सावधान दिल्ली, यहां की आबोहवा में बढ़े कैंसर कारक प्रदूषक तत्व
दिल्ली-एनसीआर की आबोहवा में पोलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाईड्रोकार्बन, डायोक्सीन, बैंजीन और पेस्टीसाइड की मात्रा भी काफी खतरनाक स्तर पर पहुंच रही है।
नई दिल्ली [ संजीव गुप्ता ]। दिल्ली-एनसीआर की पहले से ही प्रदूषित और जहरीली हवा में कैंसर कारक तत्व भी तेजी से बढ़ रहे हैं। विडंबना यह कि इन कार्सेजैनिक तत्वों के बारे में जनता तो क्या, राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों के अधिकारियों तक को जानकारी नहीं है। इन्हें मापने की क्षमता भी किसी बोर्ड के पास नहीं है।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की एक शोध रिपोर्ट में सामने आया है कि दिल्ली-एनसीआर की आबोहवा में पोलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाईड्रोकार्बन, डायोक्सीन, बैंजीन और पेस्टीसाइड की मात्रा भी काफी खतरनाक स्तर पर पहुंच रही है। सीपीसीबी ने इन सभी प्रदूषक तत्वों को कार्सेजैनिक अर्थात कैंसरजन्य की श्रेणी में रखा है।
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वायु प्रदूषण में अभी नहीं मापा जा रहा इन्हें
मौजूदा दौर में वायु प्रदूषण के प्रदूषक तत्वों में मोटे तौर पर पार्टीकुलेट मैटर 10, पार्टीकुलेट मैटर 2.5, सल्फर ऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, ओजोन, कार्बन मोनोक्साअड, अमोनिया, लेड, आर्सेनिक और नीकल को मापा जाता है। कहने को इस सूची में बैंजो ए पायरिन और बैंजीन शामिल जरूर है, मगर इन पर बहुत ध्यान कभी नहीं दिया गया।
यह है नए प्रदूषक तत्वों की स्थिति
हवा में बैंजो ए पायरीन या पोलीसाइक्लिक एयरोमैटिक हाइड्रोकार्बन की मात्रा एक नेनोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से ज्यादा नहीं होनी चाहिए, लेकिन यह 5 नेनोग्राम तक जा पहुंची है। डायोक्सीन की मात्रा .1 नेनोग्राम होनी चाहिए मगर पहुंच चुकी है .4 से .5 नेनोग्राम तक। बैंजीन की भी मात्रा होनी चाहिए 5 माइक्रोग्राम तक जबकि पहुंच चुकी है 10 से 15 माइक्रोग्राम तक।
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यह हैं मुख्य कारण
वाहनों का बढ़ता धुंआ, कोयला जलाना, वेस्ट टू एनर्जी प्लांट (ओखला), बायोमेडिकल कचरा जलाना (इंसीनरेटर), चिमनियों का धुंआ, औद्योगिक कचरा जलाना।
अगस्त में रखी जा रही विशेष कार्यशाला
नए प्रदूषक तत्वों को लेकर विभिन्न राज्यों के प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों के अधिकारियों को जानकारी देने के लिए सीपीसीबी ने अगस्त माह में तीन दिन की विशेष कार्यशाला रखी है। इसमें उन्हें इनके बारे में विस्तृत रूप से बताने के अलावा यह ज्ञान भी दिया जाएगा कि इन्हें मापा और रोका कैसे जाए।
एन्वायरमेंटल ट्रेनिंग यूनिट के वैज्ञानिक 'ई एवं हेड डॉ. एस के त्यागी का कहना है कि कैंसर कारक इन तत्वों की ओर पहले कभी इतना ध्यान दिया ही नहीं गया। इसकी एक प्रमुख यह रही कि किसी भी राज्य की प्रयोगशाला में इतने महीन प्रदूषक तत्वों को मापने की सुविधा ही नहीं है। लेकिन जिस तरह आबोहवा में इनकी मात्रा बढ़ रही है, इन पर ध्यान देना अत्यंत आवश्यक हो गया है। इस दिशा में विशेष दिशा-निर्देश तैयार किए जा रहे हैं। जल्द ही सभी प्रदूषण बोर्डों को इस बाबत जागरूक किया जाएगा।