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जानिए कैसेे पड़ा दिल्ली के वजीराबाद का नाम, पढ़े इतिहास से जुड़ी कई अनसुनी बातें

वजीराबाद पुल और स्मारक गांव की खास पहचान है। इतिहास के मुताबिक भले ही इस पुल का निर्माण तुगलक काल (1351-1388) में किया गया हो लेकिन गांव के लोग कहते हैं कि यह मुगलकाल से भी पुराना है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 17 Apr 2021 12:56 PM (IST)Updated: Sat, 17 Apr 2021 01:33 PM (IST)
जानिए कैसेे पड़ा दिल्ली के वजीराबाद का नाम, पढ़े इतिहास से जुड़ी कई अनसुनी बातें
कभी इसी सुरंग से यमुना में नहाने आती थी पृथ्वीराज की बेटी बेला जागरण

रितु राणा। नौ दिल्ली 10 बादली किला वजीराबाद..ये कहावत ऐसे ही नहीं बनी। दरअसल दिल्ली नौ बार उजड़ी बसी और बादली 10 बार, लेकिन ऊंचे टीले पर बसे वजीराबाद गांव का किला कभी नहीं ढहा। इस गांव पर कभी कोई आंच तक नहीं आई। इसके पीछे भी दिलचस्प किस्से हैं। ग्रामीणों के मुताबिक 1978 में भयानक बवंडर आया था। तब पूरी दिल्ली में भूचाल आ गया। सब तहस नहस हो गया। लेकिन वजीराबाद गांव रामघाट स्थित भूरा खां की समाधि के पास आते ही बवंडर रुक गया। दरअसल भूरा खां गांव के ही एक बुजुर्ग की मजार है। उन्होंने यहीं समाधि ली थी। ग्रामीणों के मुताबिक वही गांव की रक्षा करते हैं, कोरोना काल में भी उनका यह अटूट विश्वास बना हुआ है।

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मुगलकालीन इस गांव के बसने और इसके नाम के पीछे भी एक किदवंती है। पहले यहां पर काफी गहरा जंगल था। फिरोजशाह तुगलक के शासन काल के दौरान फिरोजशाह तुगलक का वजीर अपने घोड़ों को पानी पिलाने और आराम करने के लिए अक्सर यहां आया करता था। यमुना के किनारे फिरोजशाह तुगलक के वजीर ने ही आरामगाह और इस पुल का निर्माण करवाया था। बाद में फिरोजशाह तुगलक के वजीर ने यहां पर एक गांव बसाया जिसका नाम वजीराबाद गांव रखा गया। अरावली पर्वत श्रृंखला भी इसी गांव से शुरू होती है। हाल ही में गांव के बाहर मेट्रो की खोदाई में 60 फीट नीचे पहाड़ी के पत्थर भी निकले थे, जिसकी पुष्टि पुरातत्व विभाग ने की थी।

सुरंग से आती थी पृथ्वीराज की बेटी बेला: वजीराबाद पुल और स्मारक गांव की खास पहचान है। इतिहास के मुताबिक भले ही इस पुल का निर्माण तुगलक काल (1351-1388) में किया गया हो, लेकिन गांव के लोग कहते हैं कि यह मुगलकाल से भी पुराना है। ग्रामीण देवेंद्र त्यागी के अनुसार वजीराबाद पुल के नीचे एक सुरंग है जो लाल किले के अंदर तक जाती है। इसी सुरंग से पृथ्वीराज चौहान की बेटी बेला वजीराबाद पुल के नीचे यमुना में स्नान करने आती थी। हालांकि सुरक्षा की दृष्टि से अब इस सुरंग को बंद कर दिया गया है। लेकिन सुरंग की ओर जाने वाली सीढ़ियां वहां अब भी नजर आती हैं। इसी पुल से सटा एक विवादित स्मारक भी है। जिसका संरक्षण अब भारतीय पुरात्तव विभाग कर रहा है। सरकारी दस्तावेजों के मुताबिक यह कालिंदी मंदिर है क्योंकि यह यमुना किनारे बना हुआ है। स्मारक की बनावट प्राचीन मंदिर जैसी है। इसकी गुंबद पर शिव का त्रिशूल था जो अब क्षतिग्रस्त हो गया है। लेकिन मुस्लिम समाज के कुछ लोग इसे मस्जिद मानकर यहां नमाज पढ़ने आ गए थे, जिससे विवाद उत्पन्न हो गया। तब से पुरातत्व विभाग ने इस स्मारक को अपने संरक्षण में ले लिया है।

जामा मस्जिद की तीसरी सीढ़ी तक थी जमीन: दयानंद त्यागी कहते हैं कि उनके पूर्वज छित्तर सिंह, प्यारे लाल, चुन्नी, फतेहलाल, लायक, लखपत, सोहन लाल व मोहन लाल ने ही वजीराबाद गांव बसाया था। गांव में अब इन्हीं के वंशज रह रहे हैं। त्यागी समाज ने ही अपनी जमीन देकर यहां दूसरे समाज के लोगों को बसाया। अब यहां जाट, गुर्जर, मुस्लिम व अन्य समाज के लोग भी बस गए हैं। ग्रामीणों के मुताबिक गांव की जमीन जामा मस्जिद की तीसरी सीढ़ी तक थी। तिमारपुर, दिल्ली विश्वविद्यालय, पुरानी दिल्ली सब इसी गांव की जमीन पर बसे हुए हैं।

1925 में बना प्राथमिक विद्यालय आज भी है पहचान: गांव की दादी रजवन देवी त्यागी और कृष्णा देवी त्यागी ने 1925 में पॉप नाम के एक अंग्रेज को गांव में स्कूल बनाने के लिए अपनी जमीन दान दे दी थी। गांव के सभी बच्चे उसी स्कूल में प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करते थे। उन्हें बाहर जाने की जरूरत नहीं होती थी। आज भी यह स्कूल गांव में है, लेकिन अब यह निगम के अधीन हो गया है। केवल स्कूल ही नहीं शिव और हनुमान मंदिर के लिए भी दादी ने 1911 में जमीन दान में दी थी। प्रदीप त्यागी कहते हैं 1910 में जल उपचार संयंत्र के लिए गांव के लोगों ने ही अपनी जमीन दी थी। तब गांव के लोगों को जबरदस्ती अंग्रेज सरकार वहां नौकरी दे रही थी, लेकिन उन्होंने नौकरी नहीं की, क्योंकि तब वहां माली, चौकीदार व कोयला ढोने के अलावा कोई और काम नहीं था, इसलिए गांव के लोग वहां नौकरी करना पसंद नहीं करते थे। 1990 तक यहां के लोग खेती पर ही निर्भर थे। अब उनका अपना व्यापार है।


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