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स्टेनोग्राफर-कोर्ट मास्टर की भर्ती को लेकर घिरा नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल

याची के वकील ने कहा कि हम एनजीटी के पक्ष से सहमत हैं, लेकिन एनजीटी की चयन प्रक्रिया पूरी तरह से पारदर्शी नहीं रही और इस पर संदेह उठता है।

By JP YadavEdited By: Published: Thu, 16 Aug 2018 11:00 AM (IST)Updated: Thu, 16 Aug 2018 11:00 AM (IST)
स्टेनोग्राफर-कोर्ट मास्टर की भर्ती को लेकर घिरा नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल

नई दिल्ली (विनीत त्रिपाठी)। वर्ष 2013 में निकाली गई स्टेनोग्राफर-कोर्ट मास्टर की भर्ती प्रक्रिया को लेकर नेशनल ग्रीन टिब्यूनल (एनजीटी) ही कठघरे में है। भर्ती प्रक्रिया में पारदर्शिता पर सवाल उठाते हुए दायर की गई याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति जीएस सिस्तानी व न्यायमूर्ति संगीता सहगल धींगड़ा की पीठ ने कहा कि यह हैरानी की बात है कि एनजीटी ने 102 दिन के अंतराल के बाद दूसरे चरण का साक्षात्कार आयोजित किया। साथ ही जब दूसरे चरण का साक्षात्कार कराने का फैसला लिया तो फिर पहले चरण के साक्षात्कार में सफल हुए अभ्यर्थियों को नियुक्ति पत्र जारी करने का कोई आधार नहीं था। उक्त टिप्पणी करते हुए दो सदस्यीय पीठ ने एकल पीठ के फैसले को रद कर दिया।

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दो सदस्यीय पीठ ने आदेश दिया कि एकल पीठ प्रथम चरण के साक्षात्कार में सफल हुए अभ्यर्थियों और दूसरे चरण में साक्षात्कार के लिए बुलाए गए अभ्यर्थियों को नोटिस जारी करे और दोनों पक्षों को सुनने के बाद नए सिरे से फैसला सुनाए। मामले में एकल पीठ के समक्ष 20 सितंबर को सुनवाई होगी।

याचिकाकर्ता सर्वेश अग्रवाल ने याचिका में कहा कि एनजीटी ने वर्ष 2013 में स्टेनोग्राफर व कोर्ट मास्टर की भर्ती निकाली थी। उन्होंने आठ सितंबर 2013 को आयोजित परीक्षा में हिस्सा लिया था, लेकिन परीक्षा परिणाम की जब उन्हें जानकारी नहीं दी गई तो 25 सितंबर 2013 को विभाग में पता किया।

उन्हें बताया गया कि परीक्षा परिणाम वेबसाइट पर आ चुका है। परीक्षा परिणाम में अपना नाम देखकर वह हैरान रह गए, क्योंकि उन्हें कभी भी साक्षात्कार के संबंध में कोई सूचना नहीं दी गई। पांच व 25 अक्टूबर 2013 को एनजीटी के समक्ष अपना पक्ष रखा तो एनजीटी ने दूसरे चरण का साक्षात्कार आयोजित किया। याची सर्वेश के वकील ने अदालत में दो तथ्य पेश करते हुए कहा कि पहले तो ओबीसी श्रेणी में चयनित अभ्यर्थी ने इस्तीफा दे दिया। इसके बाद दूसरा नंबर याची का था, लेकिन उनके याची के बजाए तीसरे नंबर के अभ्यर्थी को चयनित कर लिया।

इस पर एनजीटी के वकील ने राजेश गोगना ने एकल पीठ के फैसले की दलील देते हुए अदालत को बताया कि एकल पीठ ने कहा था कि जिस व्यक्ति ने इस्तीफा दिया वह ओबीसी श्रेणी का था और उसकी जगह कोई ओबीसी श्रेणी का व्यक्ति ही ले सकता है। इस पर याची के वकील ने कहा कि हम एनजीटी के पक्ष से सहमत हैं, लेकिन एनजीटी की चयन प्रक्रिया पूरी तरह से पारदर्शी नहीं रही और इस पर संदेह उठता है, क्योंकि याचिकाकर्ता को 102 दिन के बाद साक्षात्कार के लिए बुलाया गया। याची के वकील ने कहा कि याचिकाकर्ता के लिए आयोजित किया गया। दूसरा साक्षात्कार एक झूठ था, क्योंकि इससे पहले ही चयनित अभ्यर्थियों को नियुक्ति पत्र दे दिए गए थे और एक व्यक्ति ने तो काम करना भी शुरू कर दिया था।

एनजीटी के वकील ने दलील दी कि प्रतिवादी ने निष्पक्ष भर्ती करते हुए दूसरा साक्षात्कार आयोजित किया और इत्तेफाक से याचिकाकर्ता उसमें सफल नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि अगर कोर्ट ने मामले में फैसला दिया तो चयनित अभ्यर्थियों को उनकी बात रखने का मौका नहीं मिलेगा। ऐसे में उन्हें भी मामले में पक्षकार बनाया जाए। पीठ ने एकल पीठ के फैसले को रद करते हुए दोनों पक्षों को नोटिस जारी कर नए सिरे से मामले की सुनवाई का आदेश दिया है।


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