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दिल्ली-NCR के लिए खतरे की घंटी, यहां तेजी से पनप रही कैंसर बेल्ट- जानें क्यों

पंजाब के मालवा की तरह ही देश की राजधानी दिल्ली और एनसीआर के कई इलाकों में कैंसर तेजी से अपने पैर पसार रहा है।

By JP YadavEdited By: Published: Sat, 07 Jul 2018 10:52 AM (IST)Updated: Sat, 07 Jul 2018 05:00 PM (IST)
दिल्ली-NCR के लिए खतरे की घंटी, यहां तेजी से पनप रही कैंसर बेल्ट- जानें क्यों

नई दिल्ली (जेएनएन)। पंजाब के मालवा की तरह ही देश की राजधानी दिल्ली और एनसीआर के कई इलाकों में कैंसर तेजी से अपने पैर पसार रहा है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्धगर और बागपत जिले में कैंसर से तकरीबन 150 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है, तो कई अपनी मौत के करीब पहुंच चुके हैं। इन इलाकों में तमाम लोग कैंसर से जिंदगी की जंग लड़ रहे हैं। किसी के पेट में कैंसर है, किसी की छाती में तो किसी के मुंह में। ये भी मानते हैं कि उनकी बीमारी की वजह गंदा पानी ही है जो इनके लिए जहर बन गया है। इस समस्या से प्रशासन को भी अवगत कराया गया, लेकिन किसी ने कोई ध्यान नहीं दिया।

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शिव विहार नहीं कैंसर कॉलोनी कहिए
वहीं, उत्तरी-पूर्वी दिल्ली की शिव विहार कॉलोनी को तो कैंसर कॉलोनी के नाम से जानने लगे हैं। यहां पर बड़ी मात्रा में लोग कैंसर से पीड़ित हैं। इस इलाके में तेजी से पैर पसार रहे कैंसर को लेकर अभी तक कोई सर्वे या अध्ययन नहीं आया है, लेकिन यहां रह रहे लोगों का मानना है कि जीन्स रंगने के लिए हानिकारक केमिकल का इस्तेमाल होता है और जीन्स के डाई होने के बाद वो केमिकल नालियों के जरिए वहां जमीन में चला जाता है। इसकी वजह से भूमिगत पानी जहरीला होता जा रहा है।

केमिकल के रंगों से कैंसर संभव पर कोई रिसर्च नहीं हुई है
जानकारों के मुताबिक, एक ही क्षेत्र में इतने सारे कैंसर के मामले सामने आने की वजह कपड़ों को रंगने वाले केमिकल हो सकते हैं, लेकिन देश में इसे लेकर कोई खास रिसर्च नहीं हुई है, ऐसे में कुछ भी साफ-साफ कहना मुश्किल है। उनका कहना है कि कोई भी केमिकल किसी भी तरह से अगर शरीर में दाखिल होता है, चाहे वो सांस के रास्ते ही क्यों न हो, फेफड़े या फिर त्वचा के ज़रिए या खाने की नली से अंदर जाए। और अगर ये भारी मात्रा में हो तो नुक़सान होना तय है। 

सीबीआइ जांच के आदेश
दिल्ली के शिव विहार के मामले को दिल्ली हाईकोर्ट ने ख़ुद ही संज्ञान लिया था और केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को जांच के आदेश दिए थे। सीबीआइ ने यहां से पानी के सैंपल लिए। बताया जा रहा है कि हाई कोर्ट के आदेश की तामील करते हुए दिल्ली सरकार ने एक सर्वे करवाया था। सर्वे की रिपोर्ट के मुताबिक़ इस इलाके में 239 फ़ैक्ट्रियां अवैध रूप से चल रही थीं। इन फ़ैक्ट्रियों का चालान काटा गया और उन्हें सील कर दिया गया है। इतना ही नहीं, हाई कोर्ट ने दिल्ली सरकार व दिल्ली राज्य विधिक सेवा आयोग को पीड़ित लोगों को आर्थिक मदद मुहैया कराने के आदेश दिए हैं। 

बागपत में कैंसर लील चुका है 100 जानें
दिल्ली का शिव विहार तो कैंसर का नमूना भर है। पश्चिमी यूपी के ज्यादातर इलाकों में पानी पहले से ही खारा है, अब पानी जनित कैंसर जिंदगी लील रहे हैं। बीते पांच साल के दौरान बागपत के गांगरौली और उसके आसपास के इलाकों में कैंसर से करीब सौ लोगों की मौत हो चुकी है। इलाके में गंदे पानी के चलते कई लोग अपंग तक होते जा रहे हैं। लोग गंदे पानी को ही अपनी इस हालत का जिम्मेदार मानते हैं।

सालों से जारी है गंदे पानी का कहर 
पानी से परेशानी सिर्फ कैंसर की नहीं है। जिन्हें कैंसर नहीं है उन्हें कुछ अलग तरह की बीमारियों ने घेर रखा है। उदाहरण है विनीत, पिछले कुछ सालों में उसकी हड्डियां अकड़ गई हैं। वो चल नहीं सकता दिनभर बिस्तर पर पड़ा रहता है। गांगरौली के अलावा टीकरी, सरोरा, माजरा, खड़ाना, नांगल भगवानपुर गांवों में भी गंदे पानी का कहर जारी है। 

ग्रेटर नोएडा के आधा दर्जन गांव में 50 से अधिक लोगों की जा चुकी है जान
दिल्ली से सटे यूपी के ग्रेटर नोएडा में छपरौला इंडस्ट्रियल पार्क के पास कम से कम पांच गांव कैंसर की चपेट में हैं। यहां पर औद्योगिक विकास का खामियाजा यहां के लोगों को कैंसर के रूप में भुगतना पड़ रहा है। इन गांवों में सादोपुर, अछेजा, सादुल्लापुर, बिशनुली और खेड़ा धरमपुर हैं। पिछले पांच सालों में इन गांवों में असामान्य रूप से कैंसर के मरीजों की संख्या में भारी इजाफा देखा गया है।

15 मिनट में ही बाल्टी में जंग
डाक्टरों के मुताबिक, दूषित पानी पीने के कारण पित्त की थैली के नीचे कैंसर हो सकता है। लोगों का कहना है कि क्षेत्र में जितनी भी औद्योगिक यूनिटें लगी हैं वह सभी भू जल को प्रदूषित करने में जुटी हैं, किसी भी कंपनी में पानी निकासी की व्यवस्था नहीं है। ऐसे में कंपनी से निकलने वाली प्रत्येक गंदगी को जमीन के नीचे ही औद्योगिक यूनिटों के अंदर से ही पहुंचाया जा रहा है। इसी वजह से गांव के लोग कैंसर के शिकार हो रहे हैं, लेकिन जिला प्रशासन की ओर से कोई भी प्रयास नहीं किया जा रहा है, हालात यहां तक पहुंच गए हैं कि लोहे की बाल्टी में पानी भर कर रख दिया जाए तो 15 मिनट में ही बाल्टी में जंग लग जाती है। प्लास्टिक की बाल्टी पूरी तरह से पीली हो जाती है।

कभी मीठी होता था गांव का पानी, इंडस्ट्री ने घोल दिया जहर
जानकारी के मुताबिक, इन गांवों के ज्यादातर मरीज गैस्ट्रिक, लीवर और ब्लड कैंसर के शिकार हैं। इसके साथ ही हेपटाइटिस और स्किन की बीमारियों से पीड़ित लोगों की संख्या भी बड़ी तादाद में है। स्थानीय लोगों ने बताया कि छपरौला इंडस्ट्रियल पार्क बनने से पहले यहां का पानी मीठा और बढ़िया होता था, लेकिन यहां लगभग सौ फैक्ट्रियां लगी और उनके कचरे से यहां का पानी दूषित होने लगा।


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