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जानिये इस किले के रहस्य को, जिसे मिला था श्राप- ‘या रहे उजाड़ या बसे गुर्जर’

तुगलकाबाद किले के बनने के पीछे की कहानी बहुत ही दिलचस्प है। इतना ही नहीं इस किले के आबाद फिर बर्बाद होने की दास्तां उससे भी हैरान करने वाली है।

By JP YadavEdited By: Published: Sat, 10 Nov 2018 11:47 AM (IST)Updated: Sat, 10 Nov 2018 11:55 AM (IST)
जानिये इस किले के रहस्य को, जिसे मिला था श्राप- ‘या रहे उजाड़ या बसे गुर्जर’
जानिये इस किले के रहस्य को, जिसे मिला था श्राप- ‘या रहे उजाड़ या बसे गुर्जर’

नई दिल्ली [गौतम कुमार मिश्र]। दिल्ली में एक दौर ऐसा भी था जब भारत में इस्लामिक स्थापत्य शैली का विकास हुआ, जिसे दिल्ली सल्तनत काल कहा गया। सल्तनत काल में पांच अलग-अलग वंश मामलुक या गुलाम, खिलजी, तुगलक, सैयद और लोदी वंश ने शासन किया। आज हम इन्हीं में से एक तुगलक वंश द्वारा बनवाए तुगलकाबाद किले एवं उनके इतिहास के पन्नों को पलटेंगे।

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तुगलक वंश का दौर शुरू

सन् 1316 ई. में अलाउद्दीन खिलजी की मौत हो गई। खिलजी का मकबरा दिल्ली में कुतुब मीनार के पास मौजूद है। इसकी मौत के बाद नाम मात्र ही खिलजी वंश चला और सन् 1320 तक दिल्ली सल्तनत से उसका भी पूरी तरह से सफाया हो गया। अंतिम खिलजी शासक कुतुबुद्दीन मुबारक खिलजी की उसके प्रधानमंत्री खुसरो शाह ने हत्या कर दी, जो हिंदू धर्म से परिवर्तित एक मुसलमान था। ऐसे में कमजोर पड़ चुकी दिल्ली सल्तनत की गद्दी तुगलक वंश के पहले सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक ने खुसरो शाह से छीन ली। गयासुद्दीन तुगलक कुतुबुद्दीन मुबारक खिलजी के शासनकाल में उत्तर पश्चिमी सीमांत प्रांत का गवर्नर था। गयासुद्दीन तुगलक ने दक्षिण भारत पर विजय पाने के लिए अपने पुत्र जौना खां जिसे बाद में मोहम्मद बिन तुगलक कहा जाने लगा, को भेजा। उसने वारंगल, मदुरा राज्यों को जीत लिया और इस तरह दिल्ली सल्तनत का साम्राज्य दक्षिण भारत तक फैल गया।

महज दो साल में बन गया किला

सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक ने 1321 में तुगलकाबाद शहर का निर्माण शुरू करवाया था। यह निर्माण काफी तेज गति से हुआ था। सर सैयद अहमद लिखते हैं कि सिर्फ दो साल के अंदर किला बनकर तैयार हो गया।

52 में सिर्फ 13 दरवाजों के अवशेष

किले की दीवारें काफी मोटी हैं। दक्षिणी दीवारें 40 फीट तक ऊंची हैं। इसमें बीच- बीच में झरोखे हैं जो सैनिकों को तीर चलाने के लिए बनाए गए थे। यहां कई दीवारें 90 फीट तक ऊंची थीं। सर सैयद ने लिखा है कि किले के मध्य में सुल्तान की बैठक थी जिसे जहांनुमा कहते थे। तुगलकाबाद शहर में 56 कोट और 52 दरवाजे थे। हालांकि किले की वर्तमान स्थिति से इन दरवाजों का पता लगाना बहुत मुश्किल है। सिर्फ 13 दरवाजों की ही जानकारी मिलती है।  ’ दिल्ली दरवाजा, नीमवाला दरवाजा, धोबन दरवाजा (पश्चिम की तरफ ) ’ चकला खाना दरवाजा (उत्तर) ’ भाटी दरवाजा, रावल दरवाजा, बिंडोली दरवाजा (पूर्व ) ’ अंधेरिया दरवाजा, हाथी दरवाजा (दक्षिण की तरफ) ’ खिड़की दरवाजा, होदी दरवाजा, लाल घंटी दरवाजा, तहखाना दरवाजा, तलाकी दरवाजा आदि।

एक ऐसी बावली जिससे पूरा शहर पानी पीता

इन दरवाजों के अवशेष आदिलाबाद किले से देखे जा सकते हैं। विगत वर्षों में यहां अकेले जाने को लेकर भी लोगों में खौफ था। कारण, यहां जानवर घूमते थे। जोसफ डेविड ने इन किले के खंडहरों के आधार पर शहर की इमारत की संरचना करने की कोशिश की और लिखा कि किले में एक तीसरा मकान भी था जो छोटे-छोटे भवनों से घिरा था। तथ्य इशारा करते हैं कि संभवत: यह सुल्तान का निजी भवन था। यहां किले में बड़े मैदान, मस्जिद भी थे। आपको यह जानकर हैरत होगी इसमें भूमिगत अपार्टमेंट भी बने हुए थे जिनकी गहराई 30 फीट से ज्यादा थी। अंदर एक शेर मंडल होता था जो किले की सबसे ऊंची जगह होती थी। यहां से पूरे शहर का नजारा दिखाई देता था। यहीं एक सौ फीट से अधिक गहरी बावली भी बनवाई गई थी। इसके निर्माण पर भारी भरकम राशि एवं श्रम व्यय हुआ। यह इतनी गहरी थी कि पूरे शहर को एकमात्र बावली से पानी की आपूर्ति हो सकती थी, लेकिन पानी खारा होने की वजह से उपयोग में नहीं लाई जा सकी। किले के पास भी एक झील थी जो सैनिकों के लिए बनाई गई थी। हालांकि अब इसके अवशेष नहीं दिखते हैं। किले में कुल सात झील और तीन बावली होती थीं। वर्तमान में सिर्फ दो बावली दिखती हैं।

लकड़ी के महल का किस्सा

सुल्तान गयासुद्दीन इतिहास में एक बहादुर सुल्तान के रूप में जाना जाता है जिसने मंगोलों को कई बार परास्त किया। बंगाल में विजयी अभियान शुरू होने के बाद सुल्तान दिल्ली से 6 किलोमीटर दूर अफगानपुर में रुका था। बंगाल यात्रा पर निकलने से पहले गयासुद्दीन ने निजामुद्दीन औलिया से कहा था कि उसके दिल्ली आने से पहले वो दिल्ली छोड़ दें। उसे पता चला कि मोहम्मद बिन तुगलक निजामुद्दीन औलिया का शिष्य बन गया था और निजामुद्दीन ने उसके सुल्तान बनने की भविष्यवाणी कर दी थी। ये बात पता चलने पर गयासुद्दीन तुगलक ने निजामुद्दीन को दिल्ली छोड़ने का हुक्म दे दिया। असल में गयासुद्दीन इस बात से घबरा गया था उसे डर था कि कहीं बिन तुगलक गद्दी के लालच में उसकी हत्या न करवा दे। सुल्तान के अफगानपुर पहुंचने पर औलिया के शुभचिंतकों ने उनसे दिल्ली छोड़ने की गुजारिश भी कि, जिस पर उन्होंने कहा कि : ‘हुनूज दिल्ली दूर अस्त।’

अपने ही मकबरे में हुआ दफन

इसके बाद जूना खां गद्दी पर बैठा। सुल्तान को उसी के द्वारा बनवाए गए मकबरे में दफनाया गया। यह मकबरा कई मायनों में बेहद खास है। इसमें पहली बार लाल बलुआ पत्थरों का इस्तेमाल किया गया था। शीर्ष पर कलश भी पहली बार लगाया गया था। इस मकबरे को दारुल अल अमन भी कहकर बुलाया जाता है।

और गाजी ने किया कब्जा

राना सफवी कहती हैं कि तुगलकाबाद किले के बनने के पीछे की कहानी बहुत ही दिलचस्प है। गाजी मलिक, खिलजी सल्तनत का अजेय जनरल था। इसके पिता तुर्क और मां जाट हिंदू थी। अपनी असीमित क्षमता के चलते मलिक को प्रोविंशियल गर्वनर बनाया गया। सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी की मौत के बाद सल्तनत खतरे में पड़ गई थी। सुल्तान कुतुबुद्दीन मुबारक शाह अपने पिता सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी की जगह गद्दी पर बैठा। हालांकि एक साल के अंदर ही खुसरो खान ने उसे गद्दी से हटा दिया एवं खुद सुल्तान नसीरुद्दीन खुसरो शाह के नाम से गद्दी पर बैठा। वह बहुत ही थोड़े समय के लिए रह पाया। गाजी मलिक ने इसे परास्त कर सत्ता पर कब्जा किया और तुगलक सल्तनत की स्थापना हुई। एक बार वह सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के बेटे सुल्तान कुतुबुद्दीन मुबारकशाह के साथ वर्तमान तुगलकाबाद इलाके की तरफ आया था। यहां के माहौल ने उसे इस कदर प्रभावित किया कि उसने किला बनवाने की इच्छा प्रकट की। इस पर सुल्तान के बेटे ने कहा कि जब सुल्तान बनना तो बनाना।

... और औलिया से ठन गई

तुगलकाबाद किला बनने की कहानी हजरत निजामुद्दीन औलिया के जिक्र के बिना अधूरी है। औलिया लोकप्रिय संत थे जो सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक के समकालीन थे। औलिया अमीर एवं गरीब के बीच किसी तरह का फर्क नहीं करते थे। उनके यहां प्रतिदिन सैकड़ों की संख्या में लोग खाना खाते थे। राना सफवी अपनी पुस्तक ‘द फॉरगटन सिटी आफ दिल्ली’ में लिखती हैं कि जब खुसर खान सुल्तान था तो उसने औलिया का आशीर्वाद पाने की लालसा में उन्हें पांच लाख रुपये दिए थे। संत ने रुपये तो ले लिए लेकिन दिन ढलने से पहले ही गरीब और जरूरतमंदों में बांट दिए। खैर, जब गयासुद्दीन तुगलक गद्दी पर बैठा तो उसने आदेश जारी किया कि पिछले सुल्तान द्वारा लोगों को दी गई धनराशि, पदवी वापस करनी पड़ेगी। हजरत निजामुद्दीन औलिया ने जवाब दिया कि उन्होंने पैसा खर्च कर दिया है। लिहाजा लौटाने में असमर्थ हैं। सुल्तान यह सुनकर नाराज हो गया। इसी समय औलिया ने एक बावली का निर्माण शुरू करवाया। तुगलकाबाद किले का निर्माण भी जोर-शोर से हो रहा था। औलिया के प्रति श्रद्धा का ही परिणाम था कि मजदूरों ने पहले बावली बनाने का निर्णय लिया। इस पर सुल्तान की नजरें टेढ़ी हो गईं। सुल्तान ने आदेश दिया कि कहीं किसी तरह का निर्माण नहीं होगा, सभी रिसोर्स किले के निर्माण में उपयोग लाए जाएं। लेकिन मजदूरों ने हार नहीं मानी और दिन में किला एवं रात में बावली निर्माण करने लगे। इस पर सुल्तान ने मिट्टी के तेल की बिक्री पर ही रोक लगा दी। मकसद था कि जब तेल नहीं होगा तो रात में लालटेन जल नहीं पाएंगे और अंधेरे में निर्माण हो नहीं पाएगा। किताब के तथ्यों की मानें तो लालटेन में पानी डाला गया तो चमत्कारिक रूप से तेल में बदल गया। ऐसा कहा जाता है कि औलिया ने किले को शाप दिया कि ‘या रहे उजाड़ या बसे गुर्जर’ 


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