थी। केंद्र में सत्तासीन कांग्रेस सरकार सुन नहीं रही थी। उस समय किसी ने सोचा तक नहीं था कि यह अरविंद केजरीवाल राजनीति में भी आएंगे। 2012 में जंतर-मंतर पर केजरीवाल द्वारा शुरू की गई भूख हड़ताल के बाद ऐसे हालात बने कि केजरीवाल को आम आदमी पार्टी (AAP) के नाम से राजनीतिक दल बनाना पड़ा। और इसी के साथ समीकरण कुछ ऐसे बनते चले गए कि अभी-अभी जन्म लेने वाली पार्टी देखते ही देखते राजनीतिक पटल पर छा गई। आंदोलन और राजनीति में बड़ा अंतर है। AAP ने शुरू में राजनीति में भी क्रांतिकारी कदम उठाने की कोशिश की और फिर हालात को देखते हुए बदलाव भी देखे गए।
2013 में AAP ने पहली बार चुनाव लड़ा
यह दिल्ली विधानसभा का चुनाव था। AAP के लिए यह पहला अनुभव था, मगर 2013 के इस चुनाव में आप ने 29.4 फीसद वोट लेकर 28 सीटें जीत कर जबर्दस्त धमाका किया। भाजपा के बाद AAP सबसे ज्यादा विधायकों वाली दिल्ली में दूसरी बड़ी पार्टी बनी। कांग्रेस के साथ मिलकर दिल्ली में AAP ने गठबंधन की सरकार बनाई, लेकिन मात्र 49 दिन ही यह सरकार चल पाई और मुख्यमंत्री केजरीवाल ने इस्तीफा दे दिया।
इस्तीफे के बाद जब यह पार्टी 2014 का लोकसभा चुनाव लड़ी तो पंजाब से आप के चार सांसद चुने गए। दिल्ली में भले ही आप ने एक भी सीट नहीं जीत पाई मगर मत फीसद बढ़ कर 33 फीसद पहुंच गया। इस चुनाव में देश की राजनीति में लंबे समय तक राज्य करने वाली कांग्रेस को पछाड़ते हुए AAP ने भाजपा को कड़ी टक्कर दी। नई दिल्ली लोकसभा सीट पर उस समय के केंद्रीय मंत्री अजय माकन को AAP के उम्मीदवार आशीष खेतान ने पछाड़ दिया। यह सीट भले ही भाजपा ने जीती, मगर खेतान ने माकन से एक लाख से अधिक वोट पाए।
इसी तरह उत्तर पश्चिमी दिल्ली सीट पर भी AAP दूसरे स्थान पर रही। यहां AAP की उम्मीदवार राखी बिड़ला ने केंद्रीय मंत्री व कांग्रेस की उम्मीदवार कृष्णा तीरथ को भारी मतों से पछाड़ा। पश्चिमी दिल्ली सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार महाबल मिश्र को AAP के प्रत्याशी जरनैल सिंह ने पछाड़ दिया। सिंह को मिश्र के मुकाबले करीब पौने दो लाख मत अधिक मिले थे।
इसी तरह पूर्वी दिल्ली सीट से कांग्रेस उम्मीदवार संदीप दीक्षित को भी आप के उम्मीदवार राजमोहन गांधी ने धकेल दिया। उन्होंने संदीप की तुलना में करीब पौने दो लाख मत अधिक झपट लिए। इसी तरह चांदनी चौक लोकसभा क्षेत्र से केंद्रीय मंत्री व कांग्रेस के उम्मीदवार कपिल सिब्बल को AAP उम्मीदवार आशुतोष ने पछाड़ दिया था। दक्षिणी दिल्ली सीट पर भी कांग्रेस के मुकाबले AAP का प्रदर्शन काफी बेहतर रहा था। यहां से कांग्रेस उम्मीदवार रमेश कुमार को करीब सवा लाख जबकि AAP उम्मीदवार को चार लाख से कुछ ही कम मत मिले थे।
2015 के विधानसभा चुनाव में मिली थी चमत्कारिक जीत
आप ने 2014 के लोकसभा चुनाव में अपने तेवर से दिखा दिया था कि उसके दिमाग में कुछ और चल रहा है। 2015 में दिल्ली विधानसभा चुनाव हुए। उस चुनाव में जनता को भरपूर समर्थन दिया। आम आदमी पार्टी को 54 फीसद वोट मिले। आप ने दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों में से 67 सीटों पर पर जीत हासिल की। सभी सीटों पर जीत भी भारी मतों से हासिल की। यह एक क्रांति जैसा था। उस समय अर¨वद केजरीवाल ने कहा था कि यह जीत एक चमत्कार है। वह खुद भी समझ नहीं पा रहे थे कि जनता उन्हें इतने भारी मतों से जिताएगी। उसके बाद पंजाब विधानसभा चुनाव में आप दूसरी बड़ी पार्टी रही।
नगर निगम में भाजपा से हारी आप, लेकिन 47 सीटें जीतीं
आम आदमी पार्टी के लिए नगर निगम चुनाव 2017 का चुनाव लड़ना अच्छा अनुभव नहीं रहा। आम आदमी पार्टी पूरी तैयारी के साथ यह चुनाव सभी 272 सीटों पर लड़ी पर 47 सीटें ही जीत सकी। इस चुनाव में भाजपा ने फिर से कब्जा किया लेकिन आप नगर निगम में दूसरे नंबर की पार्टी बनी।
विधानसभा का एक उपचुनाव हारी और दूसरा जीती AAP
आम आदमी पार्टी ने दिल्ली विधानसभा के दो उप चुनाव लड़े। पहला उप चुनाव 2017 में राजौरी गार्डन सीट से लड़ा। यहां से आप विधायक जरनैल सिंह ने इस्तीफा देकर पंजाब में चुनाव लड़ा था। मगर इस चुनाव में आप ने अपनी सीट गंवा दी। AAP यह चुनाव बुरी तरह हारी और तीसरे नंबर पर पहुंच गई। यह सीट अकाली भाजपा गठबंधन ने जीत ली। जबकि, दूसरा उप चुनाव अगस्त 2017 में बवाना विधानसभा सीट पर हुआ। यहां से AAPके विधायक वेद प्रकाश ने इस्तीफा दे दिया था। वेद प्रकाश ने भाजपा में शामिल होकर फिर से इस सीट पर चुनाव लड़ा। इस सीट को AAP ने जीत लिया।
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