84 दंगे में हैरानी की बात, मिले थे 95 शव, लेकिन हत्या में नहीं दर्ज हुआ एक भी मामला
1984 में हुए सिख विरोध दंगे के बाद मामला दर्ज करने से लेकर सबूतों को जुटाने में जांच एजेंसियों की लापरवाही पर दिल्ली हाई कोर्ट ने गंभीर सवाल उठाए।
नई दिल्ली [विनीत त्रिपाठी]। 1984 में हुए सिख विरोध दंगे के बाद मामला दर्ज करने से लेकर सबूतों को जुटाने में जांच एजेंसियों की लापरवाही पर दिल्ली हाई कोर्ट ने गंभीर सवाल उठाए। न्यायमूर्ति आरके गॉबा ने हैरानी जताई कि दंगे में 95 लोगों का शव बरामद होने के बावजूद भी पुलिस ने मामले में एक भी हत्या का मुकदमा दर्ज नहीं किया। पीठ ने यह भी कहा कि पुलिस ही नहीं निचली अदालत समेत अन्य एजेंसियों ने भी सुबूत जुटाने की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया।
79 पेज के अपने फैसले में न्यायमूर्ति गॉबा ने कहा कि दंगे को रोकने के लिए दिल्ली पुलिस व सिविल प्रशासन ने कार्रवाई नहीं की। अभियोजक पक्ष की तरफ से पेश किए गए तथ्य व सबूत से स्पष्ट है कि त्रिलोकपुरी के अलग-अलग इलाकों में दंगा फैला था। विशेष तौर पर ब्लॉक नंबर-32 में हुए दंगे में 95 लोगों की मौत हुई थी और 100 घरों को आग के हवाले कर दिया गया था।
पीठ ने अपने फैसले में कहा कि आपराधिक मामला 1985 में दाखिल किए गए आरोप पत्र से शुरू हुआ था, लेकिन मुकदमे से जुड़े सभी मामले जुटाने में दस साल लग गए और दिसंबर 1995 तक आरोपितों पर आरोप तय करने पर विचार नहीं हो सका। निचली अदालत में आरोप जनवरी 1996 में तय हुए। पीठ ने कहा कि इससे यह पता चलता है कि जांच एजेंसी और अभियोजक पक्ष के बीच तालमेल की कितनी कमी थी।
22 शवों की पहचान कर उचित कार्रवाई करे पुलिस आयुक्त
फैसले में पीठ ने कहा कि वारदात के 34 साल बाद भी बरामद हुए 95 शवों में 22 शवों की अब तक पहचान नहीं की जा सकी। पीठ ने कहा कि यह कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि किसी भी जांच एजेंसी ने 22 शवों की पहचान करने की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया। पीठ ने दिल्ली पुलिस आयुक्त को निर्देश दिया कि बरामद हुए 22 शवों की पहचान कराएं और पहचान होने के बाद मामले में उचित कार्रवाई करें।
सीएम केजरीवाल ने फैसले को सराहा
वर्ष 1984 के सिख विरोधी दंगा मामले में हाई कोर्ट के फैसले का मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने स्वागत किया है। केजरीवाल ने बुधवार को ट्वीट किया, 1984 के सिख विरोधी दंगे के दौरान त्रिलोकपुरी में सैकड़ों निदरेष लोगों के कत्ल के जिम्मेदार 88 दोषियों की दोषसिद्धि बरकरार रखने के हाई कोर्ट के फैसले का मैं स्वागत करता हूं। दंगा पीड़ितों को 34 साल बाद भी न्याय नहीं मिला है। बड़ी मछलियां अब भी खुलेआम घूम रही हैं।
कमीशन ऑफ इन्क्वायरी व मानवाधिकार एक्ट में करें संशोधन
पीठ ने कहा कि इस तरह के सांप्रदायिक दंगे के मामलों की जांच के लिए कमीशन ऑफ इन्क्वायरी एक्ट-1952 व प्रोटेक्शन ऑफ ह्यूमन राइट एक्ट-1993 में संशोधन करने की जरूरत है, ताकि ऐसे दंगों को तत्काल रोका जा सके। इस तरह के मामलों की जांच के लिए तत्काल एक स्पेशल इंवेस्टीगेशन टीम के जरिये कराया जाना चाहिए ताकि वारदात से जुटे सुबूतों को जुटाने से लेकर जांच हो सके। पीठ ने कहा कि अब वक्त आ गया है कि जांच एजेंसी मीडिया हाउस के पास मौजूद घटना से जुड़े फोटो व वीडियो लेकर सुबूत के तौर पर इस्तेमाल करें।
ध्वस्त हो गई थी कानून-व्यवस्था
पीठ ने कहा कि मामले से पता चला कि कानून-व्यवस्था की पूरी मशीनरी किस तरह से ध्वस्त हो गई थी। सरेआम लोगों को मारा गया, लूट की गई और घरों को आग के हवाले कर दिया गया। आपराधिक न्याय प्रक्रिया को अमल लाने में देरी की गई और निचली अदालत में भी मामले की सुनवाई में देरी हुई। पीठ ने कहा कि इस तरह की घटना से निपटने के लिए आपराधिक न्याय प्रक्रिया में सुधार की जरूरत है।