... तो क्या 18 महीने बाद मिल जाएगा दिल्ली में प्रदूषण खत्म करने का फॉर्मूला
अध्ययन में किसी स्थान विशेष में किसी खास समय में प्रदूषण के लिए कौन-कौन से कारक जिम्मेदार हैं और किन तत्वों की कितनी हिस्सेदारी है, इसका पता लगाया जा सकेगा।
नई दिल्ली, जेएनएन। दिल्ली सरकार ने वायु गुणवत्ता पर संयुक्त अध्ययन के लिए सोमवार को वाशिंगटन विश्वविद्यालय के साथ समझौता किया। इसके तहत वाशिंगटन विश्वविद्यालय और दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) 18 महीने तक संयुक्त रूप से दिल्ली के प्रदूषण का अध्ययन करेंगे। समझौते का मुख्य उद्देश्य वायु गुणवत्ता की निगरानी और प्रदूषण स्रोतों की पहचान करना है। इसके तहत यह भी देखा जाएगा कि पीएम 2.5 और पीएम 10 की निगरानी कैसे की जा सकती है? और इसके नियंत्रण के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं?
इस अध्ययन के पूरे होने के बाद हवा की गुणवत्ता के आकड़ों की निगरानी का डाटा आसानी से उपलब्ध होगा। वहीं शहर में वायरलेस सेंसर विकसित किए जाएंगे जो हवा की गुणवत्ता की निगरानी में मदद करेंगे। अध्ययन के जरिये वायु प्रदूषण नियंत्रण के लिए निष्कर्ष और उपाय खोजे जाएंगे।
दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण को लेकर दिल्ली सरकार और पड़ोसी राज्यों के बीच अक्सर आरोप-प्रत्यारोप का दौर चलता रहता है। खासतौर पर नवंबर में दिल्ली-एनसीआर में होने वाले प्रदूषण के लिए पंजाब और हरियाणा के किसानों के पराली जलाने को जिम्मेदार ठहराया जाता रहा है। लेकिन, उसके बाद भी दिल्ली की वायु गुणवत्ता में अपेक्षित सुधार देखने को नहीं मिलता। इसीलिए यह समझौता किया गया है ताकि वास्तविक कारणों की जानकारी हो सके।
इसके जरिये किसी स्थान विशेष में किसी खास समय में प्रदूषण के लिए कौन-कौन से कारक जिम्मेदार हैं और किन तत्वों की कितनी हिस्सेदारी है, इसका पता लगाया जा सकेगा। अभी पूरे सीजन में प्रदूषण के कारकों की जानकारी ही हो पाती है, लेकिन इस परियोजना में किसी दिन विशेष और समय विशेष में भी प्रदूषण के कारकों का पता चल सकेगा। इससे उन कारकों की रोकथाम में भी आसानी होगी।
डीपीसीसी के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक ने बताया कि इस शोध में शामिल एरोसोल और एयर क्वालिटी रिसर्च लेबोरेटरी को हवा की गुणवत्ता की जाच और कार्बन उत्सर्जन की रोकथाम के क्षेत्र में विशेषज्ञता हासिल है। शोध के दौरान पीएम 1, पीएम 2.5 और पीएम 10 में शामिल रसायनों की भी जांच की जाएगी।