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कौशल आधारित पाठ्यक्रम, स्टार्टअप व अनुसंधान को बढ़ावा देगा

अगले 5 साल में वर्ल्ड यूनिवर्सिटी हेल्थ सेंटर को स्थापित करने का लक्ष्य रहेगा। यह एक अस्पताल की तरह होगा जिसमें कई डॉक्टर काम करेंगे और मरीजों का सुगम इलाज हो सकेगा।

By Prateek KumarEdited By: Published: Mon, 02 Sep 2019 10:05 AM (IST)Updated: Mon, 02 Sep 2019 10:05 AM (IST)
कौशल आधारित पाठ्यक्रम, स्टार्टअप व अनुसंधान को बढ़ावा देगा
कौशल आधारित पाठ्यक्रम, स्टार्टअप व अनुसंधान को बढ़ावा देगा

नई दिल्‍ली (राहुल मानव)। गुरु गोबिंद सिंह इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय (आइपी यूनिवर्सिटी) की स्थापना वर्ष 1998 में दिल्ली सरकार ने की थी। इस विश्वविद्यालय में इंजीनियरिंग, मॉस कम्युनिकेशन, आर्किटेक्चर, मेडिकल के कई कोर्सों को पढ़ाया जाता है। लेकिन, अब शिक्षण संस्थान की तरफ से कौशल आधारित और नौकरी उन्मुख पाठ्यक्रमों को भी शुरू करने की दिशा में काम किया जाएगा। छात्रों को बेहतर प्लेसमेंट के अवसर उपलब्ध हो सकें, इसके लिए संस्थान के केंद्रीय प्लेसमेंट सेल का भी विस्तार किया जाएगा। अगले पांच साल में वल्र्ड यूनिवर्सिटी हेल्थ सेंटर एवं कई नए कोर्सों को भी शुरू करने का लक्ष्य है। साथ ही अब स्टार्टअप और शोध को भी शिक्षण संस्थान बढ़ावा देगा। शिक्षण क्षेत्र से जुड़े इन्हीं सब मुद्दों पर विश्वविद्यालय के नए कुलपति प्रो. महेश वर्मा से राहुल मानव ने बातचीत की।

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आप मौलाना आजाद इंस्टीट्यूट ऑफ डेंटल साइंसेज के निदेशक रह चुके हैं। मेडिकल के क्षेत्र में आपका काफी योगदान रहा है और पद्मश्री सम्मान से भी नवाजे गए हैं। आपके इस अनुभव का लाभ संस्थान को और छात्रों को कैसे मिलेगा, अगले पांच साल में कौन से महत्वपूर्ण काम करेंगे?


अगले पांच साल में विश्वविद्यालय में वर्ल्ड यूनिवर्सिटी हेल्थ सेंटर को स्थापित करने का लक्ष्य रहेगा। यह एक अस्पताल की तरह होगा जिसमें कई डॉक्टर काम करेंगे और मरीजों का सुगम इलाज हो सकेगा। साथ ही आज के दौर में हमें व्यावहारिक, नौकरी और कौशल उन्मुखी पाठ्यक्रमों को तैयार करना चाहिए। ऐसे ही कई पाठ्यक्रमों को शुरू किया जाएगा। कौशल आधारित कोर्सों को शुरू करेंगे, जिससे छात्रों को डिग्री हासिल करने के बाद नौकरी के अवसर प्राप्त हो सकें। आइपी विश्वविद्यालय एक टेक्निकल यूनिवर्सिटी है, जिसमें मेडिकल के कई कॉलेज भी मौजूद हैं, नैनो साइंस, फॉर्मेसी जैसे क्षेत्रों में यहां छात्रों को पढ़ाया जाता है। इसको और बढ़ाएंगे। जो मुङो इंफ्रास्ट्रक्चर, शिक्षा का अनुभव मिला है उसी के आधार पर संस्थान के लिए बहुत से काम किए जाएंगे। संस्थान के द्वारका कैंपस में एक बड़ा ऑडिटोरियम भी तैयार करेंगे।


आइपी विश्वविद्यालय, दिल्ली सरकार का शिक्षण संस्थान है। जिस तरह से दिल्ली के सरकारी स्कूलों में खुशी एवं उद्यमी पाठ्यक्रम को सरकार ने लागू किया है। क्या इसी तर्ज पर संस्थान में भी ऐसे पाठ्यक्रम शुरू किए जाएंगे?

मेरा मानना है कि अगर आपका स्टाफ खुश नहीं है तो वह अच्छा काम नहीं कर सकता है। हमें अपने स्टाफ को प्रोत्साहित करते हुए खुशी जैसा पाठ्यक्रम शुरू करना चाहिए। मैंने मौलाना आजाद इंस्टीट्यूट ऑफ डेंटल साइंसेज में स्टाफ में खुशी को बढ़ावा देते हुए ऐसी ही चीजें लागू की थीं। इससे जो नकारात्मकता होती है, उसको सकारात्मकता में बदला जा सकता है। शिक्षा ज्ञान, कौशल और प्रवृत्ति से बनती है। ज्ञान हमें थ्योरी से मिलता है, कौशल हमें व्यावहारिकता से मिलता है और प्रवृत्ति हमें खुशी से प्राप्त होती है। इसी की तर्ज पर संस्थान में खुशी के पाठ्यक्रम को शुरू किया जाएगा। साथ ही छात्रों के लिए उद्यमी पाठ्यक्रमों को भी शुरू करेंगे।


कई शिक्षण संस्थानों में स्टार्टअप को बढ़ावा दिया जा रहा है। इसके लिए आपकी क्या तैयारियां हैं?

संस्थान में जल्द ही एक इंक्यूबेशन सेंटर को स्थापित किया जाएगा। इसमें जिस तरह से स्टार्टअप कंपनियों को शुरू करने के लिए छात्रों को सहायता प्रदान की जाती है उसी प्रकार का सेंटर आइपी विश्वविद्यालय में भी तैयार किया जाएगा। इसके लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) को पत्र भी लिख दिया गया है। सेंटर स्थापित करने की दिशा में काम शुरू हो चुका है।

आइपी विश्वविद्यालय में शोध को बढ़ावा देने की जरूरत है। आपको क्या लगता है कि आज के दौर में किसी भी शिक्षण संस्थान के लिए रिसर्च एंड डेवलपमेंट कितना अहम कार्य बन गया है?

आइपी विश्वविद्यालय में शोध के कार्यों में काफी काम हुआ है। लेकिन मैं मानता हूं कि इसको और बढ़ाने की जरूरत है। बीते तीन वर्षों में अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर संस्थान के 1,751 रिसर्च पेपर प्रकाशित हुए हैं। 38 रिसर्च प्रोजेक्ट के लिए कई एजेंसियों से फंड भी मिला है। लेकिन, अब शिक्षकों और छात्रों को इसके लिए और प्रोत्साहित किया जाएगा। संस्थान के शिक्षक कई शोध में काम कर रहे हैं। अब काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (सीएसआइआर) और डिपार्टमेंट ऑफ बॉयोटेक्नोलॉजी (डीबीटी) जैसी भारत सरकार की संस्थाओं से शोध के लिए अतिरिक्त फंड भी जुटाने के लिए प्रयास किए जाएंगे। साथ ही कई उद्योगों के साथ औद्योगिक संबंध भी कायम किए जाएंगे। जिससे उद्योग हमारे शिक्षकों और छात्रों के शोध के कार्यों में में सहयोग करें।


विश्वविद्यालय की एनआइआर रैंकिंग में कैसे सुधार किया जाएगा? इसके लिए क्या प्रयास किए जाएंगे?

मानव संसाधन विकास मंत्रलय (एमएचआरडी) की नेशनल इंस्टीट्यूशनल रैंकिंग फ्रेमवर्क (एनआइआरएफ) 2019 की रैंकिंग में आइपी विश्वविद्यालय की देशभर में 66वीं रैंक आई है। वहीं सभी शिक्षण संस्थानों की देश की समग्र रैंकिंग में इसका स्थान 95 आया है। लेकिन, इसको और बेहतर करने के लिए काम किया जाएगा। इसके लिए पांच पैरामीटर निर्धारित किया जाएगा। पहला है शिक्षण अध्ययन एवं संसाधन, दूसरा अनुसंधान एवं व्यावसायिक अभ्यास, तीसरा स्नातक कोर्स को पढ़ने के बाद छात्रों की प्लेसमेंट , चौथा है आउटरीच एवं विशिष्टता और पांचवां है धारणा। मुङो जानकारी मिली है कि धारणा में हमें कम अंक इस वर्ष की रैंकिंग में मिले थे। लेकिन, अब इसके लिए रोडमैप तैयार किया जा रहा है। पाठ्यक्रमों में आधुनिकीकरण किया जाएगा। साथ ही कौशल आधारित पाठ्यक्रमों को बढ़ावा दिया जाएगा। संस्थान की प्लेसमेंट सेल का विस्तार किया जाएगा ताकि डिग्री करने के बाद छात्रों को नौकरी के अच्छे अवसर मिल सकें।

आइपीयू से कई कॉलेजों का एफिलिएशन है। कई बार कॉलेज के छात्रों की तरफ से कॉलेज प्रशासन के खिलाफ शिकायतें भी आती हैं। इन्हें कैसे दूर करेंगे?

देखिए, यह संस्थान बहुत बड़ा है, जिसमें हर साल 33 हजार छात्रों के दाखिले होते हैं। वहीं स्नातक डिग्री के तीनों वर्षों एवं अन्य कोर्सों को मिलाकर पढ़ने वाले छात्रों की संख्या एक लाख से ज्यादा हो जाती है। ऐसे में विश्वविद्यालय प्रशासन का यह दायित्व है कि वह छात्रों के हितों को ध्यान में रखते हुए काम करें। मैं, अपने पांच वर्ष के कार्यकाल में विश्वविद्यालय से संबद्ध (एफिलिएटेड) सभी कॉलेजों में जाकर विजिट करूंगा। साथ ही हर वर्ष विश्वविद्यालय की तरफ से जो कॉलेजों का ऑडिट होता है उसे और व्यापक तरीके से विस्तार किया जाएगा। संस्थान शिकायत मिलने पर औचक निरीक्षण भी करता है। बीते वर्षों में शिकायतों के मामले में ऑडिट रिपोर्ट आने के बाद कुछ कॉलेजों की संबद्धता खत्म कर दी गई है।

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