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    दिल्ली-एनसीआर समेत देशभर के पोल्ट्री फार्म आए कार्रवाई के दायरे में, पढ़िये- ताजा गाइडलाइन

    By Jp YadavEdited By:
    Updated: Wed, 15 Sep 2021 10:06 AM (IST)

    Poultry Farms Guidelines अब पांच हजार से कम और एक लाख से कम पक्षी रखने वाले पोल्ट्री फार्म के लिए भी राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से अनुमति लेना अनिवार्य कर दिया गया है। प्रदूषण रहित- हरित श्रेणी से भी बाहर कर दिया गया है।

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    दिल्ली-एनसीआर समेत देशभर के पोल्ट्री फार्म आए कार्रवाई के दायरे में, पढ़िये- ताजा गाइडलाइन

    नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। पर्यावरण संरक्षण के लिए दिल्ली एनसीआर सहित देश भर में पोल्ट्री फार्म भी कार्रवाई के दायरे में आ गए हैं। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने पांच हजार से ज्यादा और एक लाख से कम पक्षी रखने वाले पोल्ट्री फार्माें को प्रदूषण रहित- हरित श्रेणी से बाहर कर दिया है। ऐसे में बड़े पोल्ट्री फार्म संचालकों की तरह छोटे और मझौले संचालकों को भी पोल्ट्री से होने वाले प्रदूषण की रोकथाम के लिए कदम उठाने होंगे।

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    दरअसल, वर्ष 2015 की संक्षिप्त गाइडलाइंस के बाद पहली बार केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने विविध पक्षों को शामिल करते हुए हाल ही में विस्तृत गाइडलाइंस जारी की है। नई गाइडलाइंस में कहा गया है कि पांच हजार से एक लाख पक्षियों तक की संख्या वाले पोल्ट्री फार्म को स्थापित और संचालित करने के लिए राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड या समिति से जल संरक्षण कानून 1974 और वायु संरक्षण कानून 1981 के तहत कंसेट टू इस्टेबलिशमेंट (सीटीई) या कंसेट टू आपरेट (सीटीओ) का प्रमाण-पत्र लेना होगा। मालूम हो कि केंद्र के पशु पालन विभाग द्वारा 2020 में किए गए लाइवस्टाक सेंसेस देश भर में पोल्टी (पक्षियों) की संख्या 851.809 मिलियन है।

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    गौरतलब है कि सीपीसीबी ने पोल्ट्री, हेचरी और पिगरी यानी पक्षियों, अंडे और सूअर पालन को हरित श्रेणी में रखा हुआ था। लेकिन एक पर्यावरण कार्यकर्ता की आपत्ति के बाद एनजीटी ने 16 सितंबर 2020 को सीपीसीबी को आदेश दिया कि पोल्ट्री फार्म को हरित श्रेणी में रखने और वायु, जल और पर्यावरण संरक्षण कानून से मुक्त रखने वाली गाइडलाइंस को संशोधित करना चाहिए।

    देश में पोल्ट्री फार्म में पक्षियों की संख्या के हिसाब से पहली बार तीन श्रेणियां बनाई गई हैं। इन तीन श्रेणियों में छोटे और लघु स्तर के पोल्ट्री फार्म को स्पष्ट किया गया है।

    - 5 से 25,000 : स्माल कैटेगरी

    - 25,000 से अधिक और 100,000 से कम : मीडियम कैटेगरी

    - 100,000 से अधिक : लार्ज कैटेगरी

    किस राज्य में कितने पोल्ट्री (पक्षी) (मिलियन में)

    राज्य पोल्ट्री (पक्षी)

    • बिहार 16,525
    • छत्तीसगढ़ 18,711
    • हरियाणा 46.24
    • हिमाचल प्रदेश 1,341
    • जम्मू कश्मीर 7,366
    • झारखंड 24,832
    • मध्य प्रदेश 16,659
    • पंजाब 17,649
    • राजस्थान 14,622
    • उत्तर प्रदेश 12,515
    • उत्तराखंड 5,018
    • चंडीगढ़ 0.048
    • दिल्ली 0.226

    नई गाइडलाइंस में प्रमुख प्रावधान

    गैसीय उत्सर्जन, मल-मूत्र व कचरा पोल्ट्री की एक बड़ी समस्या है। पोल्ट्री पक्षियों के मल से अमोनिया (एनएच3) और हाइड्रोजन सल्फाइड (एच2एस) का गैसीय उत्सर्जन होता है जो गंध पैदा करता है। एक ही जगह पर लंबे समय के लिए मल को एकत्रित करने से गंध के साथ मीथेन गैस पैदा होती है। ऐसे में अब पोल्ट्री संचालकों को इन सब बातों का अब ध्यान रखना होगा।

    -पोल्ट्री से होने वाली गैसीय प्रदूषण को कम करने के लिए हवादार कमरा होना चाहिए।

    - पोल्ट्री की खाद (मैन्योर) बहते हुए पानी या किसी अन्य कीटनाशक से न मिलने पाए, इसका ध्यान रखा जाना चाहिए। पोल्ट्री में मर जाने वाले पक्षियों को रोजाना हटाए जाने और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना दफनाने के लिए भी जोर दिया गया है। मसलन भू-जल स्तर से तीन मीटर ऊपर दफन करना चाहिए।

    -फार्म में पक्षियों के बीच उचित दूरी बनाने और चूहे और मक्खियों से बचाव के लिए भी उचित प्रबंध करने को कहा गया है।

    -इसके अलावा चारे की मिक्सिंग और उन्हें तैयार करते समय उड़ने वाली धूल भी लोगों को परेशान करती है। इसके लिए एक ऐसा कक्ष गेट पर ही बनाना होगा जहां मिक्सिंग के दौरान धूल न उड़े।

    -पोल्ट्री फार्म संचालकों को खाद की व्यवस्था करनी होगी, मसलन छोटे पोल्ट्री में कंपोस्टिंग और मध्यम आकार वाले कंपोस्टिंग के साथ बायोगैस की व्यवस्था भी करनी होगी।

    -पोल्ट्री में पानी का इस्तेमाल करने के बाद उसे टैंक में एकत्र करना होगा। इस पानी का इस्तेमाल बागबानी में करने का सुझाव दिया गया है।

    -राज्य और जिला स्तर पर गाइडलाइंस पालन कराने की जिम्मेदारी पशु पालन विभाग की की होगी।

    पोल्ट्री स्थापित करने का दायरा

    - आवासीय इलाके से 500 दूर

    - नदी, झील, नहर और पेयजल स्रोतों से 100 मीटर की दूरी

    - राष्ट्रीय राजमार्ग से 100 मीटर और गांव की पगडंडी व ग्रामीण सड़क से 10-15 की दूरी

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