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जानिये- क्यों पाकिस्तान में जिंदगी भर रहने के लिए तैयार हो गए थे गांधी

देश की आजादी के बाद पूरी दिल्ली जश्न की तैयारी में डूबी थी, लेकिन इन सब तैयारियों के बीच वरिष्ठ अधिकारियों के माथे पर चिंता की जो लकीरें पड़ीं वो अनायास ही नहीं थीं।

By JP YadavEdited By: Published: Wed, 15 Aug 2018 10:14 AM (IST)Updated: Wed, 15 Aug 2018 11:32 AM (IST)
जानिये- क्यों पाकिस्तान में जिंदगी भर रहने के लिए तैयार हो गए थे गांधी
जानिये- क्यों पाकिस्तान में जिंदगी भर रहने के लिए तैयार हो गए थे गांधी

नई दिल्ली (संजीव कुमार मिश्र)। बंटवारे की आह के बीच नया भारत अंगड़ाई लेने को तैयार था। हर आंख नम थी, लेकिन दिल में देश की आजादी की उमंग थी। देशभक्ति की भावनाएं मन में हिलोरे ले रही थी। आजादी का जश्न मनाने के लिए क्या लाल किला, क्या इंडिया गेट कमोबेश हर जगह लोगों का हुजूम कई दिन पहले जुट गया था। पूरी दिल्ली जश्न की तैयारी में डूबी थी, लेकिन इन सब तैयारियों के बीच वरिष्ठ अधिकारियों के माथे पर चिंता की जो लकीरें पड़ीं वो अनायास ही नहीं थीं। दरअसल, अधिकारियों को यह डर सता रहा था कि कहीं आजादी का यह जश्न लोगों को भूखे पेट ना मनाना पड़े। बंटवारे के दंश की वजह से पहला स्वतंत्रता समारोह अनाज की किल्लत के बीच मनाने का डर सता रहा था। इस चिंता की बड़ी वजह, चीफ कमिश्नर एस खुर्शीद की वो पाक्षिक रिपोर्ट थी जो अगस्त महीने में जारी हुई थी। भले अन्न की कमी थी, लेकिन आजादी की खुशी के आगे भूख फीकी पड़ रही थी।

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पाक जाने को तैयार थे गांधी

यह रिपोर्ट राजनीतिक, आर्थिक, खाद्यान्न समेत कानून व्यवस्था और कई अन्य श्रेणियों में विभाजित थी। दिल्ली अभिलेखागार में मौजूद रिपोर्ट से पता चलता है कि राजनीतिक मसले पर एस खुर्शीद ने कई महत्वपूर्ण घटनाओं का जिक्र किया था। इनमें से जय प्रकाश नारायण द्वारा दिल्ली सामाजिक कार्यकर्ताओं की एक निजी बैठक में आगामी तीन महीनों तक कांग्रेस का सहयोग करने की बात भी कही गई, साथ ही यह भी कहा गया कि यदि उन्हें आभास हुआ कि कांग्रेस नेतृत्व गलत दिशा में जा रहा है तो वे तत्काल संबंध तोड़ लेंगे। रिपोर्ट के मुताबिक महात्मा गांधी हिंदू- मुस्लिम एकता के लिए पाकिस्तान जाकर जिंदगी भर वहां काम करने को तैयार थे, लेकिन मुस्लिम लीग ने कहा कि इससे पाकिस्तान के आतंरिक हालातों पर असर पड़ेगा। लिहाजा, महात्मा गांधी से अनुरोध किया गया कि वो भारत में ही रहें।

दो महीने की समस्या

मानसून कमजोर पड़ने एवं बड़ी संख्या में पंजाब एवं अलवर से शरणार्थियों के आने की वजह से दिल्ली में खाद्यान्न की भारी कमी हो गई है। खाद्यान्न की यह कमी आगामी दो महीने तक प्रशासन के लिए सिरदर्द बनी रहेगी। दिल्ली में 15 अगस्त तक सिर्फ दो हफ्ते दो दिन तक के गेंहू का स्टॉक था। सिंध प्रांत और पटियाला को अनाज जो कोटा भेजना था वह रद कर दिया गया था। सिर्फ उत्तर प्रदेश ने इस बार सिर्फ 2000 टन गेंहू दिया। चीफ कमिश्नर की रिपोर्ट कहती है कि दिल्ली में उन दिनों सिर्फ 55 टन चना का स्टॉक शेष बचा था। हालांकि पटियाला ने 600 टन चना दाल और 180 टन बेसन देने का वादा किया था, लेकिन ये आर्डर पूरा नहीं किया गया। दरअसल, पटियाला के नए प्रशासन ने कई तरह के प्रतिबंध लगा दिए थे। सिर्फ अनाज ही नहीं, नमक की किल्लत भी चरम पर थी। इन खाद्यान्नों की व्यवस्था में अधिकारियों का दल जी जान से जुटा था। 


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