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दुर्भाग्यः आजाद भारत में कैद हैं नेताजी सुभाष चंद्र बोस की स्मृतियां

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) के अधीन इस स्मारक के दूसरे बैरक को कई महीनों से बंद कर दिया गया है। इसी में नेताजी की स्मृतियों को रखा गया है।

By JP YadavEdited By: Published: Mon, 23 Jan 2017 08:14 AM (IST)Updated: Mon, 23 Jan 2017 07:53 PM (IST)
दुर्भाग्यः आजाद भारत में कैद हैं नेताजी सुभाष चंद्र बोस की स्मृतियां
दुर्भाग्यः आजाद भारत में कैद हैं नेताजी सुभाष चंद्र बोस की स्मृतियां

नई दिल्ली (विजयालक्ष्मी)। नेताजी सुभाष चंद्र बोस का नाम सुनते ही अंग्रेजों को पसीना आ जाता था। आजादी के लिए उन्होंने अपना जीवन दांव पर लगा दिया। लेकिन यह दुर्भाग्य ही है कि आजादी के महान योद्धा की स्मृतियां दिल्ली में कैद पड़ी हैं। जी हां। सलीमगढ़ किला स्थित नेताजी की स्मृति पर ताला जड़ा हुआ है।

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भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) के अधीन इस स्मारक के दूसरे बैरक को कई महीनों से बंद कर दिया गया है। इसी में नेताजी की स्मृतियों को रखा गया है। ताले जड़े बैरक में न ही कोई मरम्मत कार्य चल रहा है और न ही इसे दोबारा खोलने की कोई योजना है। लिहाजा लालकिले से दो किलोमीटर की दूरी तय कर आने वाले पर्यटकों को निराशा हाथ लग रही है।

आजाद हिंद फौज की याद में बना है स्मारक

सलीमगढ़ किले के दो बैरकों में आजाद हिंद फौज के जांबाज सैनिकों की याद में स्मारक बनाया गया था। साल 1995 में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा ने इसका उद्घाटन किया था। स्मारक में आजाद हिंद फौज की महिला कमांडर लक्ष्मी सहगल व कर्नल गुरबख्श सिंह ढिल्लों की कोशिशों से यहां नेताजी की कुछ स्मृतियों को रखा गया था।

दोनों कमांडर जीवनर्पयत यहां आते थे,लेकिन इनकी मौत के बाद इसकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। बैरक नंबर एक में आजाद हिंद फौज के जांबाज कमांडरों की तस्वीरें और वर्दियां रखी हैं। बैरक नंबर दो में नेताजी की कुछ वस्तुएं रखी गई थीं, जो, सीलन से खराब हो गई हैं। विभागीय लोगों की मानें तो दो साल से ताला लगा है।

संग्रहालय के अधिकारी बैरक की मरम्मत की देरी के लिए दिल्ली सर्कल को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। सलीमगढ़ के किले के सभी स्मारक दिल्ली सर्कल के तहत आते हैं। लिहाजा इसमें मरम्मत के काम को करवाना भी उन्हीं की जिम्मेदारी है। इस संबंध में कई बार पत्र लिखा जा चुका है।

जर्जर हालात में जेल

आजाद हिंद फौज के कमांडरों को जिस जेल में कैद कर रखा गया था, वो जेल भी खस्ताहाल में हैं। वहां बरसों से न तो सफाई हुई है और न ही बोर्ड को बदला गया। बस जेल का बोर्ड ही पढ़ा जा सकता है। यहां साल 1945 से लेकर 1947 तक आजाद हिंद फौज के युद्ध बंदियों को रखा गया।

पूरे प्रकरण पर दिल्ली सर्कल के अधीक्षक दलजीत सिंह से संपर्क साधने की कोशिश की गई, लेकिन उन्होंने फोन नहीं उठाया।


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