... तो क्या दो बच्चे की नीति समाधान के बजाय संकट पैदा करेगी
कई राज्यों में प्रजनन दर स्वाभाविक रूप से दो से नीचे आ चुकी है। ऐसे में वहां दो बच्चों की नीति से जनसंख्या की वृद्धि दर पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। बल्कि ऐसी दंडात्मक नीति से वंचित वर्ग को मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा।
पूनम मुतरेजा। जनसंख्या विस्फोट के तर्को को देखते हुए हाल के दिनों में कुछ राज्यों ने ऐसी नीतियां बनाई हैं, या उन पर विचार कर रहे हैं, जिनके तहत दो से ज्यादा बच्चों वाले लोगों को पंचायत चुनाव, सरकारी नौकरी या अन्य फायदों से दूर किया जा सकता है। हालांकि भारत जनसंख्या विस्फोट के मुहाने पर है, वाली सोच सच से परे है। जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि देश में दशक के आधार पर आबादी बढ़ने की दर कम होने लगी है। 2015-16 में राष्ट्रीय स्तर पर प्रजनन दर 2.2 पर आ गई थी। 2019-20 के आंकड़े भी दिखा रहे हैं कि आबादी स्थिरता की ओर बढ़ रही है। बहुत बड़ी आबादी होने के कारण कुछ समय आबादी में वृद्धि होती रहेगी, लेकिन जनसंख्या में स्थिरता अनुमान से पहले ही आ जाएगी। ऐसी स्थिति में दो बच्चे की नीति समाधान के बजाय संकट पैदा करेगी।
असम में 2019-20 में प्रजनन दर 1.9 पर आ गई थी। ऐसे में दो से ज्यादा बच्चों वाले परिवारों को सरकारी योजनाओं से दूर करने के कदम से जनसंख्या की वृद्धि दर पर तो कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, लेकिन वंचित वर्ग के सामने मुश्किलें जरूर पैदा हो जाएंगी। लक्षद्वीप में तो प्रजनन दर 1.4 फीसद पर आ गई है। 1991 से 2001 के बीच यहां की आबादी 17.19 फीसद बढ़ी थी, जबकि 2001 से 2011 के बीच यह वृद्धि मात्र 6.3 फीसद रही। यहां इस समय बूढ़ी होती आबादी और घटता कार्यबल चिंता का कारण है। लिंग जांच के मामले भी बढ़ रहे हैं।
दो बच्चा नीति के प्रभाव को लेकर कोई प्रमाण नहीं है। पूर्व आइएएस अधिकारी निर्मला बुच के अध्ययन में सामने आया था कि ऐसी नीति पर कदम बढ़ाने वाले राज्यों में लिंग जांच, असुरक्षित गर्भपात के मामले बढ़ गए। स्थानीय चुनावों में खड़े होने के लिए कुछ लोगों ने तलाक ले लिया तो कई परिवार बच्चों को गोद देने लगे। भारत में जनसंख्या नियंत्रण की सख्त नीति से लिंग जांच और बेटे को प्राथमिकता देने के मामले बढ़ सकते हैं।
जनसंख्या संकट और महिला-पुरुष के असामान्य अनुपात के बाद चीन को भी अपनी जनसंख्या नियंत्रण नीति बदलने के लिए मजबूर होना पड़ा है। शिक्षा और आय का स्तर बढ़ने से प्रजनन दर स्वाभाविक रूप से और कम होगी। विकास एवं प्रजनन दर के बीच का संबंध केरल, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में स्पष्ट दिखता है। लैंगिक समानता, महिला सशक्तीकरण, बेहतर शिक्षा, आर्थिक विकास और परिवार नियोजन के माध्यमों तक आसान पहुंच से लोगों को छोटे परिवार के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है। जरूरी है कि हम मुफ्त शिक्षा के जरिये महिलाओं को सशक्त करें। कम उम्र में लड़कियों की शादी को हतोत्साहित करें, स्कूल से ड्रॉप आउट होने की दर कम करें और काम व बच्चे के पालन पोषण के बीच संतुलन का माहौल बनाते हुए जनसंख्या नियंत्रण का लक्ष्य हासिल करें।
[एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर, पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया, नई दिल्ली]