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बच्चों के मानसिक विकास पर भी असर डाल रहा है कुपोषण, फास्ट फूड से करें परहेज

डॉक्टरों का कहना है कि पौष्टिक आहार ना मिलने के कारण शरीर में रक्त की कमी हो जाती है तो उम्र के हिसाब से बच्चों का कद और वजन नहीं बढ़ पाता है

By Edited By: Published: Wed, 05 Sep 2018 08:28 PM (IST)Updated: Wed, 05 Sep 2018 09:56 PM (IST)
बच्चों के मानसिक विकास पर भी असर डाल रहा है कुपोषण, फास्ट फूड से करें परहेज

फरीदाबाद [जेएनएन]। कुपोषण बच्चों के शारीरिक ही नहीं मानसिक विकास पर भी असर डाल रहा है। सरकारी व निजी अस्पतालों में इलाज के लिए आने वाले बच्चों के रिकॉर्ड पर नजर डालें तो पता चलता है कि कुपोषण निमोनिया चर्म रोग दिमागी बुखार और एनीमिया का कारण बन रहा है, इसके इलावा पौष्टिक आहार न लेने से मानसिक स्थिति पर भी असर पड़ रहा है।

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बच्चों के चेहरे मुरझाए होते हैं

स्वास्थ्य विशेषज्ञ भी मानते हैं कि जिन बच्चों को पौष्टिक आहार नहीं मिलता उनकी स्मरण शक्ति भी कम होती है। ऐसे बच्चे पढ़ाई में भी कमजोर होते हैं। जिला स्वास्थ्य विभाग के रिकॉर्ड की बात करें तो बादशाह खान अस्पताल की ओपीडी में प्रतिदिन आने वाले 200 बच्चों में से 10 फीसद बच्चे कुपोषण के शिकार आते हैं। इन बच्चों के चेहरे मुरझाए होते हैं।

शरीर में रक्त की कमी हो जाती है

डॉक्टरों का कहना है कि पौष्टिक आहार ना मिलने के कारण शरीर में रक्त की कमी हो जाती है तो उम्र के हिसाब से बच्चों का कद और वजन नहीं बढ़ पाता है। इन कारणों से 10 वर्ष की उम्र के बाद बच्चों की दिक्कतें बढ़ जाती हैं। आमतौर पर ऐसे बच्चे बहुत दुबले-पतले होते हैं और नजर भी कमजोर होती है आंखों पर चश्मा लगाना पड़ता है।

फास्ट फूड खाने पर ज्यादा ध्यान देते हैं बच्चे

सरकारी अस्पतालों के साथ निजी अस्पतालों में भी ऐसे कई मामले आते हैं। इनमें ऐसे ज्यादा मामले हैं, जिनमें बच्चे फास्ट फूड का सेवन करते हैं। माता-पिता भी इस मामले में लापरवाह हैं। वह अपने बच्चों को दाल, दलिया, फल और खिचड़ी आदि नहीं देते हैं। बच्चे भी फास्ट फूड खाने पर ज्यादा ध्यान देते हैं। इसलिए उनका मानसिक और शारीरिक विकास प्रभावित होता है।

संपन्न परिवारों में भी है परेशानी 

सर्वोदय अस्पताल एवं रिसर्च सेंटर के चेयरमैन डॉ.राकेश गुप्ता कहते हैं कि उनके दो बड़े अस्पतालों की ओपीडी में हर महीने इलाज के लिए करीब 3000 बच्चे आते हैं। अधिकांश परिवार के बच्चे संपन्न परिवारों से हैं। इनमें लगभग आठ फीसद बच्चे कुपोषण के शिकार आते हैं। कुपोषित बच्चों को डॉक्टरी सलाह के अनुरूप सही किया जा सकता है। गंभीर श्रेणी वाले कुपोषित बच्चों को अस्पताल में भर्ती करके इलाज किया जाना चाहिए। कई बार कुपोषण के चलते शरीर में शुगर की कमी नमक की कमी और अनेक प्रकार के संक्रमण दूर करने में हफ्ता भर लग सकता है।

समय रहते दें ध्यान 

बाल रोग विशेषज्ञ डॉ.मोहितेश श्रीवास्तव का कहना है कि अभिभावक बच्चों के खान-पान पर खुद ही ध्यान दें तो समय रहते कुपोषण के दुष्प्रभाव से बचा जा सकता है। कैलोरी और प्रोटीन से भरपूर भोजन रोगों से लड़ने की क्षमता को बढ़ाता है।  


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