1999 Kargil War: 50 मीटर खड़ी चट्टान पर चढ़ते हुए दुश्मन के वार का किया सामना
1999 Kargil War 50 मीटर खड़ी चट्टान पर चढ़ने के दौरान ऊपर से फायरिंग हो रही थी और राजेश और उनकी टीम बीच मे फंसे थे।
नई दिल्ली [शिप्रा सुमन]। 26 साल की उम्र, सीने में फौलाद और वतन पर मर मिटने का जज्बा, एक वीर सिपाही की यही पहचान है। कारगिल युद्ध में सियाचीन ग्लेशियर में हजारों मील की ऊंचाई पर दुश्मन की गोलियों को चीरते हुए राजेश यादव पहाड़ियों पर कदम बढ़ा रहे थे, तब केवल दुश्मनों को अपनी धरती से वापस खदेड़ना ही उनका एकमात्र लक्ष्य था। 5 हजार 810 मीटर की रिंग कंटूर के हिल पर चढ़ते हुए उन्हे अपने बंकर पहुंचना था, लेकिन इतनी ऊंचाई वाले इस हील के रास्तों के पत्थरों ने उनके पांव जख्मी कर दिये थे। राजेश ने लड़ाई के दौरान दूर गांव में बैठी अपनी पत्नी को चिट्ठी में लिखा था, जब तक कोई खबर नहीं आती समझो सब ठीक है और अगर आएगी तो फिर ताबूत में ही।
रेडियो पर क्रिकेट मैच सुनते हुए होने लगी फायरिंग
उन दिनों सीमा पर सीज फायर की घोषणा के बाद मुकेश की पोस्टिंग सियाचिन ग्लेशियर में की गई थी। छह महीनों की सख्त ट्रेनिंग के बाद वह एक मई 1999 को अपने बेसकैंप वापस आने के कुछ दिनों बाद ही 28 मई को रात में हरकत हुई। राजेश बताते हैं कि उस दौरान वह रेडियो पर वर्ल्ड कप मैच को सुन रहे थे। तभी उन्हें यह सूचना दी गई कि दुश्मन की ओर से फायरिंग शुरू हो चुकी है, इसलिए रात में ही उनकी टीम लद्दाख के तुरतुक गांव की ओर चल दिये। उन्हें ऊपर चोटी पर बने खाली बंकर में पहुंचने का आदेश था।
पहाड़ियों पर डेढ़ महीने का सफर
राजेश ने बताया कि हमारी जगह ऐसी थी जहां से हजारों मीटर की ऊंचाई ऊपर जाना था। रास्ते सुनसान थे और रात का सफर था। 10 से 12 जुलाई तक अलग-अलग जगह समय बिताते रहे। डेढ़ महीने तक ऊपर ही रहे। इससे पहले उन्हें पहली बार इंडियन न्यू स्माल राइफल के प्रयोग के बारे में बताया गया। जिसका अभ्यास करने के बाद उन्होंने अपनी टीम के साथ चढ़ाई शुरू की। पीठ पर 25-27 किलो का भार लेकर चलते रहे, लेकिन चोटी के नीचे से गुजरना मुश्किल था क्योंकि फायरिंग हो रही थी। पत्थरीला इलाका था और अंधेरी रात में बारिश के बीच पत्थरों के ऊपर चलना था। नीचे एक किमी का ढलान था।
रास्ते में पकाई रोटी
50 मीटर खड़ी चट्टान पर चढ़ने के दौरान ऊपर से फायरिंग हो रही थी और राजेश और उनकी टीम बीच मे फंसे थे। पानी नहीं था लेकिन नमक, आटा और लहसन से खाना बनाना था। फायरिग और बमबारी की टाइमिंग देखकर नीचे पानी लेने गया। चार पांच रोटियां सभी ने अपने पास रख ली। फिर माइनिंग से भरे रास्तों पर आगे निकल चले। फायर बेस बनाकर दुश्मनों का सामना किया।
दादा-नाना से सुनी बहादुरी की कहानियां
हरियाणा के नारनौल शहर में पले बढ़े राजेश के दादा और नाना दोनों ही दूसरे विश्व युद्ध के सिपाही रहे थे, जिनके बहादुरी के किस्से उन्होंने बचपन से ही सुनने को मिले। राजेश कहते हैं कि उन्हें मुंशी प्रेमचंद के उपन्यास दुर्गा दास राठौर को पढ़कर बहुत प्रेरणा मिली है। वह कहते हैं जब युद्ध के मैदान में एक सिपाही लड़ता तो उसके दिल-दिमाग में केवल वतन की रक्षा होती है, लेकिन देश के लोग जब जाति-धर्म को लेकर झगड़ते हैं तब बुरा लगता है। फिलहाल राजेश दिल्ली पुलिस में कार्यरत हैं।