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जानिए दिल्ली में पहली बार किस मामले में एक साथ चार दोषियों को दी गई थी फांसी, सुनकर कांप गए थे लोग

आप लोग शायद इस मामले को भूल गए होंगे मगर 20 मार्च का दिन इतिहास में दर्ज है। समय था सुबह 5 बजकर 30 मिनट। ये तारीख तिहाड़ जेल के भी इतिहास में दर्ज हो गई है और कानून की किताब में भी।

By Vinay Kumar TiwariEdited By: Published: Sat, 20 Mar 2021 06:30 AM (IST)Updated: Sat, 20 Mar 2021 07:40 AM (IST)
जानिए दिल्ली में पहली बार किस मामले में एक साथ चार दोषियों को दी गई थी फांसी, सुनकर कांप गए थे लोग
इस कदर गुस्सा था कि आक्रोशित भीड़ ने रायसीना हिल तक चढ़ाई कर दी थी।

नई दिल्ली, आनलाइन डेस्क। राजधानी दिल्ली में अब से एक साल पहले एक साथ चार दोषियों को एक साथ फांसी की सजा दी गई थी। आप लोग शायद इस मामले को भूल गए होंगे मगर 20 मार्च का दिन इतिहास में दर्ज है। समय था सुबह 5 बजकर 30 मिनट। ये तारीख तिहाड़ जेल के भी इतिहास में दर्ज हो गई है और कानून की किताब में भी। ये एक ऐसा मामला था जिसने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था। लोगों में इस कदर गुस्सा था कि आक्रोशित भीड़ ने रायसीना हिल तक चढ़ाई कर दी थी।

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आलम ये था कि देश का हर युवा इस वीभत्स कांड की आलोचना कर रहा था और दोषियों को फांसी से नीचे सजा दिए जाने पर कोई तैयार नहीं था। लोग तो यहां तक कह रहे थे कि सरकार दोषियों को उनके हवाले कर दे वो खुद ही फैसला कर लेंगे वो भी सार्वजनिक जगह पर। और तो और इस तरह के मामलों में दुनिया के कुछ दूसरे देशों का उदाहरण भी सामने रखा गया और कहा गया कि इस तरह के अपराधों पर तभी अंकुश लग सकता है जब कानून को सख्त किया जाए और उन देशों के कानून यहां भी लागू किए जाएं।

आपको भी शायद वो पूरा मामला याद आ रहा होगा जब एक बस में सवार लड़के-लड़की के साथ उसमें बैठे क्लीनर और अन्य लोगों ने वहशीयाना हरकत की थी, उसके बाद उनको कड़क ठंड में बस से धक्का देकर नीचें फेंक दिया था, उस समय उनके शरीर पर कपड़े के नाम पर कुछ भी नहीं था। लड़का लहूलूहान था और लड़की दर्द से कराह रही थी। उस भयानक ठंड और दर्द में वो जोर से चींख भी नहीं पा रही थी। उसके गले से कराहने की आवाज भी नहीं निकल रही थी।

16 दिसंबर, 2012 की रात को छात्रा से चलती बस में हुआ था सामूहिक दुष्कर्म

दिल्ली में 16 दिसंबर, 2012 की रात पैरामेडिकल छात्रा से चलती बस में सामूहिक दुष्कर्म हुआ था। उससे इस कदर दरिंदगी हुई थी। दरिंदगी की घटना के बाद उसे सिंगापुर में माउंट एलिजाबेथ अस्पताल में भर्ती कराया गया। उस रात एक चलती बस में पांच बालिग और एक नाबालिग ने जिस तरह से उसके साथ हैवानियत का खेल खेला, वह बेहद ही शर्मनाक था।

23 साल की निर्भया पैरामेडिकल की छात्रा थीं। इलाज के दौरान 29 दिसंबर 2012 की शाम चार बजे निर्भया ने दम तोड़ दिया था। इस मामले में निचली अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक से चारों अभियुक्तों मुकेश, पवन गुप्ता, अक्षय सिंह और विनय कुमार शर्मा को मृत्युदंड दिया गया। आखिरकार चारों को 20 मार्च को तिहाड़ जेल संख्या 3 में फांसी पर चढ़ा दिया गया।

मां से करना चाहती थी बात मगर बोल नहीं पाई

मौत की नींद सोने से पहले वह अपनी मां से कई बातें कहना चाह रही थी लेकिन वह बोल नहीं सकती थी, संकेत में या लिखकर बता रही थी कि वह मरना नहीं जीना चाहती है। निर्भया की मां आशा देवी ने बताया था कि उसके इस अंतिम वाक्य ने ही हमें पूरी तरह तोड़कर रख दिया था। बेटी तो नहीं बची लेकिन तभी हमने संकल्प ले लिया था कि जिस तरह मेरी बेटी इस दुनिया में एक अच्छी जिंदगी जीना चाहती थी, लेकिन दरिंदों ने उसे मार डाला, उसी तरह सभी दोषियों को तड़पना होगा। घटना के बाद दरिंदों को फांसी हुई लेकिन सरकार अभी भी उस तरह के वारदात रोकने में विफल है।

मुख्य बातें

  • 16 दिसंबर 2012 की उस वारदात से दहल गया था देश।
  • 29 दिसंबर 2012 को इलाज के दौरान हुई थी निर्भया की मौत।
  • निर्भया के दोषियों को 20 मार्च की सुबह फांसी दे दी गई।
  • मामले में 7 साल, 3 महीने और 3 दिन बाद हुआ है इंसाफ।

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