श्रीदेवी के बाद एक और एक्टर के निधन से दिल्ली दुखी... नरेंद्र झा को खूब भाता था करीम का चिकन
श्रीदेवी और नरेंद्र झा, दोनों का दिल्ली से बेहद करीबी रिश्ता रहा है।
नई दिल्ली (मनु त्यागी)। पिछले महीने की 24 फरवरी को जहां बॉलीवुड एक्ट्रेस श्रीदेवी के निधन ने फिल्म जगत को सकते में डाल दिया था वहीं ठीक 18 दिन बाद 14 मार्च को एक्टर नरेंद्र झा की असामयिक मौत ने दिल्ली वालों को भावुक कर दिया। इसके पीछे बड़ी वजह भी है, क्योंकि श्रीदेवी और नरेंद्र झा, दोनों का दिल्ली से बेहद करीबी रिश्ता रहा है। जहां श्री देवी को चांदनी चौक इलाका पंसद था, वहीं नरेंद्र झा ने दिल्ली के जेएनयू से पढ़ाई की तो अभिनय कला में खुद मांझने के दौरान उन्होंने मंडी हाउस को दूसरा घर बना लिया था। निधन के चंद महीने पहले नरेंद्र का दिल्ली आना हुआ था तो उन्होंने दैनिक जागरण से दिल्ली की यादों को साझा किया था। उन्होंने दिल्ली को लेकर जो भी बातें कहीं, हूबहू यहां पर पेश हैं।
दिल्ली से लगा बैठा दिल
आप कहीं भी चले जाओ, लेकिन एक बार दिल्ली से दिल लगा बैठे तो इसकी यादें आपके जेहन में हमेशा के लिए बस जाती हैं। मेरे साथ भी ऐसा ही है। बात सितंबर माह की है। मुझे श्रीराम सेंटर से एक निमंत्रण मिला। कार्यक्रम में मुझे बतौर अतिथि बुलाया गया था। देखते ही जुबां से यही निकला कि यही होती है ईश्वर की अनुकंपा। अभिनय के जिस विद्यालय ने सींचा मंच पर अभिनय सिखाया आज उसी मंच पर मैं बतौर अतिथि के लिए आमंत्रित था। पहले तो फिल्म का दृश्य सा लगा। लेकिन जब आमंत्रण पर वहां पहुंचा तो कुछ देर तक उसी मंच को निहारता रहा जिसने मुझे अभिनय का हुनर दिया।
श्रीराम सेंटर की कैंटीन में 90 के दशक का अहसास
मैंने बहुत सारे नाटकों की प्रस्तुति दी थी। मुझे अचानक ही मंच पर बैठे हुए बादल सरकार का नाटक 'बाकी इतिहास' में अपना शरद नामक युवक का किरदार याद आ गया। मैं उस दिन वहां अतिथि तो था लेकिन अपने अतीत की यादों में ज्यादा भीगा रहा। श्रीराम सेंटर की कैंटीन में भी मुझे नाइनटीज वाला फील आया, क्योंकि कैंटीन में संचालक भी तो वही पुराने थे।
शाहजहां रोड पर वो चाट वाला...
मैंने भी उनसे चाय के उसी पुराने सुस्वाद की फरमाइश की। बहरहाल, मेरा जब भी दिल्ली आना होता है तो अपने फेवरेट खाने के अड्डों पर जाए बिना एक अधूरा पन लगता है। यूपीएससी के पास शाहजहां रोड पर वो चाट वाला। वहीं बंगाली मार्केट में रसगुल्ला खाने के लिए और चांदनी चौक में करीम का चिकन।
पत्नी कभी-कभार होती थी नाराज
ये ऐसी जगह हैं जहां जाना मेरे लिए अनिवार्य होता है। ये जगहें मुझे दोस्तों के साथ खुद-ब-खुद खींच ले जाती हैं। चूंकि मैं इन जगहों पर अक्सर दोस्तों के साथ ही आता रहा हूं। पत्नी इस बात को लेकर हमेशा नाराजगी सी जाहिर करती थीं तो पिछली दफा उन्हें भी ले आया और बताया यही है वो चाट वाला जिसकी चाट के सुस्वाद की तारीफ आप फोन पर सुनती रही हैं।
जेएनयू में पढ़ाई के दौरान दिल्ली ने मुझे अपनाया
दिल्ली की अनेक खासियत हैं, लेकिन सबसे खास बात है यह बहुत जल्दी अपना बना लेती है। 1990 में यहां पढ़ाई के लिए आया था। जेएनयू और श्रीराम सेंटर से पढ़ाई भी की। पढ़ाई करते हुए जाने कब दिल्ली ने मुझे अपना बना लिया। जेएनयू में इतिहास का छात्र था ताप्ती हॉस्टल में रहता था। किताबों से फुर्सत ही नहीं मिलती थी, लेकिन फिर भी दोस्तों के साथ दिल्ली को जानने के लिए किसी भी वक्त निकल पड़ते थे।
वाकई दिल्ली मजेदार शहर है
इतिहास की किताबों में जैसा दिल्ली को पढ़ा उसे साक्षात देखने जानने में और मजा आता था। कुतुबमीनार, लालकिला, पुराना किला, इंडिया गेट आदि आदि जगहों को बार-बार इतिहास के नजरिये से देखा। हालांकि अब दिल्ली इमारतों और फ्लाईओवर वाला शहर बन गया है। जब हम शाहरुख खान के साथ रईस की शूटिंग कर रहे थे तो शाहरुख ने भी मुझे मजाकिया अंदाज में कहा था कि नरेंद्र अब तो दिल्ली इतनी बन बस गई है कि
कई बार अपने घर का रास्ता तलाशने मुश्किल हो जाती है। वाकई दिल्ली एक मजेदार शहर है।