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भारत खुद अपनी शक्ति का अहसास नहीं कर सका, अब विभिन्न मोर्चों पर उलझ रहा है 'ड्रैगन'

चीन हमेशा भारत को चौतरफा घेरने और उलझाने की कोशिश करता रहा है। अब भारत उसे विभिन्न मोर्चों पर उलझा रहा है।

By Amit MishraEdited By: Published: Tue, 28 Aug 2018 05:01 PM (IST)Updated: Wed, 29 Aug 2018 08:23 AM (IST)
भारत खुद अपनी शक्ति का अहसास नहीं कर सका, अब विभिन्न मोर्चों पर उलझ रहा है 'ड्रैगन'

नोएडा [मृत्युंजय त्रिपाठी]। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के प्रोफेसर व चीन मामलों के विशेषज्ञ अश्विनी महोपात्र ने कहा कि भारत इस समय तेजी से उभर रही शक्ति है, जिसकी जरूरत जितनी अमेरिका को है, उतनी ही चीन को। इस समय भारत ने वैश्विक परिदृश्य में खुद को इस मुकाम पर लाकर खड़ा कर दिया है, जहां पर इसकी उपेक्षा विश्व की बड़ी शक्तियां भी नहीं कर सकतीं। यह हम पर निर्भर करता है कि चीन और अमेरिका के प्रति हमारी नीतियां क्या हों। जहां तक मुझे लगता है, अमेरिका की अपेक्षा चीन हमारे लिए बड़ा संकट है। चीन में लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था नहीं है, इसलिए उसकी साम्राज्यवादी नीतियां अधिक क्रूर हैं। एक शक्तिशाली पड़ोसी होने के नाते भी उससे सतर्क रहना भारत के लिए जरूरी है।

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भारत भी चीन को विभिन्न मोर्चों पर उलझा रहा है

प्रोफेसर महोपात्र सोमवार को दैनिक जागरण के नोएडा कार्यालय में आयोजित में 'डोकलाम मामले में चीन पर कितना भरोसा किया जाए' विषय पर संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि डोकलाम समेत अन्य मुद्दों पर भारत की नीति इस समय सही और सुस्पष्ट है। चीन हमेशा भारत को चौतरफा घेरने और उलझाने की कोशिश करता रहा है। अब भारत उसे विभिन्न मोर्चों पर उलझा रहा है। देश की सरकार को कूटनीतिक ढंग से इसी दिशा में और तेजी से काम करने की जरूरत है। चीन के प्रति हमारी नीति क्या हो, इसके लिए अधिक जरूरी है कि हम जानें कि हमारे प्रति चीन की नीति क्या है।

भारत चीन डोकलाम दैनिक जागरण के लिए इमेज परिणाम

भारत खुद अपनी शक्ति का अहसास नहीं कर सका 

दरअसल, पूर्व में यह नीति ही स्पष्ट नहीं रही है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के समय यह नीति स्पष्ट हुई। उस दौरान सरकार ने चीन को काफी गंभीरता से लिया था। वाजपेयी के समय देश में न सिर्फ इंफ्रास्ट्रक्चर पर ध्यान दिया गया, बल्कि सैन्य विकास की दिशा में भी काफी काम हुआ लेकिन दुर्भाग्यवश इसमें निरंतरता नहीं रह सकी। वाजपेयी के बाद की यूपीए सरकार के 10 वर्षो के कार्यकाल में विदेश नीति के साथ ही सैन्य विकास से ध्यान हटा रहा, जबकि चीन ने इस दौरान इन क्षेत्रों में आक्रामक तरीके से काम किया। उस समय अमेरिका बार-बार भारत को उभरती शक्ति के रूप में संबोधित कर प्रेरित करता रहा, लेकिन भारत खुद इसका अहसास नहीं कर सका। उस दौरान देश तरह-तरह के घोटालों में ही उलझा रहा और प्रमुख मुद्दों पर ठीक से पहल नहीं हो पाई।

अब परेशान है चीन

प्रो. महोपात्र ने कहा कि वर्तमान सरकार की विदेश नीति काफी सुस्पष्ट है, जिसने चीन को परेशानी में डाल दिया है। चीन की नीति हमेशा हमें चौतरफा घेरने की रही है, अब वह खुद भी कई मोर्चों पर घिर रहा है। यह जरूरी भी है कि हम चीन के प्रति सिर्फ दोस्ताना ही नहीं, बल्कि सतर्कता का भी भाव रखें। आखिर वह कई मामलों में हमसे अधिक शक्तिशाली है।

भारत चीन डोकलाम दैनिक जागरण के लिए इमेज परिणाम

पड़ोसियों को क्लाइंट कंट्री के रूप में देखता है ड्रैगन

चीन की आंतरिक आर्थिक संरचना काफी मजबूत है और वह अपने अर्थ के बड़े हिस्से का उपयोग सैन्य ताकत बढ़ाने व साम्राज्यवादी नीतियों के विस्तार में करता है। चीन की नीति है कि अन्य देशों को पैसे दो और उनकी आत्मनिर्भरता को समाप्त कर उन्हें चीन-निर्भर बना दो। इस तरह बिना युद्ध के ही उन्हें दबाव में रखने का मौका चीन को मिल जाता है। चीन की नीति आस-पास के देशों को 'क्लाइंट कंट्री' के रूप में रखने की है। इसलिए भी भारत को अधिक सावधान रहने की जरूरत है और देश की इस समय की नीतियां बता रही हैं कि सरकार काफी सजग है।  


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