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दिल्ली सरकार ने नहीं लिया सबक, हवा-हवाई साबित हुए दावे, खराब हुई राजधानी की हवा

दिल्ली में पराली जलाने के मामले सामने आए हैैं। जबकि दिल्ली सरकार अपने पड़ोसी राज्यों हरियाण और पंजाब पर पराली जलाने को लेकर आरोप-प्रत्यारोप करती रहती है।

By Amit MishraEdited By: Published: Sat, 06 Oct 2018 08:15 PM (IST)Updated: Sat, 06 Oct 2018 08:15 PM (IST)
दिल्ली सरकार ने नहीं लिया सबक, हवा-हवाई साबित हुए दावे, खराब हुई राजधानी की हवा
दिल्ली सरकार ने नहीं लिया सबक, हवा-हवाई साबित हुए दावे, खराब हुई राजधानी की हवा

नई दिल्ली (जेएनएन)। हवा की गति कम क्या हुई राजधानी में एक बार फिर से हवा जहरीली हो गई है। आने वाले दो दिन तक यही स्थिति रहने का अनुमान है। लेकिन हैरानी की बात यह है कि पिछले साल दिल्ली के प्रदूषण को लेकर इतनी परेशानी हुई उसके बाद भी राज्य सरकार ने कोई सबक नहीं लिया। यही वजह है कि सितंबर माह के आखिरी सप्ताह से दिल्ली की आबोहवा जहरीली होती दिखाई दे रही है। इससे दिल्ली सरकार और प्रदूषण से निपटने वाली उन तमाम एजेंसियों की कार्यशैली पर सवाल खड़े होते हैैं। क्योंकि, हर साल दिल्ली में लोग प्रदूषण से जूझते हैं और जब प्रदूषण अपने उच्च स्तर पर पहुंच जाता है तो फिर आरोप-प्रत्यारोप में उलझ जाते हैं, लेकिन स्थायी समाधान करने में राज्य सरकार पूरी तरह विफल साबित हुई है।

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कूड़ा जलाने पर नहीं दिखाई देती सख्ती

राजधानी में कूड़ा जलाने पर सख्ती भी हवा-हवाई ही साबित होती रही है। खानापूर्ति के लिए निगम कूड़ा जलाने वालों पर चालान करने की कार्रवाई तो करते हैैं, लेकिन ठोस इंतजाम अभी निगम और दिल्ली सरकार के पास नहीं है। न ही जनता में इसको लेकर जागरूकता है और न ही कानून का खौफ। इसलिए लोग आसानी से निगम, डीडीए के पार्कों से लेकर खाली प्लाट में पड़े हुए कूड़े और पत्तों में आग लगा देते हैं। इससे हवा में प्रदूषण की मात्रा बढ़ जाती है। पिछले 24 दिनों से पूर्वी दिल्ली में हुई सफाईकर्मचारियों की हड़ताल के बाद जमा हुए कूड़े में कई जगह आग लगाई गई।

 

इस साल भी दिल्ली सरकार नहीं खरीद पाई नई बसें

दिल्ली में प्रदूषण की एक बड़ी वजह निजी वाहनों से होने वाला प्रदूषण है। यहां दिन-ब-दिन निजी वाहनों की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है वहीं राज्य में सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था ध्वस्त पड़ी हुई है। मेट्रो के कार्य को अलग कर दिया जाए तो राजधानी में दिल्ली सरकार इस वर्ष भी कोई भी नई बस अपने बेड़े में शामिल करने में विफल साबित हुई है। इस समय दिल्ली में 5500 डीटीसी एवं क्लस्टर बसें है। इसमें करीब एक हजार बसें प्रतिदिन तकनीकी खामियों के चलते सड़क पर नहीं उतर पाती हैं। क्लस्टर बसों की भी अब हालत खराब होती जा रही है। जबकि वर्ष 2011 में किए गए एक आकलन के अनुसार 11 हजार बसों की जरूरत दिल्ली को हैै।

बढ़ा मेट्रो परिचालन 

हालांकि दिल्ली में मेट्रो के परिचालन में इस वर्ष भी वृद्धि हुई है। पिछले वर्ष दिल्ली मेट्रो का परिचालन 218 किलोमीटर हुआ करता था इस वर्ष 78 किलोमीटर के परिचालन की वृद्धि हुई है। यह अब 296 किलोमीटर तक जा पहुंचा है। इसमें पिंक लाइन पर लाजपत नगर से मजलिस पार्क में 29.66 किलोमीटर का परिचालन शुरू हुआ। मजेंटा लाइन पर जनकपुरी पश्चिम से बॉटनिकल गार्डन के बीच करीब 38 किलोमीटर हिस्से पर परिचालन शुरू हुआ है। वहीं ग्रीन लाइन पर मुंडका से लेकर बहादुरगढ़ तक 11.18 किलोमीटर हिस्से पर नया परिचालन शुरू हुआ है।

मेट्रो किराया बढ़ने की वजह से बढ़ा निजी वाहनों का उपयोग  

दिल्ली मेट्रो रेल निगम (डीएमआरसी)ने मेट्रो नेटवर्क में एक साल में करीब 78 किलोमीटर विस्तार तो किया पर पिछले साल किराये में दोगुनी वृद्धि से उसका खास फायदा नहीं मिल पाया। भारी भरकम किराया वृद्धि से मेट्रो में यात्रियों की संख्या में काफी कम दर्ज की गई है। इसलिए मेट्रो नेटवर्क बढऩे के बावजूद उम्मीद के मुताबिक मेट्रो में सफर नहीं करते और निजी वाहनों की ओर रूख कर रहे हैैं।

सरकार के दावे हवा-हवाई

दिल्ली में धूल से होने वाला प्रदूषण परेशान करता है, लेकिन इसके लिए राज्य सरकार की तैयारियां इस वर्ष केवल और केवल कागजी ही हैं, क्योंकि सरकार ने इस वर्ष भी धूल से निपटने के लिए कोई ठोस इंतजाम नहीं किए हैं। जबकि लोगों को दिल्ली सरकार के लोक निर्माण विभाग की सड़कों पर गुजरते हुए धूल का सामना करना पड़ता है। असुरक्षित तरीके से होते भवन निर्माण के चलते धूल से होने वाला प्रदूषण बढ़ जाता है। हालांकि केंद्र सरकार ने दिल्ली में पिछले वर्षों में प्रदूषण की समस्या से सबक लेते हुए दिल्ली की तीनों नगर निगमों को 100-100 करोड़ रुपये का फंड जारी किया है। निगम इनसे मैकेनिकल स्वीपर और धूल पर पानी के छिड़काव के लिए वॉटर टैंकर खरीद रहे हैं। पिछले सप्ताह ही दक्षिणी निगम के बेड़े में 40 वॉटर टैंकर शामिल हुए थे। वहीं छह-छह मैकेनिकल स्वीपर दक्षिणी और पूर्वी निगम को मिले थे, वहीं चार मैकेनिकल स्वीपर उत्तरी निगम को मिले थे। इससे निगम सड़कों पर उड़ने वाली धूल को सड़कों से हटा पाएगा।

पराली पर केवल आरोप-प्रत्यारोप  

दिल्ली में प्रदूषण को लेकर राज्य सरकार की संवेदनहीनता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वह अपने ही राज्यों के किसानों को पराली न जलाने के प्रति जागरूक नहीं कर पाई है। सीपीसीबी ने इस बात की पुष्टि की है दिल्ली में पराली जलाने के मामले सामने आए हैैं। जबकि दिल्ली सरकार अपने पड़ोसी राज्यों हरियाण और पंजाब पर पराली जलाने को लेकर आरोप-प्रत्यारोप करती रहती है।

नहीं लागू हो पाया प्रदूषण का लोकल एक्शन प्लान

दिल्ली में प्रदूषण को कम करने के लिए दिल्ली सरकार लोकल एक्शन प्लान लागू करने में केवल कागजी कार्रवाई करती हुई नजर आई है। जबकि ईपीसीए ने कई बार दिल्ली सरकार को प्रदूषण से निपटने के लिए लोकल एक्शन प्लान के निर्देश दिए हैं। ईपीसीए का कहना है दिल्ली में हर इलाके में प्रदूषण के अलग कारण है। इसलिए हर इलाके के प्रदूषण को निपटने के लिए एक तरह का उपाय कारगर नहीं है। इसलिए हर इलाके के प्रदूषण के हिसाब से प्लान बनना चाहिए।  


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