Mahendra Singh Bhati Verdict: जानिये- क्यों डीपी यादव और महेंद्र भाटी बन गए थे जानी दुश्मन, एक ने जान गंवाई दूसरा हो गया बर्बाद
Mahendra Singh Bhati Verdict कभी महेंद्र भाटी का कद राजेश पायलट जैसे नेताओं से भी ज्यादा हुआ करता था। कहा तो यहां तक जाता था कि अगर वह आज जीवित होते तो प्रदेश के सीएम या फिर केंद्रीय मंत्री तक जरूर पहुंचते।
नई दिल्ली/नोएडा, आनलाइन डेस्क। महेंद्र सिंह भाटी हत्याकांड में बाहुबली नेता डीपी यादव के बरी होने से परिवार को झटका लगा है। बुधवार को उत्तराखंड की एक कोर्ट ने डीपी यादव समेत अन्य आरोपितों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया। इस पर महेंद्र सिंह भाटी के भतीजे संजय भाटी का कहना है कि वह न्याय के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे। आइये जानते हैं महेंद्र सिंह भाटी के बारे में जिनकी तारीफ न केवल यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव कर चुके थे, बल्कि कभी महेंद्र भाटी का कद राजेश पायलट जैसे नेताओं से भी ज्यादा हुआ करता था। कहा तो यहां तक जाता था कि अगर वह आज जीवित होते तो प्रदेश के सीएम या फिर केंद्रीय मंत्री तक जरूर पहुंचते।
छोटे से राजनीतिक करियर में 3 बार बने विधायक
जमीन अधिग्रहण के विरोध की अगुवाई करने के चलते महेंद्र सिंह भाटी किसानों के बीच जल्द ही काफी लोकप्रिय नेता हो गए थे। यही वजह है कि वह आसानी से चुनाव जीते और तीन बार विधायक भी बने। ऐसे कहा जाता है कि नोएडा, ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के खिलाफ जमीन अधिग्रहण के विरोध में सक्रिय महेंद्र भाटी ने फैक्ट्रियों में गांवों के हजारों बेरोजगार लोगों को नौकरी भी दिलवाई थी।
दोस्ती तब्दील हो गई दुश्मनी में
महेंद्र सिंह भाटी के कद का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि बाहुबली नेता डीपी यादव उन्हें अपना राजनैतिक गुरु मानते थे। एक समय दोनों के बीच करीबी भी बहुत थी। डीपी यादव पर इस कदर महेंद्र भाटी को विश्वास हो गया कि उन्होंने 1988 में डीपी यादव को बिसरख ब्लाक का प्रमुख भी बनवा दिया। 1989 में महेंद्र सिंह भाटी ने को डीपी यादव को बुलंदशहर से विधायक का टिकट भी दिलवाया। इस दौरान महेंद्र भाटी खुद दादरी विधानसभा से चुनाव लड़ रहे थे। इतना ही नहीं, डीपी यादव भी बुलंदशहर से जीते। इसके बाद 1991 के विधानसभा चुनाव में महेंद्र सिंह भाटी ने बुलंदशहर से डीपी यादव के सामने पतवाड़ी गांव के प्रकाश पहलवान को जनता दल के टिकट पर चुनाव लड़वाया। चुनाव प्रचार के दौरान सत्ता संघर्ष देखने को मिला। कई बार जमकर गोलीबारी हुई थी। डीपी यादव बड़ी मुश्किल से यह सीट जीतने में कामयाब हुए। इसके बाद डीपी यादव और महेंद्र सिंह भाटी की दुश्मनी शुरू हो गई।
डीपी यादव ने अपने ही गुरु के कत्ल में फंस गए
कहा जाता है कि राजनीतिक दुश्मनी के चलते ही 13 सितंबर, 1992 को महेंद्र सिंह भाटी का कत्ल हुआ। तब वह दादरी विधानसभा के विधायक थे। दरअसल, महेंद्र सिंह भाटी कुछ लोगों के के साथ अपने घर पर बैठे थे। एक फोन आने के बाद वह दादरी के लिए निकले। भंगेल रोड पर रेलवे फाटक बंद होने के कारण उनकी कार रुकी, लेकिन जब फाटक खुला तो सामने दो कारें थीं। कुछ समझ पाते कि ताबड़तोड़ फायरिंग होने लगी। इस फायरिंग में विधायक महेंद्र भाटी और उनके साथी उदय प्रकाश की मौके पर ही मौत हो गई, जबि गनर गोली लगने से घायल हो गया था। इसके अलावा, कार चालक देवेंद्र बचकर भाग निकला।
दुश्मनी की एक और थी वजह
दरअसल, 1991 में महेंद्र सिंह भाटी के छोटे भाई राजवीर सिंह भाटी की दादरी रेलवे रोड पर हत्या हुई थी, जिसमें महेंद्र फौजी और डीपी यादव के साले परमानंद यादव का नाम सामने आया था। इससे महेंद्र भाटी और डीपी यादव में खुलकर संघर्ष होने लगा था।
महेंद्र सिंह भाटी ने जून 1992 में विधानसभा सत्र में लिखित में कहा था कि राजनीतिक कारणों से उनकी हत्या हो सकती है, जबकि शिकायत के बावजूद पुलिस प्रशासन उन्हें सुरक्षा मुहैया नहीं करा रहा है। उस समय कल्याण सिंह की सरकार थी, लेकिन सुरक्षा नहीं मिली। तीन महीने बाद अक्टूबर, 1992 में उनकी कत्ल हो गया था।
डीपी यादव के चलते मुलायम से भी नाराज थे गुर्जर, करना पड़ा यह काम
महेंद्र सिंह भाटी हत्याकांड में डीपी यादव का नाम आते ही गुर्जर समुदाय मुलायम सिंह यादव से भी नाराज हो गया था। इस दौरान गुर्जर नेता रामशरण दास के माध्यम से गुर्जरों को जोड़ने की कोशिश की, लेकिन कामयाबी नहीं मिली। इसके बाद मुलायम सिंह यादव को खुद दादरी आकर गुर्जरों की नाराजगी दूर करनी पड़ी।