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गुलाम बनाने के लिए लागू की गई थी मैकाले की शिक्षा प्रणाली: मोहन भागवत

भागवत ने कहा कि हम कितना कमाते हैं, यह महत्वपूर्ण नहीं है, हम कितना दान कर पाते हैं, यह मायने रखता है।

By Amit MishraEdited By: Published: Tue, 23 May 2017 08:43 PM (IST)Updated: Wed, 24 May 2017 06:43 PM (IST)
गुलाम बनाने के लिए लागू की गई थी मैकाले की शिक्षा प्रणाली: मोहन भागवत

नई दिल्ली [जेएनएन]। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि लोग गुलाम बने रहें, इसके लिए मैकाले की शिक्षा प्रणाली लागू की गई थी, जो अब भी शेष है। शिक्षा ऐसी होनी चाहिए, जो मनुष्य को मनुष्य बनाए। शिक्षित होकर उच्च पदों पर आसीन होना बड़ी बात नहीं है। बड़ी बात यह है कि शिक्षा ग्रहण करने के बाद हम समाज को कितना दे पाते हैं।

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भागवत मंगलवार को दिल्ली के भलस्वा डेरी इलाके में विद्या भारती से संबद्ध समर्थ शिक्षा समिति की ओर से संचालित राव मेहर चंद सरस्वती विद्या मंदिर के नए भवन के शिलान्यास के मौके पर बोल रहे थे।

कितना दान कर पाते हैं, यह मायने रखता है

भागवत ने कहा कि हमारे देश में धनपतियों की महिमा का बखान नहीं किया जाता है। ऐसा अन्य देशों में होता है। लेकिन हम ऐसे धनपतियों की महिमा की चर्चा जरूर करते हैं, जिन्होंने अपने जीवन की गाढ़ी कमाई को समाज के महान कार्य के लिए दान कर दिया। हम कितना कमाते हैं, यह महत्वपूर्ण नहीं है, हम कितना दान कर पाते हैं, यह मायने रखता है।

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जीवन की सार्थकता भी होनी चाहिए

भागवत ने कहा कि जीवन चलाने के लिए विद्या की आवश्यकता नहीं है। ऐसे कई उदाहरण है, जिसमें बिना पढ़े-लिखे ही लोगों ने धन अर्जित किया है। उन्होंने भौतिक साधनों के मामले में सफलता भी हासिल की है। ऐसे में जीवन में सफलता तो जरूरी है, लेकिन सफलता के साथ सार्थकता भी जरूरी है। हम कितने पढ़े लिखे हैं, यह मायने नहीं रखता है। हम पढ़ लिखकर कितना यशस्वी बनते हैं, यह बड़ी बात है। शिक्षा का उद्देश्य सफलता के साथ जीवन की सार्थकता भी होनी चाहिए।

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आचार्यों पर नई पीढ़ी को तैयार करने की जिम्मेदारी

भागवत ने कहा कि मैकाले की शिक्षा प्रणाली के बीच से ही हमें महात्मा गांधी, बाल गंगाधर तिलक जैसे महान लोग मिले हैं। ऐसा इसलिए संभव हो सका कि समाज व परिवार का वातावरण उन्हें सही दिशा में ले गया। विद्या भारती के आचार्यों पर नई पीढ़ी को तैयार करने की जिम्मेदारी है। शिक्षा प्रदान करना आजीविका नहीं एक व्रत है। शिक्षा केवल विद्यालयों में नहीं होनी चाहिए। जीवन के समग्र विकास के लिए शिक्षा विद्यालयों से बाहर समाज में भी होनी चाहिए। 

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