Move to Jagran APP

जानिये- ग्रेनेडियर देवेंद्र सिंह भाटी के बारे में, जिनसे खौफ खाते थे आतंकी

ग्रेनेडियर देवेंद्र सिंह भाटी, यह वह जांबाज है जिसके नाम से आतंकी खौफ खाते थे। देश के दुश्मनों के खिलाफ चलने वाले ऑपरेशन में वह सबसे आगे चलते थे।

By Edited By: Published: Wed, 08 Aug 2018 07:09 PM (IST)Updated: Thu, 09 Aug 2018 02:48 PM (IST)
जानिये- ग्रेनेडियर देवेंद्र सिंह भाटी के बारे में, जिनसे खौफ खाते थे आतंकी

फरीदाबाद (प्रवीन कौशिक)। ग्रेनेडियर देवेंद्र सिंह भाटी, यह वह जांबाज है जिसके नाम से आतंकी खौफ खाते थे। देश के दुश्मनों के खिलाफ चलने वाले ऑपरेशन में वह सबसे आगे चलते थे। जख्मों की नहीं, उन्हें देश की परवाह थी। गोलियों की बौछारों के बीच उनके कदम आगे बढ़ते रहते थे। 12 अक्टूबर 2000 को जम्मू-कश्मीर के ऊधमपुर के थिनमार्ग में आतंकियों के खिलाफ ऑपरेशन चल रहा था।

loksabha election banner

दुश्मनों की गोलियां से देवेंद्र का पूरा शरीर जख्मी हो गया। एक के बाद एक 22 घाव हो गए, लेकिन आतंकियों को क्या मालूम कि इस योद्धा के माथे पर देश की माटी का तिलक लगा हुआ है। खून से लथपथ भाटी आगे बढ़ते रहे और एक के बाद एक तीन आतंकियों को मौत के घाट उतार दिया। उनके अदम्य साहस की बदौलत सैन्य टुकड़ी ने आठ आतंकियों को मार गिराया और उन्हें जम्मू-कश्मीर में घुसपैठ करने से रोक दिया।

कौराली गाव निवासी फौजी गिर्राज सिंह और भगवान देवी के वीर पुत्र देवेंद्र भाटी महज 20 साल की उम्र में वीरगति को प्राप्त हो गए थे। उनके साहस के लिए उन्हें मरणोपरात शौर्य चक्र से अलंकृत किया गया, जिसे तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम से उनकी माता ने प्राप्त किया। शूरवीर बेटे के अदम्य साहस से मा भगवान देवी का सिर गर्व से ऊंचा हो जाता है, लेकिन कलेजे का टुकड़ा चला गया इसलिए आखों से आसू भी छलक आते हैं। 

ऐसे हुआ था पूरा ऑपरेशन
ऊधमपुर के थिनमार्ग में ऑपरेशन के दौरान घेरा डालने के लिए तैनात सैन्य टुकड़ी में ग्रेनेडियर देवेंद्र सिंह भाटी शामिल थे। क्षेत्र 13000 फुट की ऊंचाई पर अत्यधिक ऊबड़-खाबड़ तथा तेज ढलान वाला था। ग्रेनेडियर भाटी की सैन्य टुकड़ी में शामिल जवानों ने अपनी-अपनी पोजीशन ले ली। सूर्यास्त के बाद कुछ आतंकियों के एक दल ने ग्रेनेडियर भाटी की ओर से घेरे को तोड़ने का प्रयास किया। उनकी टीम पर एक ऊंचे ठिकाने से स्वचालित हथियारों से गोलीबारी होने लगी, ग्रेनेड फेंके जाने लगे। भाटी को कई गोलिया लगीं, लेकिन जख्मी यह शेर भला कहां रुकने वाला था।

उन्होंने अपने साथियों को आगे बढ़कर घेरा डालने के लिए कहा और आतंकियों को गोलीबारी में उलझा लिया। इस दौरान उन्होंने दो आतंकियों को ढेर भी किया। खून बहने के बावजूद वह दुश्मनों को खदेड़ने के लिए आगे बढ़े। एक और आतंकी के सीने में गोलियां उतार दी। इसके बाद मातृभूमि की बलिवेदी पर अपनी जान न्यौछावर कर दी। भाटी के अनुकरणीय साहस और बहादुरी को पूरे देश ने सलाम किया। सेना में जाने का था जुनून दस जून 1980 को कौराली गाव में जन्मे देवेंद्र 28 अक्टूबर 1998 में सेना में भर्ती हो गए थे।

भगत सिंह बताते हैं कि उनके छोटे भाई देवेंद्र को सेना में जाने का जुनून था। दादा, पिता, चाचा और बड़े भाई भी फौजी रह चुके हैं। इसलिए देवेंद्र भी अक्सर मां से कहते थे कि मैं ऐसा काम करूंगा, जिससे लोग मुझे सैल्यूट करेंगे। उनकी याद में गाव के स्कूल परिसर में स्मारक बनाया गया है और मार्ग का नाम भी उनके नाम पर है। देश के लिए लड़ा मेरा लाल शहीद देवेंद्र सिंह भाटी की मा भगवान देवी कहती हैं मेरा लाल देश की रक्षा के लिए लड़ा और वीरगति को प्राप्त हुआ। मुझे गर्व है कि हमारे परिवार से कई लोगों ने सेना में जाकर देश की सेवा की है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.