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Shuarya Gatha: परिवार को बताए बिना राजेंद्र हो गए थे सेना में भर्ती, पूरा गांव करता है गर्व

रेवाड़ी-झज्जर हाईवे पर स्थित गांव मस्तापुर निवासी सैनिक राजेंद्र सिंह ने भी साल 1965 में भारत-पाक युद्ध में अपना बलिदान देकर वीर भूमि का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया था। आज गांव मस्तापुर शहीद राजेंद्र सिंह के नाम से जाना जाता है।

By Prateek KumarEdited By: Published: Thu, 29 Jul 2021 03:58 PM (IST)Updated: Thu, 29 Jul 2021 03:58 PM (IST)
Shuarya Gatha: परिवार को बताए बिना राजेंद्र हो गए थे सेना में भर्ती, पूरा गांव करता है गर्व
रेवाड़ी के गांव मस्तापुर स्थित शहीद राजेंद्र सिंह राजकीय स्कूल। फोटो- जागरण

नई दिल्ली/ रेवाड़ी [अमित सैनी]। दुश्मन देशों ने मां भारती की तरफ आंख उठाने का प्रयास किया तो इसकी रक्षा के लिए वीर भूमि अहीरवाल के जवान कभी पीछे नहीं रहे। यहां के सैनिकों ने युद्ध मोर्चे पर देश के लिए जान देकर अहीरवाल के बलिदान की परंपरा व सैनिक इतिहास को समृद्ध किया है। रेवाड़ी-झज्जर हाईवे पर स्थित गांव मस्तापुर निवासी सैनिक राजेंद्र सिंह ने भी साल 1965 में भारत-पाक युद्ध में अपना बलिदान देकर वीर भूमि का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया था। आज गांव मस्तापुर शहीद राजेंद्र सिंह के नाम से जाना जाता है।

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बिना बताए हो गए थे सेना में भर्ती

पांच जून 1943 को गांव मस्तापुर निवासी श्यालू सिंह व भगवती देवी के घर जन्मे राजेंद्र सिंह को बचपन से ही सेना में जाने का जुनून था। गांव के सरकारी स्कूल में पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने अहीर काॅलेज में दाखिला लिया। पढ़ाई के दौरान गांव निवासी सूबेदार भीम सिंह ने राजेंद्र सिंह को गुरुग्राम में सेना की भर्ती के बारे में सूचना दी। अपना जुनून पूरा करने के लिए राजेंद्र सिंह परिवार को बिना बताए ही भर्ती देखने चले गए थे। जाने से पहले उन्होंने अपनी बड़ी बहन को पिता के नाम एक पत्र दिया था। पिता ने जब पत्र पढ़ा तो वह भी भावुक हो गए थे। छह अगस्त 1963 को वह सेना में भर्ती हो गए तथा रानीखेत स्थित कुमाऊं रेजीमेंट सेंटर में प्रशिक्षण हासिल किया।

सिर्फ नौ माह की थी बेटी

जिस समय राजेंद्र सिंह शहीद हुए, उस समय उनकी इकलौती बेटी विजय यादव मात्र नौ माह की थी। शहीद की वीरांगना, भाई महेंद्र सिंह व परिवार के लोगों ने विजय यादव को खूब पढ़ाया। विजय ने एमए-बीएड तक पढ़ाई की। उनका विवाह महावीर चक्र विजेता गांव गोकलगढ़ निवासी चमन सिंह यादव के भाई दलीप सिंह से हुआ। राजेंद्र सिंह के पिता श्यालू सिंह को भी प्रथम विश्व युद्ध में विक्टोरिया कमीशन से अलंकृत किया गया था। गांव के सरकारी स्कूल व मुख्य द्वार का नाम शहीद राजेंद्र सिंह के नाम पर रखा गया है।

युद्ध मोर्चे पर दी शहादत

अक्टूबर 1965 में भारत-पाक युद्ध के दौरान राजेंद्र सिंह की नियुक्ति जम्मू-कश्मीर में थी। वह नोशेरा सेक्टर में अपनी टुकड़ी के साथ युद्ध मोर्चे पर तैनात थे। दुश्मन की सेना के नापाक इरादों को विफल करते हुए उनकी टुकड़ी ने पीछे धकेल दिया था। युद्ध के दौरान ही 11 अक्टूबर 1965 को देश के लिए उन्होंने अपने प्राणों की आहूति दे दी।


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