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पढ़िए- लाल कोट से राय पिथौरा वाली पहली दिल्ली के बारे में, पृथ्वीराज चौहान से है इसका लिंक

राय पिथौरा की दिल्ली के बारह दरवाजे थे लेकिन अमीर तैमूर ने इनकी संख्या दस बताई है। इनमें से कुछ बाहर की तरफ खुलते थे और कुछ भीतर की तरफ।

By JP YadavEdited By: Published: Sat, 08 Jun 2019 01:10 PM (IST)Updated: Sat, 08 Jun 2019 01:10 PM (IST)
पढ़िए- लाल कोट से राय पिथौरा वाली पहली दिल्ली के बारे में, पृथ्वीराज चौहान से है इसका लिंक
पढ़िए- लाल कोट से राय पिथौरा वाली पहली दिल्ली के बारे में, पृथ्वीराज चौहान से है इसका लिंक

नई दिल्ली [नलिन चौहान]। किला राय पिथौरा को दिल्ली के सात शहरों में प्रथम होने का गौरव हासिल है, जिसका निर्माण 1180-1186 के बीच में हुआ और इसका संबंध महान राजपूत शासक पृथ्वीराज चौहान से है। दिल्ली का अंतिम हिंदू राज परिवार राय पिथौरा का था। उल्लेखनीय है कि सोमेश्वर पुत्र पृथ्वीराज चौहान ने अंतिम हिंदू सम्राट के रूप में दिल्ली में सुदृढ़ केंद्रीय सत्ता की स्थापना की। विग्रहराज के पौत्र पृथ्वीराज तृतीय ने, जिसे राय पिथौरा के नाम से जाना जाता है और जो मुसलमानों के विरुद्ध प्रतिरोध की कहानियों का लोकप्रिय नायक रहे हैं, लाल कोट का विस्तार उसके आसपास पत्थरों की विशाल प्राचीरें और द्वार बनाकर किया। यह दिल्ली का प्रथम नगर किला राय पिथौरा के नाम से विख्यात है। राय पिथौरा की दिल्ली के बारह दरवाजे थे, लेकिन अमीर तैमूर ने इनकी संख्या दस बताई है। इनमें से कुछ बाहर की तरफ खुलते थे और कुछ भीतर की तरफ। महरौली से प्रेस एंक्लेव तक राय पिथौरा के किले के अवशेष आज भी देखे जा सकते हैं।

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‘दिल्ली : प्राचीन इतिहास’ पुस्तक में उपिंदर सिंह लिखती हैं कि दिल्ली का सर्वाधिक प्राचीन किला लाल कोट था जिसे तोमर शासक अनंगपाल द्वितीय ने ग्यारहवीं शताब्दी के मध्य बनवाया था। इसकी ऊंची दीवारें, विशाल दुर्ग और प्रवेश द्वार सभी ध्वस्त हो चुके हैं और मलबों से जहां-तहां ढके हुए हैं। इसके प्राचीर की दीवार की परिधि लगभग 36 किलोमीटर थी, जो 3 से 9 मीटर की असमान मोटाई की थी। दुर्ग का कुल क्षेत्रफल 763875 वर्ग मीटर था। महरौली स्थित लौह स्तंभ शिलालेख से पता चलता है कि अनंगपाल द्वितीय ने दिल्ली को बसाया और लाल कोट को 1052 ईस्वी तथा 1060 ईस्वी के बीच बनवाया।

अभिलेखों में अंकित है शासकों का उल्लेख

राजा विग्रहराज चतुर्थ (1153-64) ने जो शाकंभरी आधुनिक सांभर के चाहमान या चौहान वंश के विशाल देव या बीसल देव के नाम से जाना जाता है, राज्य भार संभालने के तुरंत बाद शायद तोमरों से दिल्ली छीन ली थी। अशोक के स्तंभ पर अंकित ईस्वी सन् 1163 या 1164 के एक लेख में, जो इस समय कोटला फिरोजशाह में है, विंध्य और हिमालय के बीच की भूमि पर विग्रहराज के आधिपत्य का उल्लेख है। उदयपुर जिले के बिजोलिया के एक अभिलेख में उसके द्वारा दिल्ली पर अधिकार किए जाने का उल्लेख है जबकि अन्य अभिलेखों में दिल्ली पर तोमरों और चौहान द्वारा क्रमश: शासन किए जाने का उल्लेख है। दिल्ली में तोमर शासन काल के स्मारक चिन्हों को अनंगपुर गांव के किले तथा पत्थर निर्मित बांध तथा लालकोट के दुर्ग के रूप में देखा जा सकता है। तोमर शासन के बाद चौहान शासन की शुरुआत हुई और लाल कोट किले को विस्तारित किया गया।

पृथ्वीराज ने बनवाया लाल कोट का किला

दिल्ली के पूर्व उपराज्यपाल और पूर्व केंद्रीय मंत्री जगमोहन अपनी पुस्तक ‘ट्रंपस एंड ट्रेजिडिज ऑफ नाइन्थ दिल्ली’ में लिखते हैं कि जब पृथ्वीराज चौहान राजा बना तो उसने लाल कोट का विस्तार करते हुए एक विशाल किला बनवाया। वास्तविकता में लाल कोट किला राय पिथौरा पहली दिल्ली है न कि एक पृथक अस्तित्व वाला लाल कोट। तोमरों और चौहान ने लाल कोट के भीतर अनेक मंदिरों का निर्माण किया जिसे मुसलमानों ने गिरा दिया और उनके पत्थरों का मुख्यत: कुव्वतुल इस्लाम मस्जिद के लिए पुन: इस्तेमाल किया गया। अमीर खुसरों ने भी अनंगपाल के महल का वर्णन किया है तथा ‘आइन-एअकबरी’ और कुछ अन्य स्रोतों में तो स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि कुतुबुद्दीन तथा इल्तुतमिश ने राय पिथौरा के दुर्ग को ही अपना आवास बनाया था जो निश्चित रूप से लाल कोट ही है।

लाल कोट उत्खनन

लाल कोट का उत्खनन, महरौली में योगमाया मंदिर के पीछे किया गया। योगमाया मंदिर के दरवाजे के रास्ते से प्राचीन मंदिर की ओर कुतुब परिसर के बस स्टैंड के सामने करीब 50 मीटर उत्तर पश्चिम दिशा की ओर इसे देखा जा सकता है। पहले यहां एक किला था जबकि अब यहां केवल खंडहर है। ये दिल्ली में तोमर वंश के भवनों के अवशेष हैं। ये उत्खनन के खड्ड बड़े क्षेत्र में फैले हुए हैं और इनसे लाल कोट के एक महल के अवशेषों का पता चला है। 11 शताब्दी के इन अवशेषों का गंभीर क्षरण हुआ है। अधिसंख्य उत्खनित अवशेष जैसे कॉलमों (स्तंभो) पर हुआ नक्काशीदार प्लास्टर कार्य उपेक्षा और ध्वंस के कारण नष्ट हो गया है।

किला राय पिथौरा

पृथ्वीराज ने लाल कोट का विस्तार उसके आसपास विशाल प्राचीरें बनाकर किया था। यह विस्तारित नगर, जिसका दक्षिण- पश्चिम आधार लाल कोट है, किला राय पिथौरा के रूप में जाना जाता है और यही दिल्ली के तथाकथित सात नगरों में से पहला है। लाल कोट के समान इसकी प्राचीरों को काटती हुई दिल्ली कुतुब और बदरपुर-कुतुब सड़कें गुजरती हैं। जैसे ही दिल्ली की ओर से अधिचीनी गांव से आगे बढ़ते हैं, सड़क के दोनों ओर किला राय पिथौरा की प्राचीरें, जिन्हें सड़क काटती हुई जाती है, देखी जा सकती है। अनगढे़ पत्थरों से बनी ये प्राचीरें बहुत हद तक मलबे के ढेर से ढकी हुई हैं और इसका पूरा घेरा अभी खोजा नहीं जा सका है। ये मोटाई में 5 से 6 मीटर तक मोटी है और कुछ किनारों पर 18 मीटर तक ऊंची है और उनके बाहर की ओर चौड़ी खंदक है। तैमूर लंग के अनुसार, इसमें तेरह द्वार थे। द्वारों में से जो अब भी मौजूद हैं, वे हैं-हौजरानी, बरका और बदायूं द्वार। इनमें से अंतिम द्वार के बारे में इब्नबतूता ने उल्लेख किया है और संभवत: यह शहर का मुख्य प्रवेश द्वार था।

वर्तमान में इतिहास की स्थापना

जगमोहन के केंद्रीय शहरी विकास मंत्री के कार्यकाल से पहले किला राय पिथौरा, जो कि विशाल उपेक्षित टीले की तरह था, का इसके आसपास रहने वाले झुग्गी वासियों के लिए शौचालय के रूप में इस्तेमाल किया जाता था। जगमोहन ने अपने प्रयासों से दिल्ली विकास प्राधिकरण को सक्रिय करके विकास योजनाओं को बनवाकर इसके संरक्षण और विकास कार्य को क्रियांवित किया। उस समय टीले का छोटा हिस्सा ही संरक्षित था। जगमोहन के पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री बनने के बाद इस पूरे टीले को संरक्षित करने के साथ इसकी विस्तृत खुदाई का प्रबंध भी किया गया। आज आप किला राय पिथौरा के खुदे परकोटे और दीवारों पर उनके शानदार अवशेष के रूप में देख सकते हैं, जिसकी मध्यकालीन मोहकता रात में रोशनी पड़ते ही कई गुना बढ़ जाती है। उसी समय यहां निर्मित संरक्षण केंद्र भवन (यह दिल्ली विकास प्राधिकरण के कुतुब गोल्फ कोर्स, लाडो सराय से सटा और मालवीय नगर मेट्रो स्टेशन से पीवीआर सिनेमा की ओर निकलने वाले बने निकास द्वार के दाई ओर से कुछ मीटर की दूरी पर मुख्य सड़क पर ही स्थित है) में पृथ्वीराज चौहान की एक भव्य मूर्ति स्थापित की गई, जिसके चारों ओर सुंदर हरे-भरे पार्क विकसित किए गए हैं। संरक्षण केंद्र रचनात्मक पुनुरुद्धार का एक शानदार उदाहरण है, जहां परंपरा व इतिहास को नगरीय व्यवस्था में पिरोया गया है, ताकि भीड़भाड़ व लगातार विस्तार होते शहर में ताजगी व सुकून मिल सके। डीडीए  ने 2002 में इस संरक्षण पार्क को विकसित कर के भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को सौंप दिया था। 

(लेखक दिल्ली के अनजाने इतिहास के खोजी हैं)

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