नामी लेखक ने बताया- क्यों होता है ऐतिहासिक विषयों पर बनाई गई फिल्मों का विरोध
विचारक डॉ. हरींद्र श्रीवास्तव ने कहा कि अधिकतर साहित्यकार अपनी संतुष्टि के लिए कलम चला रहे हैं।
गुरुग्राम (जेएनएन)। फिल्म 'पद्मावत' को लेकर शुरू से ही विरोध किया जा रहा है। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। जब भी ऐतिहासिक विषयों पर फिल्में बनाई गई हैं, उनमें से अधिकतर का विरोध हुआ है। आखिर ऐतिहासिक फिल्मों के साथ विरोध क्यों होता है, क्या फिल्मकार फिल्म बनाने से पहले इतिहास का हर स्तर पर अध्ययन नहीं करते हैं सहित कई विषयों को लेकर दैनिक जागरण के वरिष्ठ संवाददाता आदित्य राज ने जंग-ए-आजादी के महानायक नेताजी सुभाषचंद्र बोस एवं वीर सावरकर के ऊपर कई पुस्तकें लिखने वाले जाने माने लेखक व विचारक डॉ. हरींद्र श्रीवास्तव से विस्तृत बातचीत की प्रस्तुत है मुख्य अंश :
1. अक्सर ऐतिहासिक फिल्मों का विरोध क्यों शुरू हो जाता है?
- किसी भी फिल्मकार को ऐतिहासिक विषयों पर आधारित फिल्म बनाने से पहले काफी अध्ययन करना चाहिए। इतना अध्ययन करना चाहिए कि कोई भी चुनौती न दे सके। यदि किसी को विरोध करने का मौका मिलता है, इसका मतलब है कि फिल्म बनाने से पहले विषय का जितना अध्ययन करना चाहिए, उतना नहीं किया गया। कई ऐतिहासिक फिल्मों का कभी विरोध ही नहीं हुआ क्योंकि जो इतिहास में दर्ज हैं, उससे इधर-उधर जाने का प्रयास नहीं किया गया। वर्तमान समय में विरोध इसलिए होता है क्योंकि फिल्मकार अधिक से अधिक दर्शकों को आकर्षित करने के लिए कुछ मिर्च-मसाला लगाकर प्रस्तुत करने का प्रयास करते हैं। ऐसा काल्पनिक कहानियों को लेकर चल सकता है, लेकिन ऐतिहासिक विषयों को लेकर नहीं।
2. फिल्म लेकर जो विरोध चल रहा है उसे आप किस नजरिये से देखते हैं?
- इससे पहले भी इस विषय पर फिल्म बनाई गई है। नाटक प्रस्तुत किए गए हैं। कभी विरोध नहीं हुआ। पहले मीडिया का बहुत अधिक प्रभाव नहीं था। फिल्म रिलीज होने के बाद ही पूरी कहानियों का पता चलता था। अब मीडिया का प्रभाव बढ़ गया है। फिल्में आने से पहले ही कहानियों का पता चल जाता है। फिल्मकार भी उन दृश्यों का प्रचार अधिक करते हैं जिन दृश्यों से फिल्में रिलीज होने से पहले ही चर्चित हो जाएं। जब फिल्म पद्मावत को लेकर विरोध शुरू हुआ था, उसी समय फिल्मकार को पूरी स्थिति स्पष्ट कर देनी चाहिए थी। स्थिति स्पष्ट रिलीज होने से कुछ समय पहले की गई तक विरोध के स्वर तेज हो चुके थे। इस वजह से यदि कुछ अंश रिलीज करने से पहले हटाए भी गए होंगे तो भी विरोध करने वालों को विश्वास नहीं हुआ। एक बात और जब फिल्मकार ने रिलीज होने से पहले यह स्पष्ट कर दिया कि तथ्यों के साथ छेड़छाड़ नहीं की गई फिर विरोध करने वालों को फिल्म देखने के बाद आवाज बुलंद करनी चाहिए थी। कई बार फिल्म रिलीज होने के बाद भी आपत्ति होने पर उसमें कट लगाए गए हैं।
3. क्या इतिहास में काफी बातें काल्पनिक हैं या तथ्यों पर आधारित हैं?
- कभी भी कोई इतिहास जो लिखा था वह तथ्यों पर आधारित ही होता है। हां, इतिहास लिखने वाला कई बार किसी से प्रभावित होकर उसके बारे में कुछ विशेष लिख देता है, लेकिन मूल तथ्यों के साथ छेड़छाड़ कभी नहीं करता। मूल तथ्यों के साथ छेड़छाड़ करने पर इतिहास फिर इतिहास नहीं रह जाता बल्कि एक कहानी का पुलिंदा रह जाता है। फिल्मकारों का दायित्व है कि वे इतिहास को मूल रूप से प्रस्तुत करें ताकि आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा मिले। मैंने महान स्वतंत्रता सेनानी वीर सावरकर पर बनी फिल्म में स्क्रिप्ट राइटर की भूमिका निभाई थी। फिल्म बनाने से पहले सावरकर के बारे में इतनी जानकारी हासिल की गई कि किसी को किसी भी स्तर पर आपत्ति नहीं हुई। दरअसल, समाज इतना बदल चुका है कि अब सैकड़ों साल पहले की घटनाएं काल्पनिक प्रतीत होने लगी हैं। इस वजह से कई बार कुछ लोग कहते हैं कि काल्पनिक घटनाओं पर आधारित इतिहास है।
4. आज कल के न साहित्य अधिक चर्चित हो रहे हैं और न ही फिल्में, ऐसा क्यों?
- पहले फिल्में जो बनाई जाती हैं उनके माध्यम से समाज को संदेश दिया जाता था। इस वजह से फिल्में कालजयी हो जाती थीं। अब केवल पैसा कमाने को ध्यान में रखकर फिल्में बनाई जाती हैं। ऐसे विषय को चुना जाता है जिस विषय को अधिक से अधिक बेचा जा सके। यही हाल साहित्यिक जगह का भी है। अधिकतर साहित्यकार अपनी संतुष्टि के लिए कलम चला रहे हैं। जब तक साहित्य के माध्यम से संदेश नहीं जाएगा तब तक वह कालजयी नहीं हो सकता। आधुनिकता के इस युग में भी भारत के लोगों के भीतर अपनी सभ्यता व संस्कृति के प्रति आकर्षण है। वे फिल्म में केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि संदेश भी देखना पसंद करते हैं। अधिकतर लोग इतिहास को मूल रूप में ही फिल्म के माध्यम से देखना चाहते हैं। फिल्मकार को ऐतिहासिक फिल्मों में मिर्च मसाला लगाने से परहेज करना चाहिए।