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खिली चटख धूप का आखिर क्या है वायु प्रदूषण से कनेक्शन, पढ़िये एक्सपर्ट व्यू

वास्तव में आम दिल्लीवासी थोड़ा सा मौसम खुला होने पर यह मानते हैं कि हवा आदर्श स्थिति के करीब आ गई जबकि उस समय भी यह बहुत खराब श्रेणी में होती है। यह स्थिति हकीकत से मुंह मोड़ने जैसी है। एक्सपर्ट की भी यही राय है।

By Jp YadavEdited By: Published: Fri, 19 Nov 2021 01:50 PM (IST)Updated: Fri, 19 Nov 2021 01:50 PM (IST)
खिली चटख धूप का आखिर क्या है वायु प्रदूषण से कनेक्शन, पढ़िये एक्सपर्ट व्यू
खिली चटख धूप का आखिर क्या है वायु प्रदूषण से कनेक्शन, पढ़िये एक्सपर्ट व्यू

नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। चांदनी चौक में खरीदारी करने आए सुबोध कुमार से बृहस्पतिवार दोपहर 12 बजे जब यह पूछा गया कि आज आप दिल्ली की आबोहवा को कैसा मान रहे हैं तो उनका कहना था कि धूप खिली हुई है और आज प्रदूषण नियंत्रण में है। इसी तरह, यहां परिवार के साथ शादी की खरीदारी करने आईं रश्मि ने पूछने पर बताया कि आज आसमान साफ है और प्रदूषण नहीं के बराबर लग रहा है। लेकिन, जब इन दोनों को यह बताया गया कि इस समय इस क्षेत्र में एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआइ) 364 है, जो बहुत खराब की श्रेणी में आता है तो उन्हें यकीन ही नहीं हुआ।

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वास्तव में आम दिल्लीवासी थोड़ा सा मौसम खुला होने पर यह मानते हैं कि हवा आदर्श स्थिति के करीब आ गई, जबकि उस समय भी यह बहुत खराब श्रेणी में होती है। यह स्थिति हकीकत से मुंह मोड़ने जैसी है। यदि दिल्लीवासी और दिल्ली में प्रदूषण नियंत्रण करने में जुटी एजेंसियां खिली हुई धूप या खुले मौसम को देखकर प्रदूषण का अंदाजा लगाएंगी तो इस प्रदूषण से निजात मिलना मुश्किल ही है।

स्थिति इतनी खतरनाक है कि दिल्ली में वायु प्रदूषण लोगों को तभी नजर आता है, जब यह गैस चैंबर में तब्दील हो जाती है। तभी न सिर्फ दिल्लीवासी हायतौबा मचाते हैं और तभी ही सरकारी अमला भी वायु प्रदूषण नियंत्रण के स्कूल बंद कर देने या वर्क फ्राम होम करने जैसे उपायों में जुटता है। जबकि यह एक कड़वी सच्चाई है कि वर्षभर दिल्ली में औसत एक्यूआइ तय मानक के मुकाबले तीन से चार गुना अधिक रहता है। यानी दिल्ली में वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के उपायों की वर्षभर आवश्यकता है और पूरे साल इसे एयर इमरजेंसी के तौर पर देखा जाना चाहिए।

आइआइटी दिल्ली के वायुमंडलीय विज्ञान विभाग के प्रोफेसर सागनिक डे का मानना है कि धूप खिली होने पर यदि आपको लगता है कि प्रदूषण नहीं है तो ऐसा नहीं है। प्रदूषण तब भी बहुत ज्यादा होता है, जो हमारे शरीर के लिए बहुत हानिकारक है।

जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रो. उमेश यादव कहते हैं कि इसे सिर्फ एक या दो महीने की समस्या के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि ठोस कार्य योजना बनानी होगी।

वहीं, दिल्ली विवि के इन्वायरमेंटल स्टडीज के प्रो. राधे श्याम कहते हैं कि दिल्ली गैस चैंबर में तब्दील हो चुकी है। प्रदूषण बच्चों, बड़ों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर डाल रहा है। इसे जीवन की लड़ाई मान कर पूरे साल ईमानदारी से प्रयास करने की जरूरत है।


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