जानिए- 27 लाख से अधिक यात्रियों की हमसफर दिल्ली मेट्रो क्यों हो रही 'बदनाम'
जिस तरह मेट्रो ट्रेनों की तकनीकी खामी रोजाना सामने आ रही है ऐसे में जल्द ही इसे अविश्वसनीय सेवा का दर्जा हासिल हो जाए तो ताज्जुब नहीं होगा।
नई दिल्ली, जेएनएन। दिल्ली और एनसीआर (National Capital Region) की लाइफलाइन बन चुकी दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन (Delhi Metro Rail Corporation) की मेट्रो ट्रेन दुनिया की दूसरी सबसे महंगी सेवाओं में शुमार है, बावजूद इसके लोगों की पहली पसंद यही है। लेकिन पिछले कुछ सालों से लगातार आ रही तकनीकी खामियों ने इसे 'बदनाम' कर दिया है। जिस तरह मेट्रो ट्रेनों की तकनीकी खामी रोजाना सामने आ रही है, ऐसे में जल्द ही इसे अविश्वसनीय सेवा का दर्जा हासिल हो जाए तो ताज्जुब नहीं होगा। आलम यह है कि महीने में औसतन तीन-चार बार मेट्रो सेवा में तकनीकी खामी आना अब सामान्य बात हो गई है।
पैसा ज्यादा लेकिन सुविधाएं मिलती हैं कम
सेंटर फॉर साइंस ऐंड इन्वाइरनमेंट (CSE) ने 2018 के लिए लागत और कमाई पर यूबीएस रिपोर्ट के आधार पर किए गए अध्ययन में यह दावा किया था कि दुनिया की सभी मेट्रो सेवाओं में दूसरी सबसे ज्यादा महंगी मेट्रो सेवा है। कहने का मतलब यात्रियों से उनका सफर सुलभ कराने के नाम पर पैसे तो खूब लिए जा रहे हैं, लेकिन सुविधाओं का स्तर गिरता जा रहा है। पिछले एक सप्ताह की बात करें तो 18 मई को मजेंट लाइन पर दो घंटे तक यात्रियों को परेशानी का सामना करना पड़ा थो चार दिन के भीतर फिर येलो लाइन पर तकनीकी खामी ने दफ्तर, कॉलेज और अन्य काम खराब करने के साथ उनका पूरा दिन बर्बाद कर दिया। लोगों का सवाल करना लाजिमी है कि DMRC ने पैसे तो खूब बढ़ाए, लेकिन सुविधाओं का स्तर गिरा दिया।
साख पर लग रहा बट्टा
दिल्ली मेट्रो में लगातार आ रही तकनीकी खराबी से इसकी साख पर बट्टा लग रहा है। ब्लू लाइन समेत कई रूट्स पर खामियों के चलते अब दिल्ली मेट्रो बदनाम होने लगी है। लोग तो यहां तक कहने लगे हैं कि पहले तय समय के लिए जानी जाने वाली मेट्रो गंतव्य तक समय से पहुंचाएगी? इस पर संदेह होने लगा है। मेट्रो की यह साख एक दिन में खराब नहीं हुई है, बल्कि पिछले दो साल के दौरान तकनीकी खामी के मामले बढ़ गए हैं। आलम यह है कि तकरीबन हर महीने में एक से दो बार मेट्रो के किसी न किसी रूट पर तकनीकी खामी आती है और इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है यात्रियों का।
इस तरह आ रही तकनीकी खराबी ने यात्रियों के मन में भी बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है कि आखिर मेट्रो में बार-बार खराबी क्यों आ रही है और खराबी भी ऐसी कि जिन्हें तुरंत ठीक नहीं किया जा सके। अक्सर खामी के दौरान मेट्रो ट्रेनों को आधे घंटे से अधिक समय तक रोके रखना पड़ता है। इन खराबियों की वजह से मेट्रो की पूरी लाइन प्रभावित होती है और हजारों मुसाफिरों को परेशानी उठानी पड़ती है।
ब्लू लाइन में आती है ज्यादा खराबी
मेट्रो से जुड़े अधिकारियों के मुताबिक, इंटरलॉकिंग प्वाइंट बने सिग्नल की दिक्कत के चलते ब्लू लाइन दिल्ली मेट्रो की सबसे लंबी लाइन है। ब्लू लाइन ट्रैक पर मेट्रो ट्रेनें रोजाना 700 से अधिक फेरे लगाती हैं। इस लाइन पर द्वारका सेक्टर-नौ, जहांगीरपुरी, राजौरी गार्डन, करोल बाग, बाराखंबा रोड, यमुना बैंक, नोएडा सेक्टर-16, आनंद विहार मेट्रो स्टेशन पर मुख्य आठ इंटरलॉकिंग प्वाइट हैं। इन्हीं इंटरलॉकिंग प्वाइंट से ट्रेन की लोकेशन व जानकारी ऑपरेशनल कंट्रोल रूम तक पहुंचती है। कभी-कभार इन्हीं इंटरलॉकिंग प्वाइंट से सिग्नल आना बंद हो जाता है, तो मेट्रो ट्रेनें ठप पड़ जाती हैं। लोगों की सुरक्षा के लिहाज से ट्रेनों का संचालन तत्काल रोकना पड़ता है। बेशक ब्लू लाइन पर सबसे ज्यादा तकनीकी खामी आता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि मेट्रो को उसके हाल पर और यात्रियों को असुविधा की लत लगा दी जाए।
बताया जा रहा है कि छतरपुर मेट्रो स्टेशन पर मेट्रो को बिजली सप्लाई करने वाली ओवरहेड वायर में खराबी आ गई थी, जिस वजह से मेट्रो ट्रेन रुक गई। छतरपुर स्टेशन के पास पैसेंजर लंबे समय तक फंसे रहे। काफी देर बाद इमरजेंसी गेट की मदद से पैसेंजरों को बाहर निकाला गया। कॉरिडोर पर चलते हुए पैसेंजर मेट्रो स्टेशन तक पहुंचे। बाद में दो लूप में मेट्रो परिचालन जारी रखने का निर्णय लिया गया।
मेट्रो अधिकारियों का तर्क यह होता है कि मेट्रो ट्रेन एक रनिंग सिस्टम है और इसमें ऑपरेशनल खराबी आना लाजमी है। यह अलग बात है कि डीएमआरसी लगातार यह कहता आ रहा है कि बार-बार आ रही तकनीकी दिक्कत और इसे ठीक करने में होने वाली देरी चिंता का सबब है। इसके लिए अब मेट्रो ने आंतरिक तौर पर अपनी जांच पड़ताल कई महीने से चल रही है, लेकिन इस पर सार्थक काम अब तक नहीं हो पाया है।
गौरतलब है कि जहां 2108 में पूरे साल तकनीकी खामी के मामले सामने आते रहे तो इससे पहले 2017 की शुरुआत ही मेट्रो के लिए तकनीकी दिक्कतों के साथ हुई थी। 2017 में जनवरी में तीन ऐसे मौके आए जब मेट्रो की रफ्तार पर ब्रेक लगा और यात्रियों को जबदस्त मुश्किलों का सामना करना पड़ा था।
अध्ययन में यह बात सामने आई है कि मेट्रो के सफर में खर्च करने के मामले में पहले नंबर पर हनोई का नाम आता है जहां यात्री अपनी कमाई का औसतन 25 फीसद हिस्सा सिर्फ मेट्रो के सफर पर खर्च करते हैं। जबकि दूसरे नंबर पर भारत आता है जहां पिछले साल किराए में वृद्धि के बाद यात्री अपनी कमाई का औसतन 14 फीसद हिस्सा दिल्ली मेट्रो से सफर में खर्च करते हैं। अध्ययन के मुताबिक दिल्ली में रोजाना मेट्रो से सफर करने वाले 30 फीसद यात्री अपनी कमाई का 19.5 फीसद हिस्सा सिर्फ मेट्रो किराए पर खर्च करते हैं।
सीएसई ने कहा है कि किराए में बढ़ोत्तरी की वजह से राइडरशिप में 46 फीसद की कमी आई है। स्टडी में कहा गया है कि दिल्ली की 34 फीसद आबादी बेसिक नॉन-एसी बस सर्विस से सफर करना भी मुश्किल है। उधर इस पर सफाई देते हुए दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन (DMRC) ने स्टडी को सिलेक्टिव बताया है। डीएमआरसी का कहना है कि मेट्रो की तुलना अपेक्षाकृत छोटे नेटवर्कों से की गई है।
बीमार होती मेट्रो
दिल्ली मेट्रो में तकनीकी खराबी की बीमारी दूर होने का नाम नहीं ले रही है। यह घोर निराशाजनक है कि करीब-करीब प्रतिदिन इस समस्या से जूझने के बाद भी हालात में सुधार होता नहीं दिख रहा है। इसे दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन (डीएमआरसी) के अधिकारियों की लापरवाही ही कहा जाएगा। ताजा मामला यलो लाइन पर कुतुबमीनार से सुलतानपुर मेट्रो स्टेशन के बीच तकनीकी समस्या के रूप में सामने आया। यहां ओवरहेड इक्विपमेंट (ओएचई) वायर टूटने से पांच घंटे तक मेट्रो का परिचालन बाधित रहा। इससे इस रूट के मेट्रो स्टेशनों पर यात्रियों की भीड़ एकत्रित हो गई और उन्हें परेशानी का सामना करना पड़ा। यहां मेट्रो फीडर बसें लगाई गईं, लेकिन संख्या कम होने के कारण उनका भी कोई लाभ नहीं हुआ।मेट्रो जहां यात्रियों को तेज, सुरक्षित और सुविधाजनक सफर मुहैया कराने वाले साधन के रूप में देखी जाती है, वहीं इसमें लगातार आ रहीं तकनीकी समस्याएं परेशानी का सबब बन रही हैं। यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि मेट्रो प्रबंधन इसे लेकर गंभीर नजर नहीं आ रहा है। मेट्रो प्रबंधन की ओर से यह दावा किया जाता है कि प्रतिदिन परिचालन खत्म होने के बाद रात में पूरे मेट्रो ट्रैक की जांच की जाती है, ताकि अगले दिन किसी तरह की समस्या न हो। ऐसे में लगातार आ रही समस्या के बीच जांच की इस प्रक्रिया पर भी सवाल उठने लाजमी हैं। ओएचई वायर टूटने से बचाने के लिए तांबे की क्लिप लगाने की प्रक्रिया शुरू की गई थी। लेकिन, यह भी निराशाजनक है कि यह प्रक्रिया बहुत सुस्त रफ्तार से चल रही है। यात्रियों की परेशानी को देखते हुए यह आवश्यक है कि मेट्रो प्रबंधन अपनी जिम्मेदारी समङो और मेट्रो को तकनीकी समस्याओं से निजात दिलाने के हरसंभव उपाय करे।
दिल्ली-NCR की ताजा खबरों को पढ़ने के लिए यहां पर करें क्लिक
लोकसभा चुनाव और क्रिकेट से संबंधित अपडेट पाने के लिए डाउनलोड करें जागरण एप