मामूली बरसात में ही डूब जाता है दिल्ली-एनसीआर, जमींदोज हो जाते हैं घरौंदे
प्रशासन, नगर-निगम और राज्य सरकार की अनदेखी व नाकामियों के कारण कुछ सालों से दिल्ली-एनसीआर की बारिश में रोमांचित कम चिंतित अधिक करती है।
नई दिल्ली (जेएनएन)। इस बार भी प्रशासन और नगर निगम की ओर से दावों में कोई कमी नहीं थी कि हमने नालों को साफ कर दिया है बारिश आएगी तो पानी बेरोक टोक बहेगा। कहीं गाद नहीं जमेगी। कहीं सड़कों पर जलभराव नहीं होगा...। लेकिन बारिश ने जैसे ही परीक्षा ली तो सारे वादे उसमें डूब गए और भ्रष्टाचार की परतें जलभराव पर तैरने लगीं। सड़कें 50-50 फीट तक धंस गईं। दो दिन रुक-रुक कर हुई बारिश से ही सड़कों पर कई दिन तक जल जमाव रहा। यदि ऐसे हालात रहे तो आखिर दिल्ली के तीनों नगर निगम ने 90 फीसद नालों की सफाई वादा किस आधार पर किया था? वहीं एनसीआर की स्थिति तो और बदतर है छह माह पहले ही बनकर तैयार हुए एलीवेटेड रोड पर पिलर के सहारे की सड़क धंस गई। ऐसा भी नहीं था कि इस बार जलभराव ने नई जगह चुनी थीं। उन्हीं दशकों पुरानी सड़कों पर, ठिकानों पर ही पानी भरा।
गड्ढों में तब्दील हो जाती हैं सड़कें
'अब के सावन में ये शरारत मेरे साथ हुई, मेरा घर छोड़ के कुल शहर में बरसात हुई।' महान गीतकार गोपालदास नीरज रचित ये पंक्ति सावन की फुहारों को लेकर लालायित मन की व्यथा को अभिव्यक्त करती हैं। लेकिन क्या दिल्ली-एनसीआर जहां बारिश होते ही हर माथे पर चिंता की लकीरें पड़ जाती हैं। चेहरे पर घर के आसपास की सड़कों पर जलभराव का डर मंडराता है। सड़कों पर नाव से सवारी के हालात होते हैं लेकिन उसमें गाडिय़ां तैर रही होती हैं। जाम में सुबह और शाम कटती है। ऐसे शहर के लिए तो नीरज गोपाल के शब्दों की छटपटाहट भी कुछ यूं बयां होती, 'यहां न बरसना बदरा...डूब जाएगा मेरा शहर।'
प्रशासन, नगर-निगम और राज्य सरकार की अनदेखी व नाकामियों के कारण कुछ सालों से दिल्ली-एनसीआर की बारिश में रोमांचित कम चिंतित अधिक करती है। बदरी लगती देख, बादलों को लौट जाने की ही दुआ होती है। कौन सड़कों पर जाम में फंसे, कौन जगह-जगह जलभराव में वाहनों को खींचता घूमे। दोष सारा शहर को बसाने वाली व्यवस्था, सरकार और प्रशासन का है। चूंकि न तो नालों की साफ सफाई की जाती है और न ही जल निकासी की उचित व्यवस्था की जाती है। हां, वादे करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी जाती है। आलम यह रहता है कि हल्की बारिश हुई नहीं कि दिल्ली-एनसीआर में कई इलाके तो टापू बन जाते हैं। इसकी बानगी पिछले सप्ताह कुछ घंटों के लिए दौरा करने आई बारिश में ही हो गई। जलजमाव की वजह से कहीं इमारतें जमींदोज हो गईं तो कहीं धंसी सड़क ने सैकड़ों लोगों की जिंदगी को खतरे में डाल दिया। ऐसे में सवाल यह उठता है कि विकास की होड़ में जुटे शासन और प्रशासन जब आधारभूत कार्यों को करने में ही विफल साबित हो रहे हैं तो इस विकास का क्या लाभ?
टूटा सपनों का आशियाना
गाजियाबाद के वसुंधरा की वार्तालोक व प्रज्ञाकुंज सोसायटी के पास सड़क धंसने का मामला हो, खोड़ा में पांच मंजिला इमारत के जमींदोज होने का या फिर मिशलगढ़ी में निर्माणाधीन इमारत गिरने का। इन तमाम घटनाओं के पीछे एक ही कारण है, बरसात के बाद जलजमाव। पानी का जमाव नींव में घुन की तरह काम करता है। एक झटके में कहीं सड़क धंस जाती हैं तो कहीं जमा हुआ पानी आसपास के घरों के लिए भी खतरे की घंटी बजाता है। आपको जानकार हैरानी होगी कि कुछ दिन की बारिश में ही पूरे दिल्ली-एनसीआर में जलभराव के चलते करीब तीन सौ परिवार अपना आशियाना गंवा चुके हैं। वार्तालोक सोसायटी के अध्यक्ष राजीव कुमार बताते हैं धंसी सड़क का भराव तो कर दिया गया है, लेकिन लोगों में ऐसी दहशत है कि रात को घर पर सोने में अभी भी उन्हें डर लगता है। करीब बीस परिवार अभी भी रात को आसपास रहने वाले रिश्तेदारों के घर पर ही सोते हैं।
धंस रही सड़कों की अनदेखी
जलभराव के चलते दिल्ली, गाजियाबाद, नोएडा, गुरुग्राम समेत आस-पास की अन्य जगहों पर भी करीब दो सौ से अधिक सड़कें धंस गईं। कई लोग हादसे का शिकार भी हुए, लेकिन प्रशासन को इन धंसी हुई सड़कों की परवाह नहीं है। ऐसा लग रहा है कि नगर निगम, विकास प्राधिकरण और अन्य विभाग शायद किसी और बड़े हादसे का इंतजार कर रहे हैं।
नालों की सफाई न होना बड़ी वजह
एओए फेडरेशन के अध्यक्ष आलोक कुमार का कहना है कि बीते तीन माह से वे लगातार नगर निगम, गाजियाबाद विकास प्राधिकरण और प्रशासन को पत्र लिखकर नालों की सफाई की मांग कर रहे हैं। पॉलीथिन पर रोक तो लगा दी गई है, लेकिन नालों में फंसी पॉलीथिन को नहीं निकाला गया है। प्रशासन को इस बाबत सूचित किया गया था कि बारिश होते ही शहर डूब जाएगा। बावजूद इसके उन्होंने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया। नालों
की सफाई के नाम पर हर साल करोड़ों रुपये बर्बाद होते हैं, पर सूरते हाल वही है।
खोखले दावे
वाहनों के बढ़ते दबाव को कम करने और जाम से निजात के लिए कहीं एलीवेटेड रोड बनाई गईं तो कहीं अंडरपास बने, लेकिन सब जगह क्या हालात हुए। एक ही बारिश ने निर्माण के खोखले पन को उजागर कर दिया। प्रशासन ने तो दावे किए थे कि हमने बारिश की पूरी तैयारी कर ली है। लेकिन फिर भी ऐसे हालात हुए। राजनगर एलीवेटेड रोड के पास भी सड़क धंस गई।
डूब गईं बसें और कार
दिल्ली का दिलशाद गार्डन अंडरपास, दिल्ली-मेरठ हाइवे का निजामुद्दीन के पास का हिस्सा, गाजियाबाद का गोशाला अंडरपास, नोएडा जीआइपी मॉल के पास बना अंडरपास व साहिबाबाद रेलवे स्टेशन अंडरपास पर तो इतना पानी भर गया कि वहां कई कारें और बसें तक डूब गईं।
गुरुग्राम में बुरा हाल, रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम भी पड़े हैं खराब
बारिश का पानी सड़कों पर, गलियों में टकराता यूं लाचार सा नाले-नालियों व्यथित हो व्यर्थ बह जाता है। बारिश के जल को अमृत तुल्य माना जाता है तभी तो अंबर से अमृत बरसने जैसी उपमा दी जाती है। लेकिन हम अपनी अव्यवस्थाओं और लापरवाही के कारण इस अमृत को यूं ही व्यर्थ बहने देते हैं। एक तरफ धरा की कोख से जल दोहन कर उसे खाली करने में जुटे हैं दूसरे अंबर से मिलने वाले अमृत को भी यूं व्यर्थ बहा रहे हैं। खास बात यह है कि दिल्ली-एनसीआर में किसी भी राज्य की सरकार और प्रशासन द्वारा वर्षा का जल संचयन करने के वादों में कोई कमी नहीं छोड़ी जाती। लेकिन बारिश होने के बाद हमारे जल संचयन स्रोत सूखे ही होते हैं। हम एक बूंद भी जल नहीं जुटा पाते। हालांकि कुछ पर्यावरण प्रेमी अपने स्तर पर जरूर संचयन करते हैं।
ये हैं हालात
गुरुग्राम शहर की ही बात करें तो हर साल औसतन 600 से 700 एमएम बारिश होती है, लेकिन रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम सालों से बंद पड़े होने की वजह से बरसात का सारा पानी नालों और सड़कों पर बह जाता है। गुरुग्राम में मल्टी नेशनल कंपनियों और उद्योगों के दिनोंदिन बढऩे से पानी की खपत भी बढ़ती जा रही है। हालत यह है कि गुरुग्राम मेट्रोपॉलिटन डेवलपमेंट अथॉरिटी द्वारा शहर में पेयजल आपूर्ति की जा रही है, बावजूद इसके गर्मी में पानी की खपत बढऩे से पानी की भारी किल्लत हो जाती है। इस साल अच्छी बारिश की संभावना है, लेकिन अभी तक हुई बारिश से एक बूंद भी जुटाने में हम असफल ही साबित हुए हैं।
ये है स्थिति
-600-700 एमएम बारिश होती है गुरुग्राम में प्रतिवर्ष, औसतन
-घरों की छत पर पानी को किया जा सकता है स्टोर
-100 से ज्यादा रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम नगर निगम क्षेत्र में हैं स्थित
-रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम खराब होने से व्यर्थ बह रहा है वर्षा जल
- 25 लाख से ज्यादा है आबादी (अस्थाई आबादी शामिल)
-37 गांवों में सिर्फ ट्यूबवेल से हो रही पेयजल आपूर्ति, सूखने लगा है भूजल
भूमिगत टैंक बनाकर स्टोर करें पानी
राजस्थान में पेयजल की भारी कमी है। वहां भूजल स्तर काफी नीचे है और नहरों का जाल भी नहीं बिछा है। गुरुग्राम सहित दक्षिण हरियाणा के अन्य जिलों से सटे राजस्थान के ज्यादातर घरों में बारिश का पानी स्टोर कर इसे उपयोग में लाया जाता है। इसके लिए घरों ही नहीं, खेतों में भी बड़े टैंक (कुंड) बने हुए हैं। मानसून में ये टैंक पानी से भर जाते हैं। गर्मियों में लोग इस पानी को फिल्टर कर इस्तेमाल करते हैं।
तीन दशक पहले सब ठीक था
आज से 30-40 वर्ष पहले तक न तो नाले ओवरफ्लो करते थे और न ही सड़क पर जल भराव की समस्या होती थी। बारिश के बाद आसानी से पानी नीचे की ओर उतर जाता था। अब नालों को पाट कर लोगों ने उस पर कब्जा कर लिया है। जिससे पानी नीचे नहीं जा पाता और बारिश में वेग के साथ पानी बढ़ता है। इससे वह मजबूत से मजबूत इमारत तक को ढहा देता है।