दिल्ली में आग से 18 से अधिक लोगों की हो चुकी है मौत, जानिये- कैसे टाला जा सकता है हादसों को
नियम के बावजूद आग लगने की घटनाओं को रोकने के प्रति न तो स्थानीय निकाय सचेत है और न ही लोग। लिहाजा, राजधानी में आग लगने की घटनाएं रोजाना रिकॉर्ड बना रही हैं। राजधानी में आग लगने की घटनाओं में लगातार इजाफा हो रहा है। आग की चपेट में आकर जहां
नई दिल्ली (संतोष शर्मा)। राजधानी में आग लगने की घटनाओं में लगातार इजाफा हो रहा है। आग की चपेट में आकर जहां बहुमूल्य मानव जीवन समाप्त हो रहा है, वहीं करोड़ों की संपत्ति का नुकसान भी उठाना पड़ रहा है। भीषण दुर्घटना होने पर थोड़ा शोर-शराबा होने के बाद मामला शांत हो जाता है, लेकिन सोचने वाली बात यह है कि राजधानी में लगने वाली आग की इन घटनाओं पर कैसे काबू पाया जा सकेगा? इसके लिए दोषी कौन है और भविष्य में इसमें कमी कैसे लाई जा सकती है। दैनिक जागरण ने इन्हीं मुद्दों पर तीन दिन तक चलने वाली सीरिज की शुरुआत की है। इसमें सवाल उठाए जाने के साथ ही आग से बचाव की जानकारी देने का प्रयास किया गया है, ताकि हमारा और आपका परिवार आग से सुरक्षित रह सके।
दिल्ली में दिनों-दिन जहां आबादी में तेजी से वृद्धि हो रही है, वहीं रहने के लिए कॉलोनियों में बेतरतीब इमारतों के निर्माण के साथ ही कारोबार के लिए व्यावसायिक इलाके बढ़ते जा रहे हैं। इन स्थानों पर जानलेवा आग से सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम नहीं हैं। नियम के बावजूद आग लगने की घटनाओं को रोकने के प्रति न तो स्थानीय निकाय सचेत है और न ही लोग। लिहाजा, राजधानी में आग लगने की घटनाएं रोजाना रिकॉर्ड बना रही हैं।
गत अप्रैल में दिल्ली अग्निशमन विभाग के पास आग लगने की 33 सौ कॉल आई। अलग-अलग घटनाओं में आग की चपेट में आकर 18 से ज्यादा लोग असमय मौत के मुंह में समा गए, वहीं करोड़ों रुपये की संपत्ति का नुकसान भी हुआ।
पुरानी दिल्ली के इलाके में हालत ज्यादा खराब
अनधिकृत कॉलोनियां और पुरानी दिल्ली के इलाके हैं असुरक्षित पॉश इलाकों में तो आग से बचाव की स्थिति काफी हद तक ठीक है, लेकिन अनधिकृत कॉलोनियों व पुरानी दिल्ली के इलाकों में स्थिति ज्यादा खराब है। पुरानी दिल्ली में ज्यादातर पुरानी इमारतें हैं। लिहाजा, वहां अग्निशमन के उपाय नहीं किए गए हैं। अनधिकृत कॉलोनियों में कई बहुमंजिली इमारतें बना दी गई हैं। कई में अवैध व्यावसायिक गतिविधियां भी चलाई जा रही हैं। अतिक्रमण के कारण आग लगने पर वहां दमकल की गाड़ियां तक नहीं पहुंच सकतीं।
व्यावसायिक क्षेत्र की स्थिति भी नहीं है संतोषप्रद
व्यावसायिक क्षेत्र की स्थिति भी आग से बचाव के मामले में संतोषप्रद नहीं है। दरअसल, स्थानीय निकाय को यह पता ही नहीं है कि किस परिसर में कौन सा व्यवसाय चल रहा है। कई ने बगैर एजेंसी को बताए अपना व्यवसाय बदल दिया तो कुछ ने परिसर को दूसरे को किराये पर दे दिया। इनमें से कई में तो धड़ल्ले से खतरनाक कारोबार किए जा रहे हैं। गत दिनों बवाना औद्योगिक क्षेत्र में पटाखे की अवैध फैक्ट्री में हुई भीषण घटना में कई लोगों की मौत एजेंसियों की लापरवाही का परिणाम है। दुर्घटना के बाद कई विभागों ने इसका ठीकरा दूसरे पर फोड़ना शुरू कर दिया था।
नियम हैं, लेकिन उनका नहीं होता कड़ाई से पालन
अग्निशमन विशेषज्ञों के मुताबिक ऐसा नहीं है कि आग से बचाव को लेकर नियम नहीं बनाए गए हैं। दिल्ली फायर सर्विस एक्ट-2010 में आग से बचाव के लिए भवनों में नियमित व्यवस्था का प्रावधान है। इन इलाकों में भी 15 मीटर से ज्यादा ऊंचे आवासीय भवन में आग से बचाव किया जाना जरूरी है, वहीं कई व्यावसायिक परिसर में अलग-अलग मानक के मुताबिक आग से बचाव की व्यवस्था होनी चाहिए, लेकिन इन नियमों का पालन नहीं किया जा रहा है। विशेषज्ञ के मुताबिक नियम का कड़ाई से पालन करने के लिए अधिकारियों की जवाबदेही तय करनी होगी।
यह भी हैं बड़ी वजहें
1. अग्निशमन विभाग में कर्मचारियों की कमी राजधानी में आग बुझाने से लेकर अग्निशमन प्रमाणपत्र की जांच का जिम्मा इत्यादि का काम जिस अग्निशमन विभाग के पास है वहां कर्मचारियों का भारी टोटा है।
2. विभाग में स्वीकृत पद से 46 फीसद कर्मी कम हैं।
3. करीब 1800 कर्मचारियों के ऊपर है पौने दो करोड़ दिल्लीवासियों का जिम्मा है। लंबे समय से कर्मचारियों की बहाली नहीं हुई है।
4. हाल में एक हजार फायर ऑपरेटर के पद को भरे जाने की कार्रवाई शुरू हुई थी, लेकिन कानूनी अड़चन के कारण उस पर भी रोक लग गई।
5. दिल्ली में हर जिले में एक-एक दमकल केंद्र बनाने की योजना भी परवान नहीं चढ़ पाई है।
6. प्रस्तावित 72 में से अब तक केवल 61 दमकल केंद्र ही चालू हो सके हैं।