आखिर क्यों चिंतिंत हैं दिल्ली के फेमस कनाट प्लेस के दुकानदार, कैसे दूर होगी इनकी दिक्कतें
वर्ष 1933 में बने कनाट प्लेस में 1500 से अधिक आउटलेट्स दुकानें आफिस और रेस्तरां है। जहां दिल्ली के साथ ही देश के विभिन्न राज्यों से लोग खरीदारी करने आते हैं।यह दिल्ली का प्रमुख पर्यटन स्थल भी हैलेकिन यहां भी समस्याएं राष्ट्रीय राजधानी के अन्य हिस्सों से अलग नहीं है।
नई दिल्ली [नेमिष हेमंत]। विश्व प्रसिद्ध दिल्ली के दिल कनाट प्लेस की इमारतें दरकने लगी है। कई स्थानों पर छतों व दीवारों से पलस्तर उखड़ रहा है तो गलियारे के खंभों में भी लंबी-लंबी दरारें दिख रही है। स्थिति यह है कि गिरते पलस्तर से लोग चोटिल तक हो रहे हैं। आजादी पूर्व की इस ऐतिहासिक महत्व की इमारतों की मौजूदा स्थिति को लेकर यहां के दुकानदार निराश हैं। वे इसके लिए नई दिल्ली नगर पालिका परिषद (एनडीएमसी) की उदासीनता को जबादेह बताते हैं। उनके मुताबिक अंग्रेजों द्वारा बनाई गई ये इमारतें 80 सालों तक सुरक्षित रहीं थी, लेकिन 10 साल पहले एनडीएमसी द्वारा की गई इन इमारतों की मरम्मत गुणवत्तापूर्ण नहीं थीं, इसलिए ऐसा हो रहा है।
सौंपी 25 स्थानों की सूची
चिंताजनक बात यह है कि खराब स्थिति में होने के बावजूद इन्हें इसकी हाल में छोड़ दिया गया है। हाल ही में नई दिल्ली ट्रेडर्स एसोसिएशन (एनडीटीए) ने एनडीएमसी को कनाट प्लेस की इमारतों के ऐसे 25 स्थानों की सूची सौंपी है, जहां तुरंत मरम्मत की आवश्यकता है। इसमें ए, बी, डी, ई, एफ, जी, एच व एल ब्लाक के इनर, आउटर व मध्य सर्कल के गलियारें हैं।
दस साल में ही दरकने लगीं कनाट प्लेस की इमारतें
वर्ष 1933 में बने कनाट प्लेस में 1500 से अधिक आउटलेट्स, दुकानें, आफिस और रेस्तरां है। जहां दिल्ली के साथ ही देश के विभिन्न राज्यों से लोग खरीदारी करने आते हैं। यह दिल्ली का प्रमुख पर्यटन स्थल भी है, लेकिन यहां भी समस्याएं राष्ट्रीय राजधानी के अन्य हिस्सों से अलग नहीं है। इसमें रेहड़ी-पटरी वालों का अतिक्रमण व बेघरों का जमावाड़ा प्रमुख है। इन दिनों हाई कोर्ट व दिल्ली पुलिस की सख्ती से इसपर लगाम लगी है। पर जर्जर इमारतों की समस्या का हल नहीं निकल रहा है।
खंभों में भी दिखाई देने लगी हैं लंबी-लंबी दरारें
वैसे, वर्ष 2010 में आयोजित राष्ट्रमंडल खेल के दौरान दिल्ली को चमकाने के क्रम में कनाट प्लेस का भी रंग रोगन किया गया था। एनडीटीए के महासचिव विक्रम बधवार बताते हैं कि वर्ष 2010 में ही कनाट प्लेस की इमारतों के मरम्मत की योजना थी, लेकिन वह लेटलतीफी की भेंट चढ़ गई तो खेल खत्म होने के बाद वर्ष 2011 में फिर से सुंदरीकरण का काम शुरू हुआ जो वर्ष 2012 में खत्म हुआ। यह सुंदरीकरण का काम ऐसा था कि कुछ सालों में ही पलस्तर उखड़ने लग गई। छत भी उखड़कर गिर रहे हैं।
ऐसे फंसा है पेंच
बधवार कहते हैं कि मरम्मत के यह मामले एनडीएमसी से जुडे़ हुए हैं, जो इसके प्रति लापरवाह हैं। दिक्कत यह है कि जो दुकानों या आफिस में मरम्मत के निजी मामलों में भी उसके द्वारा उदासीनता बरती जा रही है। कई महीने, कुछ मामलों में कुछ वर्ष तक मंजूरी संबंधी फाइलें लटकी रह जाती है। इसके साथ ही इतनी औपचारिकताएं बता दी जाती है कि निजी अधिकार वाली संपत्तियों में भी मरम्मत के कई मामले अटके हुए हैं। इसलिए हाल के वर्षों में कुछ इमारतों की छतों के गिरने के मामले भी सामने आए हैं। इस संबंध में एनडीएमएमसी का कहना है कि यह निजी संपत्ति है। इसके मरम्मत में उनकी कोई भूमिका नहीं है।