Move to Jagran APP

दिल्ली में खेल संस्कृति का अभाव, जमीनी स्तर पर ध्यान देने की जरूरत : वीरेंद्र सचदेवा

दिक्कत यह कि प्रारंभिक स्तर पर खिलाड़ियों के पास संसाधनों का अभाव है। उन्हें कोच आर्थिक सहायता जरूरी उपकरण और स्टेडियम की जरूरत है जो नहीं है। ऐसे में दावे कितने भी कर लिए जाएं लेकिन इससे धरातल पर चीजें बदलने वाली नहीं हैं।

By Jp YadavEdited By: Published: Mon, 02 Aug 2021 08:12 AM (IST)Updated: Mon, 02 Aug 2021 08:35 AM (IST)
दिल्ली में खेल संस्कृति का अभाव, जमीनी स्तर पर ध्यान देने की जरूरत : वीरेंद्र सचदेवा
दिल्ली में खेल संस्कृति का अभाव, जमीनी स्तर पर ध्यान देने की जरूरत : वीरेंद्र सचदेवा

नई दिल्ली। जापान के टोक्यो में ओलिंपिक खेल चल रहा है। अन्य राज्यों के साथ ही दिल्ली के खिलाड़ी भी इसमें देश के लिए पदक लाने की कोशिश में लगे हुए हैं। पर अभी तक कोई खास सफलता नहीं मिली है। इससे एक बार फिर राष्ट्रीय राजधानी  में खेलों को बढ़ावा देने तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर के खेलों में पदक लाने वाले खिलाड़ियों की पौध तैयार करने की सरकार की नीति पर सवाल खड़े होते हैं। यह स्थिति तब है जब राष्ट्रमंडल खेल कराने के बाद राष्ट्रीय राजधानी में ओलिंपिक खेल आयोजित कराने के लिए दावेदारी रखने के दावे हो रहे हैं। इस संबंध में नेमिष हेमंत ने दिल्ली तीरंदाजी संघ के महासचिव वीरेंद्र सचदेवा से बातचीत की। प्रस्तुत हैं बातचीत के प्रमुख अंश...।

loksabha election banner

इस बार के ओलिंपिक में दिल्ली वालों की बड़ी उम्मीदें थी, लेकिन निराशा हाथ लग रही है, इसकी वजह क्या मानते हैं?

- दिल्ली की जनसंख्या कई मुल्कों से ज्यादा है। आस्ट्रेलिया इस मामले में छोटा है, फिर भी उसने तैयारियों से लेकर ओलिंपिक स्थल टोक्यो में व्यवस्था के स्तर पर खास प्रबंध किए हैं। अलग से जिम, खिलाड़ियों की सुरक्षा का प्रबंध व खाने-पीने समेत अन्य व्यवस्थाएं हैं, जो यह दर्शाता है कि उसकी तैयारियां किस स्तर की हैं। दिल्ली इतनी बड़ी है फिर भी यहां से महज चार खिलाड़ी ही भाग ले रहे हैं। इसके पीछे कहीं न कहीं सरकार की नीतियां जिम्मेदार हैं। हकीकत यह है कि दिल्ली में खेल संस्कृति का अभाव है। यहां जमीनी स्तर पर ध्यान देने की जरूरत है। पूरी राजधानी में दिल्ली सरकार के तीन ही स्टेडियम हैं। वह तो भला हो केंद्र व दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) का जिन्होंने एशियन और राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन के लिए कई स्टेडियम तैयार किए। डीडीए रोहिणी में ओलिंपिक खेलों के लिए ट्रेनिंग सेंटर बना रहा है।

दिल्ली सरकार का दावा है कि वह खेलों को बढ़ावा दे रही है, ओलिंपिक को लेकर भी बड़े दावे किए गए हैं?

- दावे और हकीकत में बड़ा अंतर है। दिल्ली सरकार द्वारा खिलाड़ी तैयार करने के लिए तकरीबन 150 कोच की नियुक्ति की गई है, इनमें से बमुश्किल 10 कोच ही नियमित हैं। बाकी सभी संविदा पर हैं और उनको मिलने वाला मानदेय चतुर्थी श्रेणी सरकारी कर्मचारी से भी कम है। दिल्ली सरकार में खेल विभाग तक नहीं है। इसे शिक्षा विभाग के तहत रखा गया है। दिक्कत यह कि प्रारंभिक स्तर पर खिलाड़ियों के पास संसाधनों का अभाव है। उन्हें कोच, आर्थिक सहायता, जरूरी उपकरण और स्टेडियम की जरूरत है, जो नहीं है। ऐसे में दावे कितने भी कर लिए जाएं, लेकिन इससे धरातल पर चीजें बदलने वाली नहीं हैं।

खेल विश्वविद्यालय बनाने की घोषणा हुई है। इसके लिए कुलपति की नियुक्ति भी हो गई है। इससे कितना फायदा होगा ?

- गंभीरता का अंदाजा इससे ही लगाया जा सकता है कि खेल विश्वविद्यालय के निर्माण के लिए महज 20 करोड़ रुपये का प्रविधान किया गया है। उसमें भी एक ईंट तक नहीं रखी गई है और कुलपति की घोषणा हो गई है। अगर गंभीरता होती तो पहले विश्वविद्यालय का परिसर तैयार होता, उपकरण लाए जाते, उसके बाद कुलपति की घोषणा होती। पर यहां तो घोषणाएं सुर्खियों में रहने के लिए की जाती हैं। अगर ऐसी स्थिति नहीं होती तो यह बजट में दिखाई देता। दिल्ली में खेल का बजट 28 लाख 47600 रुपये है। जबकि इससे सटे हरियाणा का खेल बजट 264 करोड़ नौ लाख 10 हजार रुपये है। मणिपुर जैसे छोटे राज्य की बात करें तो वहां भी खेल बजट 129 करोड़ रुपये है।

दिल्ली सरकार ने ओलिंपिक पदक लाने वाले राज्य के खिलाड़ियों को नकद पुरस्कार की घोषणा की, यह मददगार क्यों नहीं साबित हुआ?

- छोटी सी बात, उत्तर प्रदेश ने अपने खिलाड़ियों के लिए सोने के लिए छह करोड़ रुपये, रजत के लिए चार व कांस्य के लिए दो करोड़ का इनाम रखा है। वहीं, दिल्ली सरकार ने सोने के लिए तीन, रजत के लिए दो व कांस्य पदक लाने वाले खिलाड़ियों के लिए एक करोड़ रुपये नकद पुरस्कार रखा है। राज्य स्तर का खेल पुरस्कार पिछले कई सालों से नहीं दिया जा रहा है। खिलाड़ियों को सरकारी नौकरी देने में भी दिल्ली का रिकार्ड बेहतर नहीं है। इसलिए दिल्ली से खेलने वाले खिलाड़ी कम है।

कैसे दिल्ली में खेल संस्कृति का विकास होगा?

- खेल संस्कृति के विकास के लिए हमें जमीनी स्तर पर काम करना होगा। जो खिलाड़ी खुद से संघर्ष करते हुए आगे आते हैं उनका तो हाथ पकड़ लेते हैं, लेकिन जब कोई छात्र खिलाड़ी बनने के बारे में सोचता है तभी से उसको मदद करनी शुरू कर देनी चाहिए। उसे आर्थिक मदद के साथ ही अन्य जरूरी सुविधाएं मुहैया करानी होगी। जहां तक ओलिंपिक की बात है तो हर जिले में दो खेलों को चिह्न्ति कर अभी से तैयारी शुरू कर देनी होगी। ताकि अगले ओलिंपिक तक दिल्ली कई दमदार खिलाड़ी देश को दे सके।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.