Operation Vijay में ध्यानी ने दुश्मनों को चटाया धूल, पत्नी ने आज भी संभालकर रखे हैं वो 'खत'
कारगिल युद्ध के दौरान दुश्मनों से लोहा लेने के लिए कैप्टन सुमित रॉय के दिशा-निर्देश में अनसुइया ध्यानी व दस जवान प्वाइंट 4700 से घुसपैठियों को भगाकर तिरंगा फहराने के लिए निकल पड़े।
नई दिल्ली, मनीषा गर्ग। हर वक्त मेरी आंखों में देशप्रेम का स्वप्न हो
जब कभी भी मृत्यु आए तो तिरंगा मेरा कफन हो
और कोई ख्वाहिश नहीं जिंदगी में
जब कभी जन्म लूं तो भारत मेरा वतन हो
ऑपरेशन विजय के दौरान प्वाइंट 4700 पर कब्जा करने के लिए टीम के साथ राइफलमैन अनसुइया ध्यानी (Rifleman Anusuiya Dhyani) भी थे। उन्होंने दुश्मनों को मुंहतोड़ जवाब दिया और वीरगति को प्राप्त हुए। उन्होंने पाक घुसपैठियों के दांत खट्टे कर यह दिखा दिया कि भारत मां की ओर आंख उठाकर देखने वाला दुश्मन खुद ही मिट्टी में मिल जाएगा। सरकार ने उनके अदम्य साहस के लिए उन्हें वीर चक्र से सम्मानित किया।
कारगिल युद्ध के दौरान दुश्मनों से लोहा लेने के लिए कैप्टन सुमित रॉय के दिशा-निर्देश में अनसुइया ध्यानी व दस अन्य जवान प्वाइंट 4700 से घुसपैठियों को भगाकर तिरंगा फहराने के लिए निकल पड़े थे। चोटी पर चढ़ाई जितनी मुश्किल थी, उतना ही मुश्किल इस बात का अंदाजा लगा पाना भी था कि आखिर प्वाइंट पर कितने दुश्मन घात लगाए बैठे हैं और उन्हें किस तरीके से मात देनी है।
दुश्मन ऊंचाई पर होने की वजह से भारतीय सैनिकों पर नजर रख रहे थे। टीम में अनसुइया सबसे आगे आतंकियों का मुकाबला कर रहे थे। खुद भी गोलीबारी कर रहे थे और अपनी टीम का हौसला भी बढ़ा रहे थे। चोटी पर उन्होंने दुश्मनों से दो-दो हाथ किए। पाक घुसपैठियों को धूल चटाते हुए वह शहीद हो गए। इसके बाद रेजीमेंट के अन्य जवानों ने ताबड़तोड़ हमला कर आतंकियों के हौसले पस्त करते हुए उन्हें मार गिराया।
द्वारका सेक्टर-18 में रह रहीं अनसुइया की पत्नी पिंकी ध्यानी बताती हैं कि 29 जून , 1999 का वह दिन मैं कभी नहीं भूल सकती। उस दिन ने मेरे जीवन के मायनों को बदल दिया था। एक फौजी की पत्नी का मतलब है कि आप अपनी भावना व परेशानी को व्यक्त नहीं कर सकती हैं। हमें हर समय मजबूत बने रहना होता है।
वह बताती हैँ कि अनसुइया से मेरी फोन पर ज्यादा बात नहीं हो पाती थी, लेकिन उनके खत मैंने आज भी संभालकर रखे हुए हैं। जिसमें उन्होंने अपनी उपलब्धियों का जिक्र किया है। वह दुश्मनों की गतिविधियों के बारे में भी अक्सर बात करते थे। हमारी शादी के डेढ़ साल ही हुए थे, इसलिए मेरे पास उनके ज्यादा खत भी नहीं हैं। अनसुइया के बाद उनके माता-पिता की जिम्मेदारी भी मेरे कंधों पर थी। एक मां की पीड़ा को मैं अच्छी तरह समझ सकती हूं, जिसने 25 साल के अपने जवान बेटे को खो दिया था। जिस समय अनसुइया ऑपरेशन विजय पर गए थे, हमने तभी से अपने मन को पक्का कर लिया था। आज पिंकी अनसुइया के माता-पिता का बेटा बनकर उनका ध्यान रख रही हैं।
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