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दिल्ली में पेयजल किल्लत का एक ही फार्मूला: पानी का हो बेहतर और बराबर वितरण

दिल्ली-एनसीआर में पेयजल किल्लत का सबसे बड़ा कारण उपलब्ध पानी की बर्बादी और खराब प्रबंधन है। खासतौर पर दिल्ली में पानी उपलब्धता की ज्यादा कमी नहीं है बल्कि प्रति व्यक्ति पानी की खपत जरूरत से बहुत ज्यादा है। बर्बादी को रोककर पेयजल किल्लत दूर की जा सकती है।

By Vinay Kumar TiwariEdited By: Published: Wed, 23 Jun 2021 03:21 PM (IST)Updated: Wed, 23 Jun 2021 03:21 PM (IST)
पानी के बेहतर इस्तेमाल के लिए सही जल नीति का नहीं होना है।

नई दिल्ली, [रणविजय सिंह]। दिल्ली-एनसीआर में पेयजल किल्लत का सबसे बड़ा कारण उपलब्ध पानी की बर्बादी और खराब प्रबंधन है। खासतौर पर दिल्ली में पानी उपलब्धता की ज्यादा कमी नहीं है, बल्कि प्रति व्यक्ति पानी की खपत जरूरत से बहुत ज्यादा है। इसलिए पेयजल संकट का सबसे बड़ा कारण खराब प्रबंधन और पानी के बेहतर इस्तेमाल के लिए सही जल नीति का नहीं होना है। दिल्ली में जब तक इंटिग्रेटेड जल संसाधन प्रबंधन नहीं किया जाएगा तब तक पेयजल किल्लत की समस्या दूर नहीं होगी।

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बार-बार हरियाणा या किसी दूसरे राज्य पर दोषारोपण करने से बात नहीं बनेगी। दिल्ली में 40 से 50 फीसद पानी राजस्व र्बिंलग सिस्टम में नहीं है। इसका मतलब यह है कि उपलब्ध पानी का करीब 25 से 30 फीसद हिस्सा पाइपलाइन में रिसाव के कारण बर्बाद हो जाता है। इस बर्बादी को रोककर ही काफी हद तक पेयजल किल्लत दूर की जा सकती है।

निगरानी के लिए चार डिवीजन की है जरूरत

दिल्ली जल बोर्ड मौजूदा समय में औसतन 935 एमजीडी पानी आपूर्ति करता है। यदि पाइपलाइन में रिसाव के कारण पानी की बर्बादी 10 फीसद भी कम कर दी जाए तो 93 एमजीडी पानी की बचत होगी। दुनिया के कई देशों ने पानी की बर्बादी रोककर ही पेयजल आपूर्ति सुनिश्चित करने में कामयाबी हासिल की है। जापान के टोक्यो की बात करें तो वहां केवल 5.68 फीसद पानी ही राजस्व र्बिंलग सिस्टम में नहीं है।

वहीं सिंगापुर में यह आंकड़ा करीब छह फीसद है। इसका कारण यह है कि इन देशों ने पानी की बर्बादी को रोकने में कामयाबी हासिल की है। वहीं दिल्ली में भूमिगत बिछाई गई पाइपलाइन में कहां रिसाव होता है यही किसी को मालूम नहीं होता है। इसलिए निगरानी व्यवस्था बेहतर करनी होगी। हालांकि, अब रिसाव का पता लगाने लिए फ्लो मीटर लगाए जा रहे हैं, लेकिन निगरानी के लिए जल बोर्ड ने सिर्फ एक डिवीजन बना रखा है। इसमें भी नाम मात्र के कर्मचारी रखे गए हैं। दिल्ली में करीब 14 हजार किलोमीटर पानी की पाइपलाइन बिछी हुई है।

इतने बड़े नेटवर्क में रिसाव का पता लगाने के लिए चार जोन में कम से कम चार डिवीजन होने चाहिए। जिसकी जिम्मेदारी रिसाव का पता लगाकर पानी की बर्बादी तुरंत रोकना होना चाहिए। यदि इस पर जोर दिया जाए तो नए जल शोधन संयंत्र बनाने में जितना खर्च होता है उससे कम लागत में पानी आपूर्ति बेहतर हो सकेगी।

जरूरत के हिसाब से नहीं है उपलब्धता

अब बात आती है पानी वितरण की। दिल्ली में अभी प्रति व्यक्ति 212 लीटर पानी प्रति दिन उपलब्ध है। जबकि केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय के दिशानिर्देशों के अनुसार महानगरों में प्रति व्यक्ति 150 लीटर पानी उपलब्ध होना चाहिए। इसका मतलब यह हुआ कि दिल्ली में प्रति व्यक्ति पानी की खपत जरूरत से ज्यादा है। उपलब्ध पानी का वितरण भी बराबर नहीं है। कई इलाकों में प्रति व्यक्ति 300 लीटर से अधिक पानी की आपूर्ति की जाती है तो इलाके ऐसे हैं जहां लोग टैंकर पर निर्भर हैं।

इसलिए पानी के बेहतर और बराबर वितरण की जरूरत है। इसके लिए दिल्ली में जगहज गह भूमिगत जलाशय बनाए जाने थे। कई भूमिगत जलाशय नहीं बने। इस वजह से पेयजल आपूर्ति प्रभावित होती है जब तक भूमिगत जलाशय नहीं बनेंगे तब तक वितरण ठीक नहीं हो पाएगा।

(आरएस त्यागी, पूर्व तकनीकी सदस्य, जल बोर्ड, दिल्ली।)


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