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20 वर्षों तक किले की दीवारों में सिसकती रही एक ख्‍ूाबसूरत शाहजादी, जाने पूरी कहानी

औरंगजेब की ज्यादती को उनकी सगी बेटी ने भी भुगता था। जैबुन्निसा भगवान कृष्ण की दीवानी थी और सूफियाना शायरा थी। उनका स्थान उर्दू में वही हैं, जो हिंदी में मीराबाई का था।

By JP YadavEdited By: Published: Mon, 26 Nov 2018 01:14 PM (IST)Updated: Tue, 27 Nov 2018 07:32 AM (IST)
20 वर्षों तक किले की दीवारों में सिसकती रही एक ख्‍ूाबसूरत शाहजादी, जाने पूरी कहानी
20 वर्षों तक किले की दीवारों में सिसकती रही एक ख्‍ूाबसूरत शाहजादी, जाने पूरी कहानी

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। भारतीय इतिहास के सबसे खूंखार मुगलकालीन शासकों में शुमार औरंगजेब की ज्यादती को उनकी सगी बेटी ने भी भुगता था। दरअसल, औरंगजेब की बेटी जैबुन्निसा को पिता की मर्जी के खिलाफ मोहब्बत करना भारी पड़ा और आखिरकार दिल्ली के सलीमगढ़ किले में 20 साल तक कैद में रहने के बाद यहीं दम तोड़ दिया।

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बताया जाता है कि दो दशक तक वह किले में कैद रही और शेर-ओ-शायरी से दिल बहलाती रही। 3 मार्च, 1707 को उसने दम तोड़ दिया, लेकिन वह मरने से पहले कृष्ण भक्त के रूप में चर्चित हो चुकी थीं।

पहली मोहब्बत नाकाम रही जैबुन्निसा की
जानकारी के मुताबिक, जैबुन्निसा ने किसी कार्यक्रम के दौरान बुंदेला महाराजा छत्रसाल को देखा तो वह उसको अपना दिल दे बैठी। इसके बाद जैबुन्निसा ने भरोसे की दासी के जरिये अपनी मोहब्बत के इजहार को राजा छत्रसाल तक पहुंचाया था, लेकिन औरंगजेब की सख्त पहरेदारी और परदेदारी की वजह मामला औरंगजेब के सामने खुल गया। हालांकि, औरंगजेब ने फटकार लगाकर जैबुन्निसा को चुप करा दिया, क्योंकि वह छत्रसाल को अपना दुश्मन मानता था। राजा छत्रसाल ही बाजीराव पेशवा की दूसरी पत्नी मस्तानी के पिता थे। इन्‍होंने एक बार औरंगजेब के लिए युद्ध लड़ा था, लेकिन किन्हीं कारणों से उन्होंने विद्रोह कर दिया था और अपना अलग राज्य बना लिया था।

शिवाजी पर फिदा हो गई थी जैबुन्निसा
बताया जाता है कि जवानी की दहलीज पर खड़ी जैबुन्निसा ने मराठा छत्रपति शिवाजी की बहादुरी को लेकर कई किस्से सुन रखे थे। कुछ महीने बाद जैबुन्निसा ने शिवाजी को आगरा में देखा तो वह बहादुरी की कायल होने के साथ मोहब्बत भी कर बैठी। इस बीच मौका मिलने पर जैबुन्निसा अपना प्रेम निवेदन शिवाजी महाराज तक भिजवाया, लेकिन जवाब उम्मीद के मुताबिक न आया तो वह मायूस जैबुन्निसा शायरी की दुनिया में डूब गई।

जैबुन्निसा का दिल कुछ इस कदर टूटा कि वह शेर-ओ-शायरी में कुछ इस कदर रम गई कि वह मुशायरों और महफिलों में शिरकत करने लगी। मुशायरों के दौरान जैबुन्निसा को शायर अकील खां रजी से इश्क हो गया, लेकिन यह मोहब्बत भी जल्द ही चर्चा में आ गई। बताया जाता है कि दिल्ली में सलीमगढ़ का किला उन दोनों के इश्क का गवाह बन गया।

औरंगजेब ने अपनी ही बेटी को करवा दिया कैद
अकील खां रजी से बेटी बेटी ज़ैबुन्निसा की मोहब्बत को औरंगजेब बर्दाश्‍त नहीं कर पाया और 1691 में दिल्ली के सलीमगढ़ किले में कैद करवा दिया गया। इसके बाद उसके प्रेमी अकील रजी को उसी सलीमगढ़ के किले में औरंगजेब ने उसके सामने ही हाथियों से कुचलवा कर मरवा दिया और उसके शव को दूर लाहौर के एक गुमनाम स्थान पर दफना दिया।

बताया जाता है कि औरंगजेब ने जैबुन्निसा को उसके प्रेमी से अलग कर कैदखाने बंद करवाया तो वह शायरी लिखने लगी। वह आजीवन अविवाहित रहीं। कैद के दौरान जैबुन्निसा ने 5,000 से भी ज्यादा गजलें, शेर और रुबाइयां और कविता संकलन ‘दीवान-ए-मख्फी’ लिखी। 

बाप को हिंदुओं से नफरत, पर कृष्ण से इश्क से कर बैठी बेटी
बताया जाता है कि औरंगबेज हिंदू धर्म और उसके लोगों से बेहद नफतर करता था, लेकिन उसकी बेटी जैबुन्निसा ने विद्रोह करते हुए कृष्ण को अपना लिया। जैबुन्निसा भगवान कृष्ण की दीवानी थी और सूफियाना शायरा थी उसका स्थान उर्दू में वही हैं जो हिंदी में मीराबाई का था। जानकारों की मानें तो उसकी ज्यादातर शेर-ओ-शायरी भगवान कृष्ण को समर्पित थी। 

बताया जाता है कि कैद में रहने के दौरान भी जैबुन्निसा को चार लाख रुपये का सालाना शाही भत्ता मिलता था, जिसे वह विद्वानों को प्रोत्साहन देने और प्रतिवर्ष ‘मक्का मदीना’ जाने वालों पर खर्च करती थी।

जैबुन्निसा की शख्सियत का अंजादा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि मुगल खानदान में उसके आखिरी शासक बहादुर शाह ज़फर के अलावा जेबुन्निसा की शायरी को ही दुनिया सराहती है। मिर्जा गालिब के पहले वह अकेली शायरा थी जिनकी रुबाइयों, गज़लों और शेरों के अनुवाद अंग्रेजी, फ्रेंच, अरबी सहित कई विदेशी भाषाओं में हुए हैं।

जानिये- दिल्ली के सलीमगढ़ किला के बारे में
इतिहासकारों के मुताबिक, सलीमगढ़ के किले को 1526 में शेरशाह सुरी के बेटे इस्लाम शाह सूरी उर्फ़ सलीम शाह ने बनवाया था। सलीमगढ़ किला उत्तर–पूर्व में यमुना नदी के किनारे है। इसमें रोड़ी–कंकड़ से निर्मित स्थूल परकोटे हैं। औरंगजेब के शासन काल में सलीमगढ़ का इस्तेमाल एक जेल के रूप में किया जाता था।  मुगलों के बाद इस जगह को अंग्रेजों ने भी जेल के रूप में ही रखा था और 1945 में आज़ाद हिंद फौज के कई नेताओं को इस जेल में बंद कर दिया गया। आजादी के लगभग 50 साल बाद भारत सरकार ने इसकी सुध ली और इसको स्वतंत्रता सेनानी स्मारक 2 अक्टूबर 1995 में घोषित कर दिया।


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