निठारी कांडः युवती से दुष्कर्म व हत्या में कोली-पंधेर को सुनाई फांसी की सजा
अदालत ने शुक्रवार को निठारी कांड के एक और मामले में सुरेंद्र कोली व मोनिंदर सिंह पंधेर को फांसी की सजा सुनाई है।
गाजियाबाद (जेएनएन)। विशेष सीबीआइ कोर्ट के जज पवन कुमार तिवारी की अदालत ने शुक्रवार को निठारी कांड के एक और मामले में सुरेंद्र कोली व मोनिंदर सिंह पंधेर को फांसी की सजा सुनाई है। इससे पहले बृहस्पतिवार को अदालत ने सुरेंद्र को महिला के अपहरण के बाद दुष्कर्म, हत्या व साक्ष्य मिटाने का आरोपी माना था, जबकि मोनिंदर सिंह पंधेर को सभी अपराधों में षड्यंत्र का दोषी माना था। आज सुनवाई के दौरान सजा को लेकर दोनों पक्षों ने अपनी-अपनी राय रखी थी।
Nithari Killings: Maninder Singh Pandher & Surinder Koli sentenced to death by CBI Special Court in the ninth case.
— ANI (@ANI) December 8, 2017
सीबीआइ के विशेष लोक अभियोजक जेपी शर्मा ने बताया कि पश्चिम बंगाल की रहने वाली दो बच्चों की मां अंजलि पति से अलग होने के बाद मामा के साथ निठारी गांव में रहती थी। वह लोगों के घरों में काम करती थी।
उसके मामा ने 12 अक्टूबर 2006 को नोएडा सेक्टर 20 थाने में तहरीर दी थी, जिसमें बताया था कि अंजलि काम के लिए निकली थी, लेकिन घर वापस नहीं लौटी।
इस मामले में पुलिस ने 30 दिसंबर 2006 को रिपोर्ट दर्ज करते हुए जांच शुरू की। निठारी की डी-5 कोठी में खोदाई के दौरान अंजलि के कपड़े और चप्पल बरामद हुए थे। मृतका के दांत के डीएनए का मिलान उसकी मां व बेटे के डीएनए से मिलने के बाद पहचान पुष्ट हुई थी।
इस मुकदमे की पैरवी अभियुक्त सुरेंद्र कोली ने स्वयं की, जबकि मोनिंदर सिंह के अधिवक्ता ने की। इस मामले में सीबीआइ ने 11 जनवरी 2007 को मामला दर्ज कर जांच शुरू की थी। दो जुलाई 2007 को सीबीआइ ने चार्जशीट पेश की थी। मुकदमे में कुल 346 दिन कार्रवाई चली।
सीबीआइ की तरफ से 38 गवाह पेश किए गए, जबकि बचाव पक्ष की तरफ से एक मात्र गवाह मोनिंदर सिंह पंधेर की कंपनी में कार्यरत प्रबंधक विशाल वर्मा को पेश किया गया था।
आठ मामलों में हो चुकी है फांसी
सीबीआइ ने दोनों के खिलाफ कुल 19 मामले दर्ज किए थे। 16 मामलों में सीबीआइ ने चार्जशीट दी थी। तीन मामलों में सुबूत नहीं मिलने पर क्लोजर रिपोर्ट लगा दी गई थी, जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया था। 16 मामलों में से कुल आठ मामलों में सुरेंद्र कोली को फांसी की सजा हो चुकी है।
एक मामले में राष्ट्रपति दया याचिका खारिज कर चुके हैं। मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने प्रदेश सरकार द्वारा फांसी में देरी करने पर मृत्युदंड को आजीवन कारावास में बदल दिया था।
इसके खिलाफ सीबीआइ सुप्रीम कोर्ट में चली गई थी। इसके अलावा कुल सात मामलों में फांसी की सजा हो चुकी है। ये सभी मामले इलाहाबाद हाई कोर्ट में मामले चल रहे हैं।