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दिल्ली ब्लास्ट में खोया मां-बाप का साया, फिर मनीषा ने खुद को बनाया काबिल, तोड़ी रूढ़ीवादी सोच

मनीषा माइकल की ये कहानी अंतिम संस्कार के माध्यम से बेटे को ही मुक्ति का मार्ग समझने वाली समाज की एक रूढ़िवादी सोच को भी तार-तार कर देती है। मनीषा ने एक या दो नहीं बल्कि अपनी तीन पीढ़ियों के लोगों का अंतिम संस्कार किया।

By Rajneesh Kumar PandeyEdited By: Prateek KumarPublished: Mon, 26 Sep 2022 04:51 PM (IST)Updated: Mon, 26 Sep 2022 04:51 PM (IST)
दिल्ली बम ब्लास्ट में मनीषा ने पिता माइकल, माता सुनीता माइकल व बड़े भाई एल्विन माइकल को खो दिया था।

नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। नौ साल की उम्र में बम ब्लास्ट में मां-बाप और बड़े भाई को खो दिया और आखिरी सहारा बची दादी को को भी कुछ वक्त बाद मुखाग्नि दी। ऐसे विषम परिस्थितियों में दृढ़ बने रहकर अपने सभी दायित्वों का निर्वहन करते हुए खुद को दुनिया में संघर्ष के काबिल बना लेना। ये सारी क्षमता एक साथ एक नारी में ही हो सकती है। मनीषा माइकल की ये कहानी अंतिम संस्कार के माध्यम से बेटे को ही मुक्ति का मार्ग समझने वाली समाज की एक रूढ़िवादी सोच को भी तार-तार कर देती है। मनीषा ने एक या दो नहीं, बल्कि अपनी तीन पीढ़ियों के लोगों का अंतिम संस्कार किया, लेकिन विषम परिस्थितियों को अपने कर्तव्य में कभी आड़े नहीं आने दिया।

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सरोजनी नगर ब्लास्ट में खोया था मां-बाप का साया

सरोजनी नगर में साल 2005 में हुए बम ब्लास्ट में मनीषा ने पिता माइकल, माता सुनीता माइकल व बड़े भाई एल्विन माइकल को खो दिया था। ब्लास्ट के बाद शव न मिलने के कारण मनीषा अपने पिता के अंतिम दर्शन तक नहीं कर सकी। हालांकि, मनीषा ने किसी तरह से स्वजन की मदद से अपनी मां-पिता और भाई का अंतिम संस्कार किया। इन सभी विषम परिस्थितियों और भावनात्मक मन:स्थिति से लड़ते हुए मनीषा अपने दादा भगवान दास व दादी सलीना दास के साथ रहने लगी और अपने सारे दायित्व निभाने के लिए संघर्ष में जुट गईं।

दादा- दादी की सेवा के लिए छोड़ी विदेश की नौकरी

मनीषा ने अपने दादा-दादी के साथ रहते हुए अपनी शिक्षा पूरी की। कुछ समय बाद उन्होंने होटल मैनेजमेंट का कोर्स करके एक निजी कंपनी में नौकरी कर ली और अपना व दादा-दादी का ध्यान रखते हुए खुद को रोज जिंदगी के नए नए सबक सिखाती रहीं। उन्हें ज्यादा सैलरी के साथ विदेश में नौकरी के आफर भी मिले, लेकिन उन्होंने दादा-दादी को छोड़कर विदेश जाने के आफर को ठुकरा दिया।

दादी की मृत्यु के बाद अकेली हो गई मनीषा

सितंबर 2022 में मनीषा की दादी भी भगवान को प्यारी हो गई और एक बार फिर से मनीषा भावनात्मक रूप से अकेली हो गईं, लेकिन मां-बाप, भाई, दादी को खोने के बाद भी उन्होंने तीनों पीढ़ियों का विधिवत अंतिम संस्कार किया और मनीषा ने वे सारे दायित्व निभाए जो कि कोई एक साधारण बेटा करता। मनीषा की इस दृढ़ता के सामने शायद कई बेटों की छवि भी कमजोर दिखने लगे। मनीषा ने विषम परिस्थितियों में न केवल खुद को संभाला, बल्कि अपने दादा-दादी का ख्याल रखते हुए सारी जिम्मेदारी उठाई। फिलहाल अपनी सभी तकलीफों को समेटे हुए मनीषा दादा के साथ वर्तमान में दिलशाद गार्डन स्थित एक मकान में रह रही हैं।


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