दिल्ली में फॉगिंग की बजाय फोकल स्प्रे पर जोर, जानिए- डेंगू-मलेरिया से रोकथाम की कैसी है तैयारी
डेंगू-मलेरिया से निपटने के लिए निगमों ने क्या-क्या तैयारियां की हैं इस पर निहाल सिंह ने दक्षिणी और उत्तरी दिल्ली नगर निगम के आयुक्त ज्ञानेश भारती से बातचीत की।
नई दिल्ली। हर वर्ष डेंगू-मलेरिया के प्रकोप को कम करना स्थानीय निकायों के लिए बड़ी चुनौती होती है। पिछले दो वर्ष में नगर निगमों को इसके रोकथाम में कामयाबी भी मिली है, लेकिन मौजूदा वर्ष में निगमों के सामने डेंगू-मलेरिया के साथ कोरोना की भी चुनौती है। कोरोना के चलते पिछले वर्ष की तरह घर-घर जाकर निरीक्षण करना भी इस बार मुश्किल हो रहा है। मच्छरजनित बीमारियों से बचाव के लिए काम करने वाले कर्मचारी इस बार कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए सैनिटाइजेशन का काम संभाले हुए हैं। ऐसे में डेंगू-मलेरिया से निपटने के लिए निगमों ने क्या-क्या तैयारियां की हैं, इस पर निहाल सिंह ने दक्षिणी और उत्तरी दिल्ली नगर निगम के आयुक्त ज्ञानेश भारती से बातचीत की। पेश हैं बातचीत के प्रमुख अंश..
वैसे तो निगम हर साल डेंगू-मलेरिया के रोकथाम के लिए निर्धारित कदम उठाता है, लेकिन इस बार कोरोना के रोकथाम में कर्मचारी जुटे हैं। ऐसे में कर्मचारियों की दिक्कत है। इस बार इस पर कैसे काबू पाएंगे?
यह सही नहीं हैं कि कर्मचारियों की कमी है। हमने कोरोना संक्रमण से नागरिकों को बचाने के लिए अपने डोमेस्टिक ब्रीडिंग चेकर्स (डीबीसी) को सैनिटाइजेशन के साथ मच्छररोधी अभियान में लगाया है। हम पूरे सालभर मच्छरजनित बीमारियों को चुनौती मानकर काम करते हैं। हमने इसके लिए फरवरी में ही सभी संबंधित विभागों और संगठनों के साथ मिलकर एक्शन प्लान तैयार कर लिया था, जिस पर काम किया जा रहा है।
डीबीसी कर्मी कोरोना के चलते घर-घर जांच करने नहीं जा पा रहे हैं तो इस बार जांच कैसे होगी?
कोरोना को देखते हुए एक्शन प्लान में हमने बदलाव किया है। इस बार कोरोना के चलते चूंकि लोग किसी को घर में प्रवेश कराने से डर रहे हैं, इसलिए हम इसमें रेजीडेंट वेल्फेयर एसोसिएशन (आरडब्ल्यूए) और मार्केट एसोसिएशन का भी सहयोग ले रहे हैं। कोशिश की जा रही है कि शारीरिक दूरी के नियमों का पूरा पालन करते हुए जांच की जाए। इसके साथ ही थ्री व्हीलर, ई-रिक्शा और मोबाइल संदेशों के अलावा सोशल मीडिया के माध्यम से नागरिकों को मच्छरजनित बीमारियों के प्रति जागरूक करने के लिए काम कर रहे हैं। राहत की बात यह है कि बीते वर्ष के मुकाबले अभी तक कम आंकड़े देखने में आए हैं।
कोरोना को देखते हुए फॉगिंग पर पाबंदी की बात चल रही है। क्या उत्तरी और दक्षिणी निगम में इस बार फॉगिंग होगी?
फॉगिंग से लोगों की श्वसन क्रिया प्रभावित होने की बातें सामने आई हैं। इसके चलते फिलहाल रिहायशी इलाकों में फॉगिंग को कम से कम करने का फैसला लिया है। हालांकि ऐसे संस्थान जो बंद रहते हैं और वहां पानी का जमाव हो रखा है तो मांग के अनुसार हम फॉगिंग करेंगे। बाकी इस बार हमारा जोर फोकल स्प्रे पर है। यह फॉगिंग से ज्यादा प्रभावी है। इसमें केरोसीन व रसायन मिलाकर स्प्रे किया जाता है। इसका असर ज्यादा रहता है। फॉगिंग दो घंटे तक के लिए प्रभावी होती है, जबकि फोकल स्प्रे 7 से 10 दिन तक प्रभावी रहता है। इसको रिहायशी से लेकर व्यावसायिक इलाकों में हम प्रभावी तरीके से कराएंगे। इसके साथ ही तालाबों में गंबोजिया मछलियों को छोड़कर मच्छरों के प्रजनन को रोका जा रहा है।
अक्सर सरकारी कार्यालयों में भी डेंगू-मलेरिया का लार्वा मिलता है। इसके लिए क्या विशेष कदम उठाए जा रहे हैं?
हमारा ध्यान इस बार सरकारी इमारतों पर भी है। मच्छरजनित बीमारियों से बचाव करने के लिए हमने सभी सरकारी एजेंसियों को एडवाइजरी जारी कर उन्हें अपना-अपना नोडल अधिकारी नियुक्त करने को कहा है। उन्हें यह सुनिश्चित करने को कहा है कि मच्छरों का प्रजनन न हो। वहीं, नियमों को न मानने वालों के खिलाफ कार्रवाई भी की है। बीते माह में कई पुलिस स्टेशनों, बस डिपो के भी चालान किए गए हैं। निगम को मच्छर जनित बीमारियों की रोक के लिए जो सख्त से सख्त कदम उठाने चाहिए वह उठाए जाएंगे। अगर तीसरी बार भी कहीं पर लार्वा मिला तो मुकदमा भी दर्ज कराया जाएगा।
क्या निगम के पास डेंगू- मलेरिया से निपटने के लिए पर्याप्त दवाइयों का स्टॉक है?
चाहे छिड़काव की दवाइयां हों या फिर अस्पतालों में मरीजों को दी जाने वाली दवाइयां, निगम के पास सभी का पूरा स्टॉक उपलब्ध है। हम हमेशा छह माह का आपातकालीन स्टॉक रखते हैं ताकि किसी भी परिस्थिति से निपटा जा सके।