Move to Jagran APP

कभी पंजाब से चलती थी दिल्ली की हुकूमत, जानिए राजधानी से जुड़ी कुछ अनसुनी बातें

1803 में अंग्रेजी सेना ने लार्ड लेक की अगुवाई में मराठों को शिकस्त देकर दिल्ली पर कब्जा कर लिया और शाह आलम को ही कठपुतली शासक बनाकर दिल्ली में अपना एक रेजीडेंट और चीफ कमिश्नर नियुक्त कर दिया।

By Prateek KumarEdited By: Published: Fri, 13 May 2022 04:46 PM (IST)Updated: Fri, 13 May 2022 04:46 PM (IST)
दिल्ली का हाई कोर्ट तो 1966 तक पंजाब में ही रहा।

नई दिल्ली [विष्‍णु शर्मा]। दिल्ली पर सवाल उठ रहे हैं कि ये पंजाब को इशारों पर नचा रही है। लेकिन बहुत से दिल्ली वालों को ये नहीं पता होगा कि पांडवों से लेकर, तमाम मुस्लिम शासकों, तोमर, चौहानों और अंगेजों की राजधानी रही दिल्ली में एक ऐसा वक्त भी आया था, जब ये पंजाब के अधीन थी। तिहाड़ जेल से लेकर यहां की पुलिस तक सब पंजाब से संचालित होते थे। दिल्ली का हाई कोर्ट तो 1966 तक पंजाब में ही रहा।

loksabha election banner

ये वो दौर था, जब मुगलों की ऐसी नौबत आ गई थी कि उन्हें मराठे संचालित कर रहे थे, कहावत है कि मुगल बादशाह शाह आलम का राज लाल किले से पालम तक ही था। 1803 में अंग्रेजी सेना ने लार्ड लेक की अगुवाई में मराठों को शिकस्त देकर दिल्ली पर कब्जा कर लिया और शाह आलम को ही कठपुतली शासक बनाकर दिल्ली में अपना एक रेजीडेंट और चीफ कमिश्नर नियुक्त कर दिया।

हिसार, रोहतक, गुड़गांव (अब गुरुग्राम), दिल्ली और करनाल को मिलाकर ये कमिश्नरी बनाई गई थी। ज्यादातर वित्तीय कामों पर अंग्रेजों का नियंत्रण था, मुगल शासक को उसके दरबार तक समेट दिया गया। फिर 1819 में दिल्ली को दो परगनों में बांटा गया, उत्तरी और दक्षिणी। बल्लभगढ़ तहसील और रोहतक का कुछ हिस्सा लेकर उनके बीच एक तहसील बनाई गई। लेकिन 1832 में चीफ कमिश्नर और रेंजीडेंट के पद को खत्म कर दिया गया और दिल्ली को उत्तर-पश्चिमी प्रांत के तहत कर दिया गया। इन दोनों अधिकारियों की ताकत को बोर्ड आफ रेवेन्यू और आगरा के हाई (सदर) कोर्ट में बांट दिया गया।

यूं बड़ी हुई दिल्ली

अंग्रेजी प्रशासन ने 1848 से 1858 के बीच दिल्ली का और भी विस्तार किया। यमुना के पूर्वी किनारे पर मेरठ और बुलंदशहर के160 गांवों को दिल्ली में जोड़ दिया गया। ये पूरा इलाका कुल 500 वर्ग किमी का था, जिसे नाम दिया गया पूर्वी परगना। ये इलाका 1858 तक दिल्ली के साथ रहा, तभी वापस उत्तर पश्चिमी प्रांत में जोड़ा गया, जब 1857 की क्रांति के बाद अंग्रेजों ने दिल्ली पर फिर से नकेल कस दी और इसे पंजाब के अधीन कर दिया। पूर्वी परगना को फिर दिल्ली से अलग कर दिया गया। दिल्ली को पंजाब की अंबाला डिवीजन का हेडक्वार्टर बना दिया गया।

वर्ष 1861 में सोनीपत तहसील को दिल्ली में शामिल कर दिया गया और 1862 से दिल्ली में तीन तहसील थीं बल्लभगढ़, सोनीपत और दिल्ली। 1912 में जब अंग्रेज कलकत्ता (अब कोलकाता) से राजधानी को दिल्ली लेकर आए तब दिल्ली को पंजाब से फिर से अलग करके एक अलग प्रांत बना दिया गया, लेकिन इसमें केवल दिल्ली तहसील और महरौली थाना ही था। सोनीपत को रोहतक में शामिल कर दिया गया, बल्लभगढ़ का ज्यादातर हिस्सा गुड़गांव (अब गुरुग्राम) में शामिल कर दिया, जो पंजाब में ही था, लेकिन दिल्ली को बदले में मिला शाहदरा, संयुक्त प्रांत (यूपी) के मेरठ जिले की गाजियाबाद तहसील के 65 गांव शाहदरा के साथ दिल्ली को दे दिए गए। कुल 47 वर्ग किमी का ये क्षेत्र था। फिर 1950 तक दिल्ली एक जिले और एक तहसील के साथ केंद्र से ही शासित होता रहा, 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू होते ही दिल्ली को पार्ट सी स्टेट बना दिया गया। 1951 में दिल्ली को 48 सदस्यों वाली विधानसभा मिल गई। 1956 के एक्ट से केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया।

हालांकि 1912 के बाद दिल्ली को पंजाब प्रांत से हटाकर नया प्रांत और देश की राजधानी भी बना दिया गया फिर भी उसका हाई कोर्ट पंजाब में ही रहा। दरअसल 1865 में एक चीफ कोर्ट बनाकर उसके तहत पंजाब और दिल्ली को रखा गया था, जिसका स्तर बढ़ाकर 1919 में हाई कोर्ट कर दिया गया। बाद में इसे शिमला भेजकर, एक सर्किट बेंच 1952 में दिल्ली में बना दी गई, लेकिन दिल्ली को अपना हाई कोर्ट 1966 में ही मिला, तब तक पंजाब हाई कोर्ट में ही सारे केस जाते थे। इसी तरह 1912 के बाद भी कापरेटिव सोसायटीज का काम पंजाब के जिम्मे ही रहा, गुडग़ांव का असिस्टेंट रजिस्ट्रार उन्हें देखता रहा, जब अपना असिस्टेंट रजिस्ट्रार मिला तो वो भी अंबाला में रिपोर्ट करता था। उससे 1947 में ही मुक्ति मिली। यहां तक कि 1966 तक तिहाड़ जेल भी पंजाब के जेल अधिकारी ही चलाते थे, ये अधिकारी लंबी सजा वाले कैदियों को पंजाब की जेलों में भेजते थे और कम सजा वाले पंजाबी कैदियों को भी तिहाड़ में। इसी तरह लंबे समय तक दिल्ली पुलिस अंबाला में डीआइजी हेडक्वार्टर से आदेश लेती रही। दिल्ली पुलिस के पास अपना कोई पुलिस ट्रेनिंग कालेज भी 1969 तक नहीं था, वो अपने अधिकारियों को पंजाब के फिल्लौर ही ट्रेनिंग के लिए भेजती रही।

पोस्टल सर्विसेज भी अंबाला के पोस्ट मास्टर जनरल के अधीन काम करती रहीं। इसी तरह दिल्ली की नगर पालिका भी 1911 के पंजाब नगर पालिक एक्ट से 1957 तक संचालित होती रहीं। पंचवर्षीय योजनाओं के लिए भी दिल्ली-पंजाब के संयुक्त फाइनेंस कारपोरेशन तब तक बने रहे, जब तक 1962 में दिल्ली का अपना नहीं बन गया। दिल्ली की जनगणना भी इसी वजह प्रभावित होती रही, हर बार सीमाएं बदल जाती थीं। 1911 तक चार जनगणनाएं पंजाब के हिस्से के तौर पर हुईं तो उसके बाद दिल्ली खुद एक अलग प्रांत बन गया और बढ़ते बढ़ते 1961 तक दिल्ली का क्षेत्र 1484 वर्ग किमी पहुंच गया।

सबसे खास बात आज पंजाब दिल्ली के स्कूलों से सीख रहा है, लेकिन 1926-27 में एजुकेशन के मामले में भी पंजाब कंपलसरी एजुकेशन एक्ट के जरिए ही दिल्ली नगर पालिका शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति लाने की कोशिश कर रही थी तब दिल्ली में केवल 58 प्राइमरी स्कूल थे।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.