EXCLUSIVE: क्यों हुआ केजरीवाल का महागठबंधन से मोहभंग, पढ़ें- इनसाइड स्टोरी
पिछले साढ़े तीन साल से दिल्ली में सत्तासीन आम आदमी पार्टी (AAP) मुखिया अरविंद केजरीवाल अब राजनीति में हर चाल और दांव काफी सोच समझकर चलते हैं।
नई दिल्ली (जागरण स्पेशल)। 23 मई को कर्नाटक में जेडीएस नेता एचडी कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण समारोह के दौरान तमाम विपक्षी दलों ने केंद्र सरकार के खिलाफ शक्ति प्रदर्शन किया था। शपथ ग्रहण समारोह में अरविंद केजरीवाल भी शामिल हुए और उन्होंने वहां मौजूद नेताओं से अलग-अलग मुलाकात भी की थी। इससे लगने लगा था कि अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी भी महागठबंध का हिस्सा बनेगी, लेकिन तीन महीने के भीतर ही अरविंद केजरीवाल का महागठबंधन से मोहभंग हो गया है।
आम आदमी पार्टी मुखिया अरविंद केजरीवाल ने खुद महागठबंधन में शामिल होने से इनकार कर दिया है। इसके पीछे बड़ी वजह बताई जा रही है, आगामी तीन बड़े चुनाव। इतना ही नहीं, महागठबंधन से अलग होने का फैसला AAP के अन्य राज्यों में विस्तार की रणनीति के तौर पर भी देखा जा रहा है।
कहा जा रहा है कि पिछले साढ़े तीन साल से दिल्ली में सत्तासीन आम आदमी पार्टी (AAP) मुखिया अरविंद केजरीवाल अब राजनीति में हर चाल और दांव काफी सोच समझकर चलते हैं। हाल ही में AAP के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का विपक्ष के महागठबंधन से किनारा करने को नई रणनीति के तहत देखा जा रहा है।
2019 के लोकसभा और दो विधानसभा चुनावों पर केजरीवाल की नजर
दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने पिछले सप्ताह हरियाणा के रोहतक में कांग्रेस को बड़ा झटका देते हुए कहा था कि वह किसी से गठबंधन में विश्वास नहीं करते। उन्होंने यहां तक कह दिया था कि इस तरह के गठबंधन देश के विकास के लिए नहीं हैं। जब वह यह बयान दे रहे थे कि तो उनके निशाने पर कांग्रेस थी।
राजनीति के जानकारों की मानें तो केजरीवाल की आम आदमी पार्टी 2019 लोकसभा चुनाव के साथ इसी साल होने वाले हरियाणा विधानसभा चुनाव भी लड़ेगी। इसी के साथ कुछ ही महीनों बाद होने वाले दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 पर भी नजर है, जहां वह सत्ता में है। माना जा रहा है कि अगर AAP महागठबंधन का हिस्सा बनी तो उसे दिल्ली में जवाब देना मुश्किल हो जाएगा।
यही हाल हरियाणा विधानसभा चुनाव में होगा। जहां पर उसे भाजपा और कांग्रेस दोनों से मुकाबला करना है। बता दें कि हरियाणा में चतुष्कोणीय तो दिल्ली में त्रिकोणीय मुकाबला होना है। कहने का मतलब दिल्ली में AAP के सामने मुकाबले में भाजपा व कांग्रेस हैं तो हरियाणा विधानसभा चुनाव में उसे भाजपा, कांग्रेस, इंडियन नेशनल लोकदल (INLD) से टकराना होगा।
हरियाणा विधानसभा चुनाव में ताल ठोकेगी AAP
पिछले साल फरवरी-मार्च में हुए पंजाब और गोवा विधानसभा में आम आदमी पार्टी को आशातीत सफलता नहीं मिली थी। पंजाब में तो 20 सीटों के साथ उसने कुछ हद तक इज्जत बचा ली थी, लेकिन गोवा विधानसभा चुनावों में एक अहम किरदार मानी जा रही AAP की हालत काफी बुरी हुई थी। AAP ने गोवा की 40 विधानसभा सीटों में से कुल 39 पर अपने उम्मीदवार उतारे थे, जिनमें से उसके 38 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी। लेकिन AAP इन दोनों चुनावों की हार से उबर चुकी है। अब उसकी नजर हरियाणा विधानसभा की 90 सीटों पर है, जहां वह मजबूती से चुनाव लड़ेगी।
केजरीवाल का गृह राज्य है हरियाणा, इज्जत होगी दांव पर
दिल्ली और पंजाब के बाद आम आदमी पार्टी को हरियाणा में अपने लिए राजनीतिक जमीन नजर आने लगी है। इसके पीछे एक वजह यह भी है कि केजरीवाल का गृह राज्य हरियाणा है। अरविंद केजरीवाल का जन्म 1968 में हरियाणा के हिसार शहर में हुआ था। जाहिर है कि आम आदमी पार्टी हरियाणा विधानसभा चुनाव को बेहद गंभीरता से ले रही है।
25 मार्च को अरविंद केजरीवाल ने हिसार में ही हरियाणा बचाओ रैली के जरिए अगले साल नवंबर में होने वाले हरियाणा विधानसभा चुनाव लड़ने की घोषणा की थी। माना जा रहा है कि अरविंद केजरीवाल का हरियाणा में बहुत कुछ दांव पर लगा है। खासकर गृह राज्य होने की वजह से यह चुनाव दिल्ली से बड़ा और अहम चुनाव होगा। हिसार रैली में केजरीवाल ने कहा भी था कि वह अपनी जन्मभूमि पर आए हैं। इससे यह संकेत भी मिला है कि केजरीवाल हरियाणा विधानसभा चुनाव में अपना हरियाणवी कार्ड खेलने की तैयारी में हैं।
सीएम उम्मीदवार घोषित कर चुनाव लड़ रही AAP
हरियाणा में चुनाव के लिए हालांकि, एक साल से ज्यादा का समय बचा है, लेकिन AAP ने अभी से मुख्यमंत्री का उम्मीदवार घोषित कर दिया है। पार्टी ने प्रदेश अध्यक्ष नवीन जयहिंद को मुख्यमंत्री का उम्मीदवार बनाया है। नवीन जयहिंद, दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति जयहिंद (स्वाति मालिवाल) के पति हैं। दोनों आप के पुराने सदस्य हैं और आप के सभी आंदोलनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं।
AAP का दांव गैर जाट पर है
दिल्ली से सटे हरियाणा की राजनीति बेशक जाट और गैर जाट के इर्द-गिर्द घूमती रहती है। ऐसे में हरियाणा में केजरीवाल ने गैर-जाट पर दांव लगाया है। AAP ने नवीन जयहिंद को पंडित बताकर 8 फीसदी ब्राह्मण वोटरों पर निगाह गड़ाई है। हरियाणा में ब्राह्मण और पंजाबी जिनकी तादाद आठ फीसदी है, एक साथ वोट करते हैं। इसका फायदा AAP को मिल सकता है। इसके अलावा 4 फीसदी वोट वैश्य भी है, जिस पर भी केजरीवाल की निगाह है।
दिल्ली के विकास मॉडल पर हरियाणा में लड़ेंगे चुनाव
केजरीवाल ने कहा है कि दिल्ली में विकास के मॉडल को लेकर हरियाणा में लोकसभा और विधानसभा चुनाव लड़ेंगे। एसवाईएल नहर के मुद्दे पर कहा कि दोनों राज्यों के साथ न्याय होना चाहिए, जो सुप्रीम कोर्ट करेगा। भाजपा समेेेत कांग्रेस व इनेलो, एसवाईएल पर राजनीति कर रही है।
दिल्ली में भी AAP-कांग्रेस का मेल मुश्किल
पिछले छह महीने से कांग्रेस और आम आदमी पार्टी में गठबंधन को लेकर अफवाहें गर्म थीं, लेकिन इसे दोनों ही पार्टियों के बड़े नेता लगातार इनकार कर रहे थे। दिल्ली में जहां कांग्रेस वापसी करती दिखाई दे रही है वहीं, AAP का आधार कमजोर हुआ है, लेकिन खत्म नहीं। ऐसे में दोनों ही पार्टियां अपने-अपने नफे-नुकसान के मद्देनजर शायद ही एक-दूसरे से गठजोड़ करें।
क्या राहुल से नाराज हैं केजरीवाल
पिछले दिनों दिल्ली में भी कांग्रेस व आम आदमी पार्टी (AAP) के बीच सियासी गठजोड़ की संभावनाओं पर ग्रहण लगता दिख रहा था। दिल्ली प्रदेश कांग्रेस के बाद अब पार्टी हाईकमान ने भी मानो यह साफ संदेश दे दिया है कि उसे आप के साथ की कोई दरकार नहीं है। इसका ताजा संकेत राज्यसभा उपसभापति के चुनाव में देखने को मिला। कांग्रेस ने आप को छोड़कर तमाम अन्य विपक्षी दलों से समर्थन मांगा था। इससे बौखलाए आप नेताओं ने कांग्रेस के खिलाफ सीधा मोर्चा खोल दिया था। AAP ने उपसभापति चुनाव से खुद को अलग रखा। राज्यसभा सदस्य संजय सिंह ने सदन में कहा था कि राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति चुनाव सहित अन्य मौकों पर उनकी पार्टी ने कांग्रेस को बिना शर्त समर्थन दिया। अब यदि कांग्रेस को आप का साथ नहीं चाहिए तो उनकी पार्टी क्यों आगे बढ़े।
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