38 साल बाद आए कोर्ट के एक फैसले से दिल्ली से सटे हरियाणा में हड़कंप, जानें पूरा मामला
1980 में प्रेमराज व अन्य बनाम ग्राम पंचायत द्वारा इस जमीन पर मालिकाना हक जताते हुए एक दावा एसडीओ (सिविल) की कोर्ट में डाला गया था।
गुरुग्राम (संदीप रतन)। ग्वाल पहाड़ी की 464 एकड़ बेशकीमती जमीन विवाद में 38 साल तक लंबी चली अदालती लड़ाई के बाद अब जिला अदालत ने फिर से पुराने मालिकों के हक में फैसला सुनाया है। अतिरिक्त जिला न्यायाधीश ने 226 सिविल अपील पर सुनवाई के बाद दावों को खारिज करते हुए फैसले में कहा कि अगर नगर निगम को इस जमीन पर हक लेना है तो पहले 5 नवंबर 1980 के रेवेन्यू रिकॉर्ड में मौजूद मालिकान/बिसवेदारों को जमीन का मुआवजा देना होगा। फैसले के बाद बिल्डर और अन्य लोग जमीन के हक से वंचित रह गए हैं।
वहीं, अदालत ने मुकदमा दायर करने वाले बिल्डर और प्राइवेट लोगों को भी यह कहा है कि अगर उनको जमीन चाहिए तो वे भी मुआवजा देकर जमीन ले सकते हैं। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में एक सिविल रिट पिटीशन (सीडब्ल्यूपी) में लंबित होने व इस जमीन पर स्टे होने के बावजूद 1991 में फैसला सुनाने वाले तत्कालीन जिला उपायुक्त एसएन वशिष्ठ के खिलाफ विभागीय कार्रवाई करने के आदेश दिए गए हैं। प्रदेश सरकार के मुख्य सचिव को एक प्रति भेजी गई है। अदालत ने तत्कालीन पंच, सरपंच और अन्य अधिकारी व कर्मचारियों के खिलाफ सेक्शन 20 ऑफ हरियाणा पंचायती राज एक्ट के तहत कार्रवाई के भी आदेश दिए हैं।
गुरुग्राम मंडल आयुक्त को तीन माह के अंदर जांच करके जांच रिपोर्ट अदालत के समक्ष प्रस्तुत करने व मामले में दोषी पाए जाने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने को कहा है। कोर्ट का यह फैसला आने के बाद बिल्डर, नगर निगम और इस जमीन के खरीदार अब हाईकोर्ट जाने का मन बना रहे हैं।
अब नगर निगम की ओर से अदालत में पैरवी कर रह रहे वरिष्ठ अधिवक्ता रामअवतार गुप्ता का कहना है कि पंचायती राज एक्ट 7 (4) का फायदा नगर निगम को मिल सकता है। इस एक्ट के मुताबिक नगर निगम के गठन के बाद पंचायत के अधीन आने वाली भूमि का मालिकाना हक नगर निगम को मिल जाता है। नगर निगम को यह जमीन मिलेगी या नहीं इसका फैसला सुप्रीम कोर्ट में लंबित सूरजभान केस पर निर्भर करता है। केस प्रदेश में शामलाती जमीन विवाद से जुड़ा है।
इन मुख्य बिल्डरों ने की थी जमीन की खरीद-फरोख्त
एबीडब्ल्यू इंफ्रास्ट्रक्चर, मेट्रो वैली
एम्पल डेवलपर्स, मेक्सिकॉम ट्रेडर्स
नियोजित फॉर्म्स प्राइवेट लिमिटेड
बीएसएम डेवलपर्स
मल्टीमेट्रिक्स रियलेटी
ऑस्कर बॉयोटेक
बता दें कि नगर निगम सहित कुल 226 सिविल अपील थीं, जिनमें कई रिटायर्ड उच्चाधिकारी और नेता भी शामिल हैं।
वर्ष 1980 से चल जमीन का विवाद
-कनाल 7 मरला जमीन पंचायत के नाम रिकॉर्ड में दर्ज हुई थी।
-1980 में प्रेमराज व अन्य बनाम ग्राम पंचायत द्वारा इस जमीन पर मालिकाना हक जताते हुए एक दावा एसडीओ (सिविल) की कोर्ट में डाला गया।
-26 दिसंबर 1982 को दावा खारिज हो गया, तत्कालीन उपायुक्त की कोर्ट की ओर से 25 फीसद जमीन ग्राम पंचायत और 75 फीसद जमीन मालिकों को देने का फैसला सुना दिया गया।
-उपायुक्त के आदेश पर 12 मई 1989 को ग्राम पंचायत और मालिकों के इस जमीन के इंतकाल दर्ज हो गए।
-आदेश के खिलाफ ग्रामीणों ने पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में एक सिविल रिट पेटिशन (सीडब्ल्यूपी) दायर की, हाईकोर्ट ने जमीन पर स्टे दे दिया।
-इस बीच तत्कालीन उपायुक्त एसएन वशिष्ठ ने 521 बीघा जमीन ग्राम पंचायत को व 812 बीघा जमीन मालिकों को देने का आदेश पारित किया।
-तत्कालीन मंडलायुक्त की कोर्ट में इस फैसले के खिलाफ अपील की और मंडलायुक्त ने हाईकोर्ट में लंबित सीडब्ल्यूपी के फैसले का हवाला देते हुए उपायुक्त के आदेश को रद्द कर दिया और ग्रामीण व पंचायत फिर से हाईकोर्ट में पहुंच गए।
-2008 में गुरुग्राम नगर निगम का गठन हुआ,निगम ने जमीन पर अपना मालिकाना हक जताया।
-प्रेमराज व अन्य का दावा 27 जुलाई 2010 को खारिज हुआ, कोर्ट में हक को लेकर लड़ाई जारी रही।
-2 जनवरी 2017 को तत्कालीन जिला उपायुक्त द्वारा इस जमीन का इंतकाल बदलने और प्राइवेट लोगों और बिल्डरों के हक में जमीन का फैसला सुनाने से मामला गरमाया।
-नगर निगम ने इसकी अपील मंडलायुक्त की कोर्ट में की और कोर्ट ने उपायुक्त के इस फैसले पर स्टे दे दिया।
-बिल्डर व प्राइवेट लोग हाईकोर्ट गए, सभी 118 दावे सिविल कोर्ट पहुंचे।
-अप्रैल 2018 में सिविल जज (सीनियर डिविजन ) ने प्राइवेट बिल्डरों के हक में फैसला सुनाया।
-नगर निगम ने इस फैसले के खिलाफ अतिरिक्त जिला न्यायाधीश की अदालत में अपील कर दी।
-31 अगस्त 2018 को 5 नवंबर 1980 के रेवेन्यू रिकॉर्ड में मौजूद मालिकान/बिसवेदारों के हक में फैसला सुना दिया।
महेश (जमीन खरीदार, ग्वाल पहाड़ी) का कहना है कि जिला अदालत के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट जाएंगे। वहीं, आयुक्त (नगर निगम गुरुग्राम) यशपाल ने बताया कि काफी लंबे समय से कानूनी लड़ाई लड़ी जा रही थी। नगर निगम के हक में फैसला सुनाया गया है।