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महान स्मारकों व मकबरों की दो गज जमीन पर भी बना लिया आशियाना, असहाय और लाचार दिखे अफसर

लोगों ने स्मारकों के चारों ओर दीवारें तक बना ली हैं और उनके ऊपरी भाग को देख कर ही पता चलता है कि दीवारों के अंदर स्मारक कैद हैं।

By Ramesh MishraEdited By: Published: Sun, 06 May 2018 09:46 AM (IST)Updated: Thu, 10 May 2018 03:24 PM (IST)
महान स्मारकों व मकबरों की दो गज जमीन पर भी बना लिया आशियाना, असहाय और लाचार दिखे अफसर

नई दिल्ली [ वीके शुक्ला ] । हुमायूंपुर में ही नहीं दिल्ली के अन्य क्षेत्रों में स्थित स्मारकों पर भी कब्जे हो चुके हैं। जिन एजेंसियों को ऐतिहासिक व सांस्कृतिक धरोहर को संजोने की जिम्मेदारी दी है, वह असहाय लाचार हैं। इसके चलते दिल्‍ली के ऐतिहासिक स्मारकों पर अवैध कब्जे निरंतर हो रहे हैं।

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जमीन की बढ़ी कीमतें और लोगों की नीयत में आई खोंट से ऐतिहासिक बस्ती निजामुद्दीन में तो तिलंगानी के मकबरे सहित आधा दर्जन से अधिक स्मारकों पर अवैध कब्जा कर परिवार रह रहे हैं। लोगों ने स्मारकों के चारों ओर दीवारें तक बना ली हैं और उनके ऊपरी भाग को देख कर ही पता चलता है कि दीवारों के अंदर स्मारक कैद हैं।

हालात इस कदर खराब हैं कि इन स्मारकों की फोटो खींचना तो दूर सामने खड़े होकर इन स्मारकों के बारे में बात भी नहीं कर सकते हैं। आपका जानकर हैरानी होगी कि जिस शहर में पर्यटन को बढ़ावा दिए जाने की बात की जा रही है इसी शहर में पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण निजामुद्दीन बस्ती में आए दिन पर्यटकों के साथ अभद्र व्यवहार होता है।

ऐसे में बस्ती के अंदर दीवारों में कैद स्मारकों को देखने की पर्यटक हिम्मत तक नहीं जुटा पाते। यदि गलती से कोई पर्यटक यहां पहुंच गया और स्मारकों की फोटो खींचने लगा तो स्मारकों में कब्जा कर रह रहे शरारती तत्व भिड़ जाते हैं, कैमरा मोबाइल छीन लेते हैं और मारपीट तक करने पर उतारू हो जाते हैं। शिकायत करने पर पुलिस भी नहीं सुनती। आइये कम कराते हैं कुछ ऐसे स्मारकों से रूबरू

तिलंगानी का मकबरा

यह मकबरा निजामुद्दीन बस्ती के कोर्ट क्षेत्र में स्थित है। यहां पहुंचने के लिए टेढी-मेढ़ी तंग गलियों से गुजरना पड़ता है। मकबरे में आधा दर्जन से अधिक परिवार रहते हैं। विशाल मकबरा के अंदर कई कब्रें थीं जो गायब कर दी गई हैं। अंदर के भाग में दीवारें बना दी गई हैं।

यह मकबरा फिरोजशाह तुगलक (1351-88) के वजीरे-आजम खाने जहां तिलंगानी का है। जिनका असली नाम खाने जहां मकबूल खां था। जो एक बरामदे से घिरा है और एक गुम्बद से ढका है। इसकी प्रत्येक दिशा में तीन-तीन महरावी दरवाजे हंै। वास्तुकला की दृष्टि से दिल्ली में पहला अष्टभुजाकार मकबरा है।

लाल महल का हाल

यह स्मारक निजामुद्दीन बस्ती में  निजामुद्दीन थाने से कुछ मीटर की दूरी पर स्थित है। 1947 से पहले से इसके अंदर एक परिवार रहता था। 2012 में इसे तोड़कर एक बिल्डर इमारत बना रहा था। कुछ हिस्सा तोड़ भी दिया गया था।

प्रशासन की सख्ती के बाद इसे टूटने से बचा लिया गया था। मगर इस पर अभी भी प्राइवेट लोगों का ही कब्जा है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) की सूची में मकबरा शामिल नहीं है।

लाल महल स्मारक आठ सौ साल पुराना है। इसे गयासुद्दीन बलबन ने बनवाया था। सबसे पहला गुम्मद इसी महल में बनवाया गया था। इसमें अलाउद्दीन खिलजी का पहली  राजतिलक हुआ था। भारत यात्रा के दौरान इब्नू बबूता इसी में रहा था। अमीर खुसरो भी इसी में रहे थे।

दो सिरिया गुम्मद

निजामुद्दीन बस्ती में ही एक स्मारक है। जिसमें कभी दो गुम्मद थे। मगर एक तोड़ दिया गया है। जबकि गुम्मद बचा है। मगर इसमें भी लोग रहते हैं।

बावली के पास वाला गुम्मद

निजामुद्दीन औलिया की बावली के साथ ही एक गुम्मद है। बावली की ओर से तो उसका पीछे का ऊपरी  भाग दिखता है। मगर नीचे का भाग  दीवार से ढक दिया गया है। जबकि सामने के भाग से यह स्मारक नहीं दिखता है। इसे ईंटों से ढक दिया गया है। 

गुमनामी में खो गया नगीना महल

नगीना महल बहादुर शाह जफर की पत्नी जीनत महल की बहन थीं। जिनका महल पुरानी दिल्ली के शाहजहानाबाद के फर्राश खाना में है। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान बहादुर शाह जफर ने यहां कई बार गुप्त बैठकें की थीं। आज भी यह सुरंग मौजूद है। नगीना महल ने प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन में दिल्ली के गांवों में घूम घूम कर बहादुर शाह जफर से लिए जन समर्थन जुटाया था। इस महल में मकान बन गए हैं। मगर इसके अंदर फैक्ट्रियां चल रही हैं। यह महल कई बार बिक चुका है।

हैरिटेज एक्टिविस्ट विक्रमंत सिंह रूपराय का कहना है कि विभागों की लापरवाही से स्मारकों पर कब्जे हुए हैं। कानून में थोड़ा सा लोचा होने के कारण भी विभाग ऐसे मामलों में कार्रवाई नहीं करते और इन पर अवैध कब्जे हो जाते हैं। लाल महल को बचाने के लिए हम लोगों ने 2012 में सेव लाल महल के नाम से अभियान चलाया था। तब जाकर इसे  बचाया जा सका। तिलंगानी सहित अन्य कई मकबरों पर भी लोगों का कब्जा है। आगा खां ट्रस्ट ने इन स्मारकों के संरक्षण के लिए काम किया है। सरकार को चाहिए कि ऐसे मामलों को गंभीरता से लिया जाए।


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