नौ राज्यों में एक भी ई-रिक्शे का पंजीकरण न होने से गडकरी चिंतित
गडकरी ने ई-रिक्शा पॉलिसी की समीक्षा के लिए बैठक बुलाई थी। इसमें पाया गया कि जम्मू-कश्मीर, चंडीगढ़, ओडिशा, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, त्रिपुरा तथा गोवा में अभी तक एक भी ई-रिक्शे का पंजीकरण नहीं हुआ है।
नई दिल्ली [जेएनएन]। जम्मू-कश्मीर व चंडीगढ़ समेत नौ राज्यों में एक भी ई-रिक्शे का पंजीयन न होने पर सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने चिंता प्रकट की है। उन्होंने राज्यों में अवैध ई-रिक्शों के चलन पर भी रोष जताया और अधिकारियों को इसकी वजह जानकर उनका निदान करने के निर्देश दिए।
गडकरी ने सोमवार को ई-रिक्शा पॉलिसी की समीक्षा के लिए बैठक बुलाई थी। इसमें पाया गया कि जम्मू-कश्मीर, चंडीगढ़, ओडिशा, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, त्रिपुरा तथा गोवा में अभी तक एक भी ई-रिक्शे का पंजीकरण नहीं हुआ है।
गडकरी ने जब इसकी वजह जाननी चाही तो अधिकारियों ने जीएसटी और रोड टैक्स समेत विभिन्न करों की दरों का हवाला देते हुए कहा कि ई-रिक्शा निर्माता और विक्रेता दोनों ही कर की ऊंची दरों को ई-रिक्शों का पंजीकरण न होने की मुख्य वजह बता रहे हैं। इसके अलावा टेस्टिंग एजेंसी से जुड़े मुद्दे भी पंजीकरण में बाधक साबित हो रहे हैं।
ऊंचे कर व शुल्क
उदाहरण के लिए ई-रिक्शे पर जीएसटी की दर सर्वाधिक 28 फीसद है। निर्माता व विक्रेता इसे 12 फीसद पर लाए जाने की मांग कर रहे हैं। इसके अलावा तीन पहिया वाहनों की टेस्टिंग फीस बहुत बढ़ गई है। टेस्टिंग एजेंसियां ई-रिक्शे में ब्रांडेड पुर्जो-बैटरी, टायर, रिम लाइट आदि के उपयोग के बावजूद उनकी गुणवत्ता की अलग से जांच करने पर जोर देती हैं। यही नहीं, ई-कार्ट का पंजीकरण इनके छोटे साइज के कारण नहीं हो रहा है। निर्माता लंबाई को 3500 सेमी व चौड़ाई को 1100 सेमी करने की मांग कर रहे हैं।
अवैध ई-रिक्शे
बैठक में दिल्ली, उत्तर प्रदेश, असम और पश्चिम बंगाल में लाखों अवैध ई-रिक्शे चलने का मुद्दा भी उठा। इसके पीछे मुख्य कारण आरटीओ द्वारा पंजीकरण व ड्राइविंग लाइसेंस जारी करने में सहयोग न दिया जाना बताया गया। दिल्ली में तीन वर्षो में केवल 35 हजार ई-रिक्शे वैध रूप से पंजीकृत हुए हैं। जबकि पश्चिम बंगाल में ऐसे ई-रिक्शों की संख्या मात्र 1500 है। बाकी सभी अवैध रूप से चल रहे हैं। बैठक में शिकायत की गई कि किसी राज्य में अवैध ई-रिक्शों के खिलाफ आज तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है।
सब्सिडी
बैठक में बताया गया कि ई-रिक्शों का समुचित चलन न हो पाने के पीछे इलेक्ट्रिक वाहनों को मिलने वाली सब्सिडी न मिल पाना भी एक कारण है। यह सब्सिडी केवल उन्हीं इलेक्ट्रिक वाहन निर्माताओं को मिलती है जो सोसायटी ऑफ मैन्युफैक्चरर्स ऑफ ई-वेहिकल्स (एसएमईवी) के सदस्य हैं। चूंकि ई-रिक्शा निर्माता इसके सदस्य नहीं हैं, लिहाजा उन्हें सब्सिडी का लाभ नहीं मिलता।
फाइनेंस की दिक्कत
फाइनेंस कंपनियों ने ई-रिक्शों को फाइनेंस करना भी बंद कर दिया है। क्योंकि एक बार खरीदने के बाद ई-रिक्शे को ट्रांसफर नहीं किया जा सकता।
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