जेवर एयरपोर्ट: एक्सप्रेस-वे के रास्ते गांवों तक पहुंची खुशहाली, सुख सुविधाओं की नहीं है कमी
जमीन अधिग्रहण का मुआवजा मिलने से खुशहाली एक्सप्रेस-वे के रास्ते गांवों तक पहुंच गई। गांवों में बनी कोठियां शहरों के मकानों को मात दे रही हैं। सुख सुविधा में भी यह किसी से कम नहीं है।
नोएडा [अरविंद मिश्रा]। यमुना एक्सप्रेस-वे ने दिल्ली से आगरा की दूरी कम करने के साथ इलाके में विकास की नई इबारत तैयार की। जिन इलाकों की दूरी आज चंद मिनटों में पूरी होती है, उसे तय करने में पहले घंटों लगते थे। गौतमबुद्धनगर का हिस्सा होने के बावजूद जेवर तक पहुंचना इतना सहज नहीं था, जितना आज है। सिकंदराबाद होकर जेवर तक पहुंचने में कई घंटे लग जाते थे। कभी पिछड़े रहे ये गांव एक्सप्रेस-वे के बाद आज शहर की तेज रफ्तार के साथ कदमताल कर रहे हैं। जमीन अधिग्रहण का मुआवजा मिलने से खुशहाली एक्सप्रेस-वे के रास्ते गांवों तक पहुंच गई। गांवों में बनी कोठियां शहरों के मकानों को मात दे रही हैं। सुख सुविधा में भी यह किसी से कम नहीं है।
पूरा नहीं हो सका है विकास का लक्ष्य
एक्सप्रेस-वे ने किसानों की जीवन शैली बदलने में अहम भूमिका निभाई है। लेकिन यमुना एक्सप्रेस-वे औद्योगिक विकास प्राधिकरण के गठन से जो औद्योगिक माहौल बनना चाहिए था, उसका लक्ष्य आज तक पूरा नहीं हुआ। किसानों के असहयोग के कारण औद्योगिक विकास आज तक प्रारंभ नहीं हो सका है। हालांकि फार्मूला वन ने इलाके को अंतरराष्ट्रीय फलक पर जरूर स्थापित कर दिया।
एक्सप्रेस-वे बनने की कहानी
पर्यटन को बढ़ावा देने और दिल्ली-आगरा के बीच की दूरी को कम करने के लिए बसपा सरकार ने 2001 में ताज एक्सप्रेस-वे का प्रस्ताव तैयार किया था। जब तक इस परियोजना का काम शुरु हुआ, प्रदेश में सरकार बदल गई। सपा सरकार ने ताज एक्सप्रेस-वे परियोजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया। 2007 में बसपा एक बार फिर सत्ता पर काबिज हुई। इसके साथ ही ताज एक्सप्रेस-वे का नाम बदलने के साथ परियोजना ने रफ्तार पकड़ ली। सरकार ने ताज एक्सप्रेस-वे का नाम बदलकर यमुना एक्सप्रेस-वे कर दिया। पांच साल में 165 किमी लंबा एक्सप्रेस-वे बन कर तैयार हो गया। नौ अगस्त 2012 को इसे जनता के लिए खोल दिया गया।
12000 करोड़ की लागत से बना यमुना एक्सप्रेस-वे
ग्रेटर नोएडा से आगरा तक यमुना एक्सप्रेस-वे के निर्माण के लिए गांवों की जमीन का अधिग्रहण किया गया। हालांकि ग्रामीणों ने अधिग्रहण को लेकर कुछ विरोध भी किया। लेकिन प्रशासन ने विरोध के इन सुरों को सफलता पूर्वक शांत किया। सरकार व प्रशासन किसानों को यह समझाने में सफल रहा है कि एक्सप्रेस-वे उनके इलाके की तस्वीर व उनकी तकदीर बदल कर रख देगा। क्षेत्र के विकास और अपने भविष्य के फायदे को देखते हुए किसान जमीन देने को तैयार हो गए।
एक्सप्रेस-वे से बदली इलाके की तस्वीर
यमुना एक्सप्रेस-वे औद्योगिक विकास प्राधिकरण में ग्रेटर नोएडा से आगरा तक 1189 गांव अधिसूचित हैं। मास्टर प्लान फेज एक में 80 गांव सम्मलित हैं। यमुना प्राधिकरण ने इन गांवों की जमीन अधिगृहीत कर उसे आवासीय एवं उद्योगों की स्थापना के लिए आवंटित किया है। सेक्टरों के साथ गांवों में विकास का ढांचा खड़ा है। आज गांव पक्की सड़कों से जुड़ गए हैं। गांवों के नजदीक तक पेयजल पाइप लाइन, सीवर, बिजली लाइन की सुविधा पहुंच गई है। दनकौर क्षेत्र फार्मूला वन सर्किट से देश विदेश में पहचान बना चुका है। एक्सप्रेस वे के किनारे दर्जनों बहुमंजिला इमारतें खड़ी हैं। सूनसान व पिछड़ा होने की वजह से जिन इलाकों में दिन में भी गुजरना असुरक्षित था। आज रात में भी बेखौफ होकर लोग आवाजाही करते हैं। गांव से शहर की दूरी चंद मिनटों में पूरी होती है।
बदल गई है ग्रामीणों की तकदीर
अट्टा गुजरान इन गांवों में से एक है। इसकी जमीन का अधिग्रहण 2008 में हुआ था। बकौल ग्रामीण एक्सप्रेस-वे बनने से पहले गांव की कल्पना करना तक नामुमकिन है। आमदनी का एकमात्र जरिया खेती थी। लागत बढ़ाने व कमाई कम होने से खेती भी घाटे का सौदा बनती जा रही थी, जो लोग गांव की सड़कों पर आज लग्जरी गाड़ियां लेकर निकलते हैं, उनके पास दो पहिया वाहन तक नहीं थे। मुआवजा व आसपास के शहरों में रोजगार ने गांव व ग्रामीणों की तकदीर पूरी तरह से बदलकर रख दी है। कच्चे मकान कोठियों में बदल चुके हैं। पक्की सड़क, स्ट्रीट लाइट की सुविधा गांव तक पहुंची। 62.7 फीसद मुआवजा उनके लिए खुशहाली की दूसरी किस्त बनकर आया है।
किसानों के असहयोग से औद्योगिक विकास की परिकल्पना अधूरी
एक्सप्रेस-वे के लिए किसानों ने जहां आगे बढ़कर जमीन सौंपी, वहीं औद्योगिक विकास में किसानों ने उतना ही असहयोग दिखाया है। इसलिए ग्रामीणों के हाथ से रोजगार के अवसर फिसल गए। उद्योग की स्थापना न होने की वजह से रोजगार के लिए ग्रामीणों के पास यमुना प्राधिकरण क्षेत्र में आज भी विकल्प नहीं है। रोजगार से गांवों में बाहरी लोगों के आने के कारण होने वाली व्यावसायिक गतिविधियां भी पूरी तरह से ठप हैं। इलाके के युवक या तो बेरोजगार हैं या फिर नोएडा, ग्रेटर नोएडा में रोजगार कर रहे हैं।
गांव की जमीन का अधिग्रहण होने के बाद लोगों की स्थिति पूरी तरह से बदल गई है। जिन लोगों के पास पहले बाइक तक नहीं थी, आज लग्जरी गाड़ी है। अलीशान मकान और आसपास स्थापित विश्वविद्यालय, कंपनी में रोजगार है। यतेंद्र नागर, निवासी अट्टा गुजरान
ग्रामीणों की आर्थिक हालत बेहतर होने से आज बच्चों को अच्छी शिक्षा व माहौल मिल रहा है। नई पीढ़ी उन संसाधनों के साथ पल बढ़ रही है जो शहर में उपलब्ध हैं। कौशिंद्र नागर, ग्रामीण